भारत जैसे देशों के लिए कॉर्मिशियल आर्बिट्रेशन की संस्कृति को बढ़ावा देने का समय आ गया है: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़
Shahadat
7 Jun 2024 4:04 PM IST
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने यू.के. सुप्रीम कोर्ट में भाषण देते हुए कहा कि अब भारत जैसे देशों के लिए कॉर्मिशियल आर्बिट्रेशन (Commercial Arbitration) की मजबूत संस्कृति के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि प्रभावी मध्यस्थता संस्थानों की स्थापना से वैश्विक दक्षिण में इसके अभ्यास को बढ़ावा मिल सकता है। इसके समर्थन में उन्होंने भारत इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर और मुंबई और दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर का उदाहरण दिया। हालांकि, साथ ही सीजेआई ने जोर देकर कहा कि केवल संस्थानों का निर्माण पर्याप्त नहीं है।
सीजेआई ने कहा,
“हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इन नए संस्थानों पर किसी स्वार्थी गिरोह का नियंत्रण न हो। इन संस्थानों को मजबूत व्यावसायिकता और सुसंगत आर्बिट्रेशन प्रक्रियाओं को उत्पन्न करने की क्षमता की नींव पर आधारित होना चाहिए। पारदर्शिता और जवाबदेही, वे मूल्य जिनके द्वारा पारंपरिक न्यायालयों के काम का मूल्यांकन और आलोचना की जाती है, आर्बिट्रेशन की दुनिया से अलग नहीं हो सकते।”
सीजेआई "कॉमर्शियल आर्बिट्रेशन का कानून और अभ्यास: यूके और भारत में साझा समझ और विकास" पर भाषण दे रहे थे। अपने संबोधन की शुरुआत में सीजेआई ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यूके और भारत के बीच एक मजबूत कानूनी संबंध है। इससे संकेत लेते हुए उन्होंने दोनों देशों में मध्यस्थता कानून की उत्पत्ति के बारे में बताया।
आगे बढ़ते हुए उन्होंने कहा कि भारत की अदालतों पर बहुत ज़्यादा बोझ है, 2023 में हाईकोर्ट 2.15 मिलियन मामलों का निपटारा करेंगे और जिला न्यायालय 44.70 मिलियन मामलों को संभालेंगे। उन्होंने आगे कहा कि हालांकि हर पीड़ित व्यक्ति को न्यायोचित उपाय के लिए न्यायालय का रुख करना चाहिए, लेकिन हर मामले का समाधान न्यायालय में ही होना ज़रूरी नहीं है। विवाद समाधान के उभरते हुए तरीके, जैसे आर्बिट्रेशन, स्वीकार्यता प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये तरीके न्याय के वैकल्पिक रास्ते प्रदान करके न्यायपालिका पर बोझ को कम करने में मदद कर सकते हैं।
फिर उन्होंने आर्बिट्रेशन के तीन चरणों के बारे में विस्तार से बताया: 1. आर्बिट्रेशन के लिए पक्षों की आपसी सहमति; 2. आर्बिट्रेशन कार्यवाही; और 2. मध्यस्थता अवार्ड का प्रवर्तन।
उन्होंने आगे कहा,
“आर्बिट्रेशन का भविष्य इन तीन चरणों पर आर्बिट्रेशन के कानून और अभ्यास को सुव्यवस्थित करने में निहित है। आर्बिट्रेशन की प्रैक्टिस और विवादों के निर्णायक के रूप में हमें आर्बिट्रेशन के भविष्य पर विचार करना चाहिए, क्योंकि भविष्य पहले से ही यहाँ है। हमें बस इसे पहचानना है और चुनौतियों का जवाब देने के लिए अपनी कानूनी प्रणालियों को अनुकूलित करना है।”
पहले चरण के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ सिद्धांत के बारे में बात की। यह सिद्धांत गैर-हस्ताक्षरकर्ताओं को मध्यस्थता समझौते से बांधता है, बशर्ते परिस्थितियां हस्ताक्षरकर्ता और संबद्ध गैर-हस्ताक्षरकर्ता दोनों पक्षकारों को बांधने के लिए पक्षों की आपसी मंशा को प्रदर्शित करें। हालांकि, अंग्रेजी अदालतों ने वर्तमान में मध्यस्थता मामलों में इस सिद्धांत के उपयोग को अस्वीकार कर दिया है।
इस पर उन्होंने अपने श्रोताओं को हाल के फैसले से अवगत कराया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस सिद्धांत को भारतीय आर्बिट्रेशन न्यायशास्त्र में बनाए रखा जाना चाहिए। सीजेआई की अगुआई वाली बेंच ने कई पक्षकारों और कई समझौतों से जुड़े जटिल लेन-देन के संदर्भ में पक्षों की मंशा निर्धारित करने में इसकी उपयोगिता को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा,
"भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पक्षों की सहमति निर्धारित करने के लिए आधुनिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया। यह दृष्टिकोण आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल को अनुबंध के प्रदर्शन में गैर-हस्ताक्षरकर्ताओं के आचरण और भागीदारी जैसे वस्तुनिष्ठ तथ्यों को ध्यान में रखने की अनुमति देता है, जिससे आर्बिट्रेशन समझौते से बंधे रहने के उनके व्यक्तिपरक इरादे का निर्धारण किया जा सके।"
