'दया नहीं मांग रहे हैं, हम ज्यूडिशियल स्टेटमैनशिप चाहते हैं' : प्रशांत भूषण अवमानना मामले में धवन ने सुप्रीम कोर्ट मेंं कहा

LiveLaw News Network

25 Aug 2020 4:15 PM GMT

  • दया नहीं मांग रहे हैं, हम ज्यूडिशियल स्टेटमैनशिप चाहते हैं : प्रशांत भूषण अवमानना मामले में धवन ने सुप्रीम कोर्ट मेंं कहा

    अवमानना मामले में अधिवक्ता प्रशांत भूषण की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि वह दया नहीं चाह रहे हैं बल्कि ''ज्यूडिशियल स्टेटमैनशिप (न्यायिक शासन कला) की मांग कर रहे हैं।

    जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की खंडपीठ के समक्ष डाॅ राजीव धवन ने कहा कि,''हम दया की मांग नहीं कर रहे हैं। हम इस अदालत से स्टेटमैनशिप की मांग कर रहे हैं।'' यह पीठ अवमानना मामले में सजा देने पर सुनवाई कर रही थी।

    जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने मंगलवार को एडवोकेट प्रशांत भूषण के खिलाफ उनके ट्वीटस को लेकर कंटेम्प्ट केस 2020 में फैसला सुरक्षित रख लिया।

    धवन ने कहा कि भूषण द्वारा अपने बयानों को वापस लेने का ''कोई सवाल नहीं'' है और उनके हलफनामे को रिकॉर्ड से निकाल कर देखा जा सकता है।

    यह बात उस समय कही गई,जब न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने इस बात पर नाराज़गी ई कि भूषण ने अदालत द्वारा निर्धारित समय के भीतर ''बिना शर्त माफी'' मांगने के बजाय अपने रुख की पुष्टि करने के लिए मामले में एक पूरक बयान दायर किया है।

    न्यायमूर्ति मिश्रा ने भूषण द्वारा दायर पूरक बयान के संदर्भ में कहा कि, ''हमें इससे कुछ बेहतर की उम्मीद थी। अगर उन्हें लगता है कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है तो क्या किया जा सकता है।''

    डॉ धवन ने न्यायालय द्वारा पारित 20 अगस्त के उस आदेश की भी आलोचना की,जिसमें भूषण को माफी मांगने के लिए 24 अगस्त तक का समय दिया गया था। उन्होंने कहा कि इस आदेश ने यह धारणा दी है कि न्यायालय उनसे जबरदस्ती माफी मंगवा रहा है।

    धवन ने कहा कि, ''जिस आदेश में कहा गया है कि केवल बिना शर्त माफी ही स्वीकार की जाएगी,वह जोर-जबरदस्ती जैसा ही है।''

    ''कानून के शिकंजे से बचने के लिए माफी नहीं मांगी जा सकती है। माफी तो दिल से मांगनी पड़ती है'', धवन ने यह स्पष्ट करते हुए कहा कि भूषण को उसके बोनाफाइड बिलिफ की अभिव्यक्ति के लिए माफी मांगने के लिए नहीं कहा जा सकता है।

    जब कोर्ट ने डॉ धवन से पूछा कि इस मामले में उपयुक्त सजा क्या हो सकती है, तो उन्होंने जवाब दिया कि दो प्रकार के दंड दिए जा सकते हैं - एक, वकील को एक निश्चित अवधि के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने से रोकना, दूसरा उसे अदालत की अवमानना अधिनियम में निर्धारित सजा दी जा सकती है।

    हालांकि, धवन ने इस बात के लिए भी चेताया कि सजा का असर यह होगा कि भूषण एक शहीद बन जाएंगे और कहा कि भूषण को शहादत नहीं चाहिए।

    ''अगर भूषण को दंडित किया जाता है, तो लेखों का एक सेट उन्हें शहीद कहेगा और लेखों का एक सेट यह कहेगा कि उन्हें ठीक तरीके से दंडित किया गया था। हम सभी इस विवाद को समाप्त करना चाहते हैं। यह केवल ज्यूडिशियल स्टेट्समैनशिप के जरिए ही समाप्त हो सकता है।''

    धवन ने सुझाव दिया कि अदालत ''ज्यूडिशियल स्टेट्समैनशिप'' दिखा सकती है और यह कहकर मामले को बंद कर सकती है कि ''हमने उनके बयान को ध्यान में रखा है। हालाँकि हम उनके द्वारा कही गई कई बातों से असहमत हैं। इसलिए हम उन्हें सावधान करते हैं कि वे अदालत की आलोचना करते समय थोड़ा संयमित रहें और तथ्यों पर यकीन रखें।''

    सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा ने यह भी पूछा कि माफी मांगने में क्या समस्या थी?

    न्यायमूर्ति मिश्रा ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि-

    ''हमें बताएं कि 'माफी' शब्द का उपयोग करने में क्या गलत है? माफी मांगने में क्या गलत है? क्या यह दोषी होने का प्रतिबिंब होगा? माफी एक जादुई शब्द है, जो कई चीजों को ठीक कर सकता है। मैं प्रशांत के बारे में नहीं बल्कि सामान्य तौर पर बात कर रहा हूं। यदि आप माफी मांगते हैं तो आप महात्मा गंगी की श्रेणी में आ जाएंगे। गांधीजी ऐसा करते थे। यदि आपने किसी को चोट पहुंचाई है, तो आपको मरहम लगाना चाहिए। किसी को ऐसा करने से अपने आप को छोटा या अपमानित महसूस नहीं करना चाहिए।''

    सुनवाई का पूरा अपडेट यहां पढ़ा जा सकता है।

    Next Story