पेंडेंसी कॉलेजियम की मंजूरी के बाद वर्षों तक हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति नहीं करने के केंद्र के 'अड़ियल रवैये' का सीधा परिणाम: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

10 Aug 2021 10:19 AM IST

  • पेंडेंसी कॉलेजियम की मंजूरी के बाद वर्षों तक हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति नहीं करने के केंद्र के अड़ियल रवैये का सीधा परिणाम: सुप्रीम कोर्ट

    कोर्ट ने केंद्र से अपने अप्रैल 2021 के आदेश में न्यायिक नियुक्तियों के लिए निर्धारित समय-सीमा का पालन करने का आग्रह किया।

    देश भर के हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की बढ़ती रिक्तियों को भरने में केंद्र सरकार की ओर से हो रही देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर नाराजगी व्यक्त की है।

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (9 अगस्त) को पारित एक आदेश में, कहा कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा सिफारिशों को मंजूरी देने के वर्षों बाद भी हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं करने में सरकार के "अड़ियल रवैये" के कारण मामलों के निर्णय में देरी हो रही है।

    न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने डंपिंग-रोधी कार्यवाही से संबंधित एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा पारित एक वादकालीन आदेश के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए ये गंभीर टिप्पणियां कीं।

    सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कार्यवाही से संज्ञान लिया कि दिल्ली हाईकोर्ट मामले की जल्द सुनवाई करने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि यह निर्धारित जजों की आधी संख्या से काम कर रहा है।

    पीठ ने आदेश की शुरुआत में ही कहा,

    "हम इन याचिकाओं में उठाई गई समस्या का सामना कर रहे हैं क्योंकि सरकार के अड़ियल रवैये के कारण हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को वर्षों से नियुक्त नहीं किया गया है, यहां तक कि कॉलेजियम द्वारा सिफारिशों को मंजूरी भी दे दी गई है।"

    पीठ ने कहा कि "असली कठिनाई" इस तथ्य में है कि उच्च न्यायालय ऐसे मामलों को जल्द से जल्द समायोजित नहीं कर पाता है।

    कोर्ट ने व्यथित लहजे में कहा,

    "यह देश की राजधानी स्थित दिल्ली हाईकोर्ट सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या में अपर्याप्तता का प्रत्यक्ष परिणाम है।"

    पीठ ने अपने आदेश में आगे कहा कि उसने इस मामले में पेश होने वाली अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान को कहा कि सिफारिशों को कॉलेजियम तक पहुंचने में महीनों और साल लग जाते हैं और उसके बाद भी महीनों और वर्षों में कोई निर्णय नहीं लिया जाता है।

    इसलिए, उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की कम संख्या होती है, जहां महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी जल्दी निर्णय लेना लगभग असंभव हो जाएगा।

    कोर्ट ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि पीठ ने केंद्र सरकार को "मैसर्स पीएलआर प्रोजेक्ट्स प्रा. लिमिटेड बनाम महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड और अन्य" मामले में 20 अप्रैल को पारित अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाई गई नियुक्तियों की समय-सीमा की याद भी दिलाई थी, लेकिन ऐसा लगता है कि इस आदेश से भी सरकार को फर्क नहीं पड़ा है।

    कोर्ट ने आदेश में कहा,

    "मैसर्स पीएलआर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड और अन्य के नाम से 2019 की ट्रांसफर पिटीशन (सिविल) नंबर 2419 में इस कोर्ट के 20 अप्रैल 2021 के आदेश द्वारा समय-सीमा निर्धारित किए जाने के बावजूद न्यायिक संस्थान को इस परिदृश्य का सामना करना पड़ रहा है, जिससे प्रतीत होता है कि सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा है। इसका परिणाम यह है कि यदि मामलों की सुनवाई करने में न्यायिक संस्था की असमर्थता के कारण कुछ नुकसान हो रहा है, तो यह न्यायाधीशों की अपर्याप्त संख्या होने का प्रत्यक्ष परिणाम है।"

    हाईकोर्ट की दयनीय स्थिति को स्पष्ट करने के लिए, आदेश में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या का उल्लेख किया। दिल्ली हाईकोर्ट में एक सप्ताह के भीतर 50% से कम न्यायाधीश होंगे, जहां 60 न्यायाधीशों की कुल संख्या में से केवल 29 न्यायाधीश होंगे। इसे संदर्भ में रखने के लिए, आदेश में कहा गया है कि दो दशक पहले, जब न्यायमूर्ति संजय किशन कौल को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था, तो उन्हें 33 न्यायाधीशों की कुल संख्या में से 32वें न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।

