ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम : ग्रेच्युटी की ऊपरी सीमा 10 लाख करने वाला 2010 संशोधन पूर्वव्यापी नहीं है : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
14 Aug 2021 12:09 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 का 2010 संशोधन पूर्वव्यापी नहीं है।
2010 के संशोधन के अनुसार, ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 की धारा 4 के अनुसार देय ग्रेच्युटी की ऊपरी सीमा को 3.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता कोल इंडिया लिमिटेड के पूर्व कर्मचारी थे, जिन्हें केंद्र सरकार के कार्यालय ज्ञापन के संदर्भ में जनवरी 2007 में 10 लाख रुपये की ग्रेच्युटी राशि का भुगतान किया गया था। उस समय, यानी 2007 में, ग्रेच्युटी की वैधानिक ऊपरी सीमा 3.5 लाख रुपये थी।
आयकर अधिनियम के अनुसार, किसी कर्मचारी द्वारा प्राप्त ग्रेच्युटी की राशि उस सीमा तक जो ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम के तहत ऊपरी सीमा से अधिक नहीं है, कर देयता से मुक्त है। चूंकि 2007 में ग्रेच्युटी की ऊपरी सीमा 3.5 लाख रुपये थी, इसलिए अपीलकर्ताओं को शेष राशि के लिए टीडीएस देनदारी उठानी पड़ी।
चूंकि 2010 में ग्रेच्युटी की ऊपरी सीमा को 10 लाख रुपये के रूप में संशोधित किया गया था, इसलिए अपीलकर्ताओं ने 01.01.2007 से इसे पूर्वव्यापी प्रभाव की मांग की, ताकि वे प्राप्त ग्रेच्युटी के लिए पूर्ण कर छूट का दावा कर सकें।
इस प्रकार उन्होंने 24.5. 2010 (जिस तारीख को संशोधन अधिनियम को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई थी) के रूप में शुरू होने की तारीख को चुनौती दी और कहा कि इसे 1 .1. 2007 से प्रभावी बनाया जाना चाहिए।
उनके अनुसार, चूंकि ग्रेच्युटी अधिनियम में संशोधन उदारीकृत लाभ प्रदान करने के लिए है, यह पूर्वव्यापी होगा। एक और तर्क यह था कि कट-ऑफ तिथि ने कर्मचारियों की दो श्रेणियां बनाईं, पहली जिन्होंने उक्त तिथि से पहले सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त कर ली है और दूसरी जो 24.5.2010 को या उसके बाद सेवानिवृत्त हुए हैं।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद ही कर्मचारियों को उच्च ग्रेच्युटी का लाभ एकमुश्त मिलता है।
राज्य सरकार पेंशनभोगी संघ और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य में निर्णय का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा कि सेवानिवृत्ति की एक निर्दिष्ट तिथि से ग्रेच्युटी का भुगतान असंवैधानिक नहीं था।
पीठ ने यह कहा,
"ग्रेच्युटी अधिनियम ने केवल 24.5.2010 से ग्रेच्युटी की राशि के रूप में दस लाख रुपये पर विचार किया। ऐसी ग्रेच्युटी केवल एक बार देय राशि है। इस प्रकार, कट-ऑफ तिथि को अवैध नहीं कहा जा सकता है, यह एकमुश्त भुगतान है। इसलिए , ग्रेच्युटी अधिनियम में इस तरह के संशोधन को पूर्वव्यापी नहीं माना जा सकता है। इसलिए, क़ानून के प्रावधानों को पूर्वव्यापी नहीं कहा जा सकता है।"
अदालत ने विजयलक्ष्मी राइस मिल्स, न्यू कॉन्ट्रैक्टर्स कंपनी और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, ओरिएंट पेपर एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड और अन्य बना उड़ीसा राज्य और हिमाचल सड़क परिवहन निगम और अन्य बनाम हिमाचल सड़क परिवहन निगम सेवानिवृत्त कर्मचारी संघ के फैसलों का भी हवाला दिया है।
पीठ ने अपीलों को खारिज करते हुए कहा,
"उपरोक्त के मद्देनज़र, हम पाते हैं कि संशोधन अधिनियम द्वारा प्रत्यायोजित शक्ति के प्रयोग में कार्यपालिका द्वारा निर्धारित प्रारंभ की तारीख को पूर्वव्यापी नहीं माना जा सकता है क्योंकि उच्च ग्रेच्युटी का लाभ कर्मचारियों को केवल एक बार संशोधन अधिनियम की शुरुआत के बाद उपलब्ध होता है। कार्यालय ज्ञापन के तहत अपीलकर्ताओं को भुगतान किया गया लाभ आयकर अधिनियम की धारा 10(10)(ii) की विशिष्ट भाषा के मद्देनज़र छूट का हकदार नहीं है।"
केस: कृष्ण गोपाल तिवारी बनाम भारत संघ ; सीए 4744/ 2021
उद्धरण: LL 2021 SC 378
पीठ : जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एएस बोपन्ना
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