अवमानना ​​कार्रवाई का सामना कर रहे अधिकारी ने पदावनति को दंड के रूप में स्वीकार करने से किया इनकार; सुप्रीम कोर्ट ने दी जेल की चेतावनी

Shahadat

6 May 2025 10:33 AM

  • अवमानना ​​कार्रवाई का सामना कर रहे अधिकारी ने पदावनति को दंड के रूप में स्वीकार करने से किया इनकार; सुप्रीम कोर्ट ने दी जेल की चेतावनी

    सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के डिप्टी कलेक्टर पर अपनी नाराजगी व्यक्त की, जिन्होंने तहसीलदार के रूप में हाईकोर्ट के निर्देशों की अवहेलना की और गुंटूर जिले में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की झोपड़ियों को जबरन हटा दिया। उक्त डिप्टी कलेक्टर ने कहा था कि वह न्यायालय की अवमानना ​​के लिए दंड के रूप में पदावनति को स्वीकार नहीं करेंगे।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ याचिकाकर्ता/डिप्टी कलेक्टर द्वारा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें उन्हें न्यायालय की अवमानना ​​का दोषी पाया गया था और उन्हें 2 महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी।

    सीनियर एडवोकेट देवाशीष भारुका (याचिकाकर्ता के लिए) से निर्देश प्राप्त करने के लिए कहा गया कि क्या डिप्टी कलेक्टर यह वचन देने के लिए तैयार हैं कि वह डिप्टी तहसीलदार (यानी, जिस पद पर उन्हें शुरू में नियुक्त किया गया) के पद पर काम करना जारी रखेंगे। सीनियर एडवोकेट ने याचिकाकर्ता की अनिच्छा से अवगत कराया कि न्यायालय से जो कुछ भी आ रहा है, उसे स्वीकार नहीं किया जा रहा है।

    खंडपीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि वह याचिकाकर्ता के बच्चों और उनके भविष्य को ध्यान में रखते हुए उसके प्रति नरम रुख अपना रही है। लेकिन उनकी जिद इस बात को बयां करती है कि हाईकोर्ट के आदेशों के प्रति उनका क्या रवैया रहा होगा।

    जस्टिस गवई ने टिप्पणी की,

    "हम उनका करियर बचाना चाहते हैं। लेकिन अगर वह नहीं चाहते हैं तो हम उनकी मदद नहीं कर सकते। इससे पता चलता है कि हाईकोर्ट के आदेशों के प्रति उनका क्या रवैया रहा होगा।"

    याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से मौजूद थे। उन्होंने दया की प्रार्थना की, तो जज ने टिप्पणी की,

    "जब 80 पुलिस वाले लेकर लोगों के घर गिराए, तब भगवान की याद नहीं आई आपको?"

    गौरतलब है कि न्यायालय ने याचिकाकर्ता को तहसीलदार (उप तहसीलदार के बजाय) के पद पर पदावनत करने का प्रस्ताव भी दिया। हालांकि, याचिकाकर्ता सहमत नहीं हुए और उन्होंने बेदाग छूटने की उम्मीद के लिए न्यायालय की नाराजगी मोल ली।

    कोर्ट ने कहा,

    "आपके बच्चों के बारे में सोचते हुए हम आपको जेल जाने से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अगर आप जाना चाहते हैं तो जाइए। 2 महीने तक वहीं रहिए। आपकी नौकरी भी चली जाएगी। इस मामले में सज़ा नहीं मिल सकती। हाईकोर्ट की चेतावनी के बाद अगर कोई इस तरह की हरकत करता है...चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, [वह] कानून से ऊपर नहीं है। हम अपने हाईकोर्ट के आदेशों की इस तरह अवमानना ​​नहीं होने देंगे। हम इसे सज़ा दिए बिना नहीं छोड़ेंगे।"

    कोर्ट ने भरुका को याचिकाकर्ता को समझाने के लिए 10 मिनट का समय दिया।

    जस्टिस गवई ने कहा,

    "अगर वह अड़े हुए हैं तो हम मदद नहीं कर सकते। हम नहीं चाहते...उनका रवैया बिल्कुल साफ है।"

    याचिकाकर्ता जब अपने रवैय्ये पर अड़े रहे तो कोर्ट ने याचिका खारिज करने की इच्छा जताई।

    जस्टिस गवई ने चेतावनी दी,

    "हम उनके खिलाफ ऐसी सख्त टिप्पणियां करेंगे कि कोई भी नियोक्ता उन्हें काम पर रखने की हिम्मत नहीं करेगा। वह प्रोटोकॉल के निदेशक हैं। उन्हें लगता होगा कि वह सरकार के करीब हैं...हम कभी इतने सख्त नहीं होते, लेकिन यहां हम उनकी बातों को समझ सकते हैं। उनकी जिद बहुत कुछ बयां करती है। अगर वह जिद पर अड़े रहे तो हम न केवल उन्हें बर्खास्त करेंगे, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेंगे कि उन्हें फिर से बहाल न किया जाए। हम इससे ज्यादा नरम नहीं हो सकते हैं।"

    अंततः, भरुका के अनुरोध पर मामले को शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

    मामले को खत्म करने से पहले जस्टिस गवई ने कहा,

    "उन्होंने लोगों को उनके घरों से निकाल दिया। हम उनके जैसा नहीं बनना चाहते"।

    इससे पहले एक अवसर पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर कड़ी फटकार लगाई, लेकिन अंततः नरम रुख अपनाते हुए नोटिस जारी किया। हालांकि, उसी समय मौखिक रूप से संकेत दिया गया कि उन्हें जेल जाना होगा, उनके कार्यों के कारण पीड़ित सभी लोगों को भारी कीमत चुकानी होगी और पदावनत होना पड़ेगा। चूंकि याचिकाकर्ता के दो नाबालिग बच्चे हैं, इसलिए नरमी बरतने की अपील के जवाब में जस्टिस गवई ने कहा कि जिन झुग्गीवासियों को उसने बेघर किया, उनके भी बच्चे हैं।

    केस टाइटल: टाटा मोहन राव बनाम एस. वेंकटेश्वरलु और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 10056-10057/2025

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