अगले चरण यानी आर्बिट्रेशन कार्यवाही पर आते हुए उन्होंने कहा कि आर्बिट्रल स्वायत्तता इन कार्यवाहियों का महत्वपूर्ण पहलू है। आर्बिट्रेशन का चयन करके, पक्ष घरेलू अदालतों को शामिल किए बिना अपने विवादों को हल करने का लक्ष्य रखते हैं। वे आम तौर पर अपने आर्बिट्रेशन को किसी भी स्तर पर स्वतंत्र और न्यायिक हस्तक्षेप से मुक्त रखना पसंद करते हैं। पक्ष आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल को अदालत की भागीदारी के बिना अपने विवादों को निपटाने का अधिकार देते हैं। न्यायिक गैर-हस्तक्षेप का सिद्धांत, जो आर्बिट्रल स्वायत्तता के लिए मौलिक है, कानून में निहित गारंटी है।
इस चरण के दूसरे चरण में उन्होंने आर्बिट्रल की निष्पक्षता और स्वतंत्रता के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता और निष्पक्षता के बीच अंतर है। UNCITRAL मॉडल कानून और भारतीय आर्बिट्रेशन एक्ट दोनों के लिए आर्बिट्रेट को स्वतंत्र और निष्पक्ष होना आवश्यक है।
भारतीय आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 12 में यह अनिवार्य किया गया कि आर्बिट्रेट किसी भी ऐसी परिस्थिति का खुलासा करे, जो उनकी स्वतंत्रता या निष्पक्षता के बारे में उचित संदेह पैदा कर सकती है। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि यूके कानून के तहत आर्बिट्रेट्स के लिए अपनी स्वतंत्रता या निष्पक्षता से संबंधित किसी भी मुद्दे का खुलासा करने की कोई वैधानिक आवश्यकता नहीं है।
आर्बिट्रेशन के अंतिम चरण में सीजेआई ने कहा,
पक्षकारों को अवार्ड्स को लागू करने की आवश्यकता है। उल्लेखनीय रूप से हालांकि इन पक्षों ने अदालतों से बचने के लिए आर्बिट्रेशन का विकल्प चुना, लेकिन वे अपने अवार्ड को लागू करने के लिए इन घरेलू अदालतों पर निर्भर हैं।
उन्होंने कहा,
"इसका उदाहरण यह है कि राष्ट्रीय न्यायालयों को निर्दिष्ट आधारों पर आर्बिट्रल अवार्ड रद्द करने का अधिकार दिया गया, जिसमें यह आधार भी शामिल है कि अवार्ड राज्य की सार्वजनिक नीति के विपरीत है।"
अपने संबोधन के अंत में सीजेआई ने आर्बिट्रेशन में टेक्नोलॉजी की भूमिका पर भी ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि यह आर्बिट्रेशन के भविष्य से निकटता से जुड़ा हुआ है। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि एक पक्ष दिल्ली में हो सकता है, दूसरा बेंगलुरु में और आर्बिट्रेट लंदन, मुंबई और सिंगापुर में हो सकते हैं। हालांकि, टेक्नोलॉजी उन्हें आर्बिट्रेशन में वर्चुअल रूप से भाग लेने की अनुमति देती है।
उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी लागत-प्रभावी और समय-प्रभावी समाधान प्रदान करती है। आर्बिट्रेशन कार्यवाही के सभी स्तरों पर प्रौद्योगिकी को अपनाने से आर्बिट्रेशन कार्यवाही अधिक कुशल और महत्वपूर्ण रूप से अधिक सुलभ हो जाएगी। टेक्नोलॉजी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता दस्तावेजों की समीक्षा या कार्यवाही को प्रतिलेखित करने जैसे मामलों में आर्बिट्रल संस्थानों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में मूल्य जोड़ती है।
हालांकि, इसी के साथ उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि टेक्नोलॉजी न्यायनिर्णयन की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रतिस्थापित नहीं करती। उनके अनुसार, आर्बिट्रेट द्वारा गवाह के आचरण का मूल्यांकन, उसकी व्यक्तिपरकता के बावजूद, महत्वपूर्ण बना हुआ है। उन्होंने तर्क दिया कि वाणिज्यिक विवादों का आर्बिट्रेशन करना स्वाभाविक रूप से जटिल है और इसे गणितीय समीकरण में सरल नहीं किया जा सकता। इसके बजाय, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण निर्णय तक पहुंचने के लिए मानव मन के स्पर्श और अनुभूति की आवश्यकता होती है।
अंत में, उन्होंने आर्बिट्रेशन कानून की दक्षता बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट सहित वैश्विक दक्षिण में न्यायालयों द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर जोर देते हुए अपना संबोधन समाप्त किया।
उन्होंने कहा,
“हम लगातार तुलनात्मक कानून से प्रेरणा लेते हैं। उभरती दुनिया में भारत के स्थान को बनाए रखने के लिए हमारी दृष्टि सीमाओं से परे जाती है। अगला कदम वैश्विक दक्षिण से अधिक लोगों को वकील और वाणिज्यिक मध्यस्थ के रूप में कार्य करने के लिए आकर्षित करना है। भारत के आर्बिट्रेशन बार के निर्माण के साथ कदम उठाए जा रहे हैं। भारतीय बार और बेंच के साथ कॉमबार की निरंतर भागीदारी हमारे काम में पारस्परिक जुड़ाव पैदा करेगी। जैसा कि मैंने अपने व्याख्यान की शुरुआत में कहा था, आर्बिट्रेशन का भविष्य पहले से ही यहां है। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उभरती चुनौतियों का सामना करें।”