[पीसीपीएनडीटी एक्ट] प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेस्ट कराने के लिए 35 साल की उम्र की पाबंदी वैध? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा
Avanish Pathak
16 Jan 2023 11:15 AM GMT
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एडवोकेट मीरा कौरा पटेल की याचिका पर केंद्र को जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।
एडवोकेट कौरा ने याचिका में कहा है कि गर्भाधान पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन का निषेध) अधिनियम, 1994 की धारा 4 (3)(i) के तहत गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व नैदानिक परीक्षण कराने के लिए 35 साल की आयु का प्रतिबंध महिलाओं के प्रजनन अधिकारों पर प्रतिबंध है।
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की खंडपीठ ने उक्त पहलू तक सीमित याचिका में नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ता सुश्री पटेल ने पीठ को अवगत कराया था कि उनकी याचिका दायर करने और संशोधन किए जाने के बाद से बहुत कुछ बीत चुका है, लेकिन आयु प्रतिबंधों का मुद्दा अब भी बना हुआ है और इस पर न्यायालय के विचार की आवश्यकता है।
सोमवार को केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने पीठ से अनुरोध किया कि वह उस पहलू तक सीमित जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए कुछ समय दे, जिस पर नोटिस जारी किया गया था। वकील के अनुरोध को स्वीकार करते हुए, खंडपीठ ने आदेश दिया- "... (जवाबी हलफनामा) प्रार्थना के अनुसार 4 सप्ताह के भीतर दायर किया जाना चाहिए। प्रत्युत्तर, यदि कोई हो, उसके बाद 2 सप्ताह के भीतर दायर किया जाए।"
मामले को 8 सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया है।
"प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेस्ट" अल्ट्रासोनोग्राफी या एमनियोटिक द्रव, कोरियोनिक विल्ली, रक्त या किसी गर्भवती महिला या कॉन्सेप्टस के किसी भी ऊतक या तरल पदार्थ के परीक्षण या विश्लेषण को संदर्भित करता है। पीसीपीएनडीटी अधिनियम की धारा 4 में प्रसव पूर्व निदान तकनीकों के नियमन का प्रावधान है। प्रसव पूर्व निदान तकनीक केवल निम्नलिखित असामान्यताओं में से किसी का पता लगाने के उद्देश्य से की जा सकती है: (i) क्रोमोसोमल असामान्यताएं; (ii) आनुवंशिक उपापचयी रोग; (iii) हीमोग्लोबिनोपैथी; (iv) लिंग से जुड़े आनुवंशिक रोग; (v) जन्मजात विसंगतियां; (vi) केंद्रीय पर्यवेक्षी बोर्ड द्वारा निर्दिष्ट कोई अन्य असामान्यताएं या बीमारियां।
यह आगे प्रावधान करता है कि किसी भी प्रसव पूर्व निदान तकनीक का उपयोग या संचालन तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसा करने के लिए योग्य व्यक्ति लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों से संतुष्ट न हो जाए कि निम्नलिखित में से कोई भी शर्त पूरी हो गई है, यानि: -
(i) गर्भवती महिला की आयु पैंतीस वर्ष से अधिक है;
(ii) गर्भवती महिला का दो या दो से अधिक स्वत: गर्भपात या भ्रूण हानि हुई है;
(iii) गर्भवती महिला दवाओं, विकिरण, संक्रमण या रसायनों जैसे संभावित टेराटोजेनिक एजेंटों के संपर्क में आई थी;
(iv) गर्भवती महिला या उसके पति का मानसिक मंदता या शारीरिक विकृतियों का पारिवारिक इतिहास रहा हो, जैसे स्पास्टिसिटी या कोई अन्य आनुवंशिक रोग;
(v) केंद्रीय पर्यवेक्षी बोर्ड द्वारा निर्दिष्ट कोई अन्य शर्त।
याचिकाकर्ता ने X बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, सरकार में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया था।
केस टाइटल: मीरा कौर पटेल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया WP(C) 1327/2019]