    दिल्ली हाईकोर्ट की स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह हाईकोर्ट से यह कहने की स्थिति में नहीं है कि वह मामले को समयबद्ध तरीके से निपटाये।

    अदालत ने आग्रह किया,

    "... सरकार को यह महसूस करना चाहिए कि वाणिज्यिक विवादों का शीघ्र निर्णय आवश्यक है जिसके लिए पर्याप्त संख्या में न्यायाधीश होने चाहिए, जिसके लिए उन्हें 'मेसर्स पीएलआर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड (सुप्रा)' मामले में निर्धारित समय-सीमा का पालन करना होगा।"

    उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के 453 पद (स्वीकृत पदों के 50% से अधिक) खाली पड़े हैं: कानून मंत्रालय का जवाब लोकसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में बताया कि हाई कोर्ट के जजों के 453 पद खाली पड़े हैं। इसका मतलब है कि उच्च न्यायालय के 1098 न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों में से 50 प्रतिशत से अधिक पद खाली पड़े हैं।

    कानून मंत्री ने लोकसभा को यह भी बताया कि रिक्तियों को भरने के लिए आवश्यक समय-सीमा का संकेत देना संभव नहीं है, क्योंकि यह "कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक सतत, एकीकृत और सहयोगी प्रक्रिया" है।

    सुप्रीम कोर्ट ने टाइम-लाइन के बारे में क्या कहा?

    सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की बढ़ती रिक्तियों को भरने में देरी पर नाराजगी व्यक्त की है और नियुक्ति प्रक्रिया को उचित समय-सीमा में पूरा करने की आवश्यकता पर बल दिया है।

    अप्रैल 2021 में, सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने मैसर्स पीएलआर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड मामले में नियुक्ति प्रक्रिया के प्रत्येक चरण के लिए समय-सीमा का संकेत देते हुए आदेश पारित किया था।

    अदालत ने समय-सीमा इस प्रकार निर्धारित की है:

    1. खुफिया ब्यूरो (आईबी) को हाईकोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश की तारीख से 4 से 6 सप्ताह के भीतर केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट/इनपुट प्रस्तुत करनी चाहिए।

    2. यह वांछनीय होगा कि केंद्र सरकार राज्य सरकार से विचार प्राप्त होने और आईबी से रिपोर्ट/इनपुट प्राप्त होने की तारीख से 8 से 12 सप्ताह के भीतर फाइल/सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट को अग्रसारित करे।

    3. यह सरकार के लिए होगा कि वह उपरोक्त विचार पर तुरंत नियुक्ति करने के लिए आगे बढ़े और निस्संदेह यदि सरकार को उपयुक्तता या जनहित में कोई आपत्ति है, तो आपत्तियों के कारण के साथ उसी अवधि के भीतर इसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को वापस भेजा जा सकता है।

    यदि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उपरोक्त इनपुट पर विचार करने के बाद भी सर्वसम्मति से सिफारिश (सिफारिशों) को दोहराता है (उपबंध 24.1), तो ऐसी नियुक्ति पर कार्रवाई की जानी चाहिए और नियुक्ति तीन से चार सप्ताह के भीतर की जानी चाहिए।

    भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस संजय किशन कौल और सूर्यकांत की पीठ ने कहा था कि सलाह यह होगी कि उपरोक्त समय-सीमा का पालन किया जाये।

    पीठ ने आदेश में कहा,

    "हाईकोर्ट संकट की स्थिति में हैं। उच्च न्यायालयों में लगभग 40% रिक्तियां हैं, जिनमें से कई बड़े उच्च न्यायालय अपने स्वीकृत पदों के 50% के साथ काम कर रहे हैं।"

    एटर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इस साल 15 अप्रैल को अदालत को आश्वस्त किया था कि केंद्र सरकार के पास 6 महीने से अधिक समय से लंबित कॉलेजियम की सिफारिशों पर तीन महीने के भीतर फैसला किया जाएगा।

    दिसंबर 2019 में, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने एक आदेश पारित किया था जिसमें कहा गया था कि उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित व्यक्तियों, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है, को छह महीने के भीतर नियुक्त किया जाना चाहिए।

    केस का ब्योरा

    केस शीर्षक: मेसर्स इंडियन सोलर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन बनाम सोलर पावर डेवलपर्स एसोसिएशन

    कोरम: न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय

    साइटेशन : एलएल 2021 एससी 365

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