''दोनों पक्षकार वैवाहिक जीवन में खुश हैं;एफआईआर गलतफहमी के कारण दर्ज हुई थी'': सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के मामले को रद्द किया

LiveLaw News Network

16 April 2021 10:15 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के एक मामले को आरोपी और शिकायतकर्ता की तरफ से किए गए संयुक्त अनुरोध के बाद रद्द कर दिया है। दोनों पक्षकारों ने बताया था कि उन्होंने शादी कर ली है और वे अपने शादीशुदा जीवन में खुश हैं।

    न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने आरोपी की तरफ से दायर रिट याचिका को अनुमति देते हुए अवलोकन किया कि उक्त एफआईआर के आधार पर उठाए गए सभी कदमों को कानून में रिकॉर्ड से समाप्त माना जाए।

    इस मामले में, शिकायतकर्ता ने यह आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज की थी कि आरोपी ने उससे वादा किया था कि वह उससे शादी करेगा, परंतु उस वादे को पूरा नहीं किया गया। बाद में उन्होंने अपने मतभेदों को सुलझाया और अंततः 11.10.2014 को शादी कर ली।

    पूर्व में आरोपी ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष एफआईआर को रद्द करने के लिए एक याचिका दायर की थी। परंतु हाईकोर्ट ने कहा था कि जिन मामलों में अपराध की प्रकृति जघन्य/ गंभीर होती है जैसे हत्या, बलात्कार और डकैती,उन मामलों में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र का आह्वान करके आपराधिक कार्यवाही को समाप्त नहीं किया जा सकता है, भले ही अभियुक्त और पीड़ित ने आपस में मिलकर समझौता कर लिया हो।

    हाईकोर्ट ने कहा था कि,''बलात्कार केवल एक महिला के शरीर, उसके सम्मान और मान-मर्यादा को ही गंभीर चोट नहीं पहुँचाता है। अगर ऐसे में अपराध को अपराधी और पीड़ित द्वारा निपटा लिया जाता है तो भी यह अपराध प्रकृति में निजी नहीं है और इसका समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और इसे रद्द नहीं किया जा सकता है।''

    शीर्ष अदालत के समक्ष, दोनों आरोपी और शिकायतकर्ता ने कहा कि वे सुखी वैवाहिक जीवन का आनंद ले रहे हैं। इसलिए, उन्होंने एक संयुक्त अनुरोध किया कि एफआईआर को रद्द कर दिया जाए क्योंकि यह उनके बीच हुई कुछ गलतफहमी का परिणाम थी। उन्होंने यह तर्क दिया कि शादी के झूठे वादे पर सहमतिपूर्ण संभोग बलात्कार के समान है और एक व्यक्ति के खिलाफ अपराध का गठन करता है और इससे उत्पन्न विवाद व्यक्तिगत प्रकृति का है, जो कि पीड़िता की इच्छा व सहमति के खिलाफ किए गए बलात्कार के मामले से बिल्कुल अलग है,क्योंकि वह अपराध समाज के खिलाफ होता है,न कि किसी व्यक्ति के खिलाफ।

    पीठ ने अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि,

    ''एफआईआर में आरोपों की प्रकृति और इस तथ्य को देखते हुए कि प्रासंगिक समय पर गलतफहमी के कारण एफआईआर दर्ज की गई थी, वो मुद्दे/गलतफहमी अब पूरी तरह से हल हो गई है और दोनों पक्षकारों ने 11.10.2014 को शादी कर ली थी,ऐसे में एफआईआर का आधार खत्म हो गया है। निजी प्रतिवादी ने हमारे समक्ष कहा है कि इस तरह की एफआईआर दर्ज करवाना एक गलत सलाह का नतीजा है। यह देखा गया कि अपीलकर्ता और निजी प्रतिवादी साक्षर और समझदार व्यक्ति हैं और उन्होंने संयुक्त रूप से एफआईआर को रद्द करने का विकल्प चुना है। इस मामले पर समग्र रूप से विचार करते हुए,यह न्याय के हित में होगा कि हम वर्तमान मामले में एफआईआर को समाप्त करने के संयुक्त अनुरोध को स्वीकार कर लें...अपीलकर्ता द्वारा एफआईआर को रद्द करने के लिए दायर रिट याचिका को अनुमति दी जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप, उक्त एफआईआर के आधार पर उठाए गए सभी कदमों को कानून में रिकॉर्ड से समाप्त माना जाएगा।''

    केसः मिस्टर ए बनाम स्टेट

    कोरमः जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी

    प्रतिनिधित्वःवरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे, अधिवक्ता निशंक मट्टू, अभिषेक भारती, शिविका सिंह, एओआर बालाजी श्रीनिवासन, वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें(पक्षकार का नाम छुपाने के लिए पीडीएफ फाइल को संपादित किया गया है)



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