हिंसा में शामिल होने के सबूत नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने सीएए प्रोटेस्ट के दौरान बस जलाने के आरोप में गिरफ़्तार हुए व्यक्ति को ज़मानत दी
LiveLaw News Network
6 Feb 2020 2:51 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने 49 दिनों तक हिरासत में रहने के बाद सोमवार को दानिश जाफ़र को ज़मानत दे दी। जाफ़र को जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के पास सीएए के ख़िलाफ़ 15 दिसंबर 2019 को हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान बस जलाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था।
जाफ़र के ख़िलाफ़ जामिया नगर पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया गया था, जिसमें कहा गया था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 और एनपीआर के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया और प्रदर्शनकारियों ने बसें जला दीं, वाहनों को क्षति पहुंचाया और पत्थर फेंककर पुलिसवालों को घायल कर दिया। प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ दंगा करने और लोगों को जान से मार देने के प्रयास के से संबंधित मामले दर्ज किए गए साथ ही सार्वजनिक संपत्तियों को नुक़सान पहुंचाने से संबंधित अधिनियम, 1984 के तहत भी मामला दर्ज किया गया।
राज्य सरकार के वक़ील ने इस ज़मानत का विरोध किया और कहा कि याचिकाकर्ता उन लोगों में शामिल था जो हिंसा कर रहे थे और इन लोगों ने जामिया नगर के क़ब्रिस्तान पुलिस चौकी को भी फूंक दिया था।
सरकारी वक़ील ने अदालत में कहा कि याचिकाकर्ता को 16 दिसंबर को उसके घर के पास से गिरफ़्तार किया गया और हिंसा के बारे में सीसीटीवी फुटेज का भी विश्लेषण किया जा रहा है और यह कि आवेदनकर्ता एक आदतन अपराधी है और इससे पहले भी इसी तरह के मामलों में लिप्त रहा है।
अपीलकर्ता के वक़ील ने कहा कि अपीलकर्ता पेशे से प्लंबर है और उसको फंसाने के लिए उसके ख़िलाफ़ कई तरह के मामले दर्ज कर दिए गए हैं। उसके ख़िलाफ़ दो एफआईआर 2013 के हैं, जब वह नाबालिग़ था। उसके ख़िलाफ़ एक एफआईआर की स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को बरी कर दिया गया है और दूसरे एफआईआर में न तो उसका नाम दिया गया है और न ही उसे कभी अदालत में बुलाया गया।
दिल्ली पुलिस के ट्विटर हैंडल के प्रिंटआउट्स भी अदालत में पेश किए गए जिसमें 71 लोगों प्रदर्शनकारियों के फ़ोटो थे, जिन्हें सीसीटीवी फुटेज से पहचाना गया है। हालांