Pahalgam Terror Attack : पाकिस्तान भेजे जाने का सामना कर रहे परिवार को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार उनके नागरिकता दावों की पुष्टि करने के लिए कहा
Shahadat
2 May 2025 12:44 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिकारियों से छह व्यक्तियों के भारतीय नागरिकता दावों की पुष्टि करने को कहा, जो पहलगाम आतंकवादी हमले के मद्देनजर केंद्र द्वारा जारी निर्देशों के बाद पाकिस्तान भेजे जाने का सामना कर रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उनके पास भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं। कोर्ट ने अधिकारियों से "सभी दस्तावेजों और किसी भी अन्य प्रासंगिक तथ्य की पुष्टि करने को कहा जो उनके संज्ञान में लाए जा सकते हैं।"
कोर्ट ने निर्देश दिया कि जल्द से जल्द निर्णय लिया जाए। हालांकि कोई समय सीमा तय नहीं की गई। कोर्ट ने कहा कि जब तक ऐसा निर्णय नहीं लिया जाता, तब तक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई बलपूर्वक कार्रवाई नहीं की जाएगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसके आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा।
इन टिप्पणियों के साथ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने निर्वासन की आशंका जताते हुए याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर रिट याचिका का निपटारा कर दिया। खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं को यह भी स्वतंत्रता दी कि यदि वे केंद्रीय अधिकारियों द्वारा लिए गए अंतिम निर्णय से असंतुष्ट हैं तो वे जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकील नंद किशोर ने कहा कि वे भारतीय नागरिक हैं, उनके पास पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं। उन्होंने कहा कि दो याचिकाकर्ता (बेटे) बैंगलोर में काम कर रहे हैं। अन्य सदस्य माता-पिता और बहनें श्रीनगर में हैं। उन्होंने कहा कि श्रीनगर में परिवार के सदस्यों को जीप में वाघा सीमा पर ले जाया गया और वे "देश से बाहर फेंके जाने की कगार पर हैं।"
जस्टिस कांत ने पूछा,
"पिता भारत कैसे आए? आपने कहा है कि वे पाकिस्तान में थे।"
वकील ने कहा कि पिता 1987 में भारत आए थे।
जस्टिस कांत ने जब अधिक स्पष्टता मांगी तो वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने सीमा पर पासपोर्ट सरेंडर कर दिया और भारत आ गए। वर्चुअल रूप से पेश हुए बेटों में से एक ने दावा किया कि पिता कश्मीर के "दूसरे हिस्से" से मुजफ्फराबाद से भारत आए थे।
जस्टिस कांत ने इस बात पर नाराजगी जताई कि याचिका में इन तथ्यों का खुलासा नहीं किया गया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को पहले संबंधित अधिकारियों से संपर्क करना चाहिए ताकि उनके दावों की पुष्टि की जा सके।
एसजी ने कहा,
"उन्हें अधिकारियों से संपर्क करने दें।"
खंडपीठ आदेश में यह निर्देश देने वाली थी कि अंतिम निर्णय तक याचिकाकर्ताओं को निर्वासित नहीं किया जाना चाहिए तो एसजी ने हस्तक्षेप करते हुए अनुरोध किया कि ऐसा अवलोकन न किया जाए।
एसजी ने मौखिक वचन दिया कि "वह ध्यान रखेंगे।"
हालांकि, खंडपीठ ने कहा कि मौखिक वचन अनिश्चितताओं को जन्म दे सकता है और आदेश में कहा कि अधिकारियों के अंतिम निर्णय तक याचिकाकर्ताओं को बलपूर्वक कार्रवाई का सामना नहीं करना चाहिए।
आदेश में कहा गया:
"इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में उचित निर्णय लिए जाने तक अधिकारी बलपूर्वक कार्रवाई नहीं कर सकते। यदि याचिकाकर्ता अंतिम निर्णय से असंतुष्ट हैं तो वे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। आदेश को मिसाल के तौर पर नहीं माना जाएगा।"
केस टाइटल: अहमद तारिक बट बनाम भारत संघ, डायरी नंबर 23301/2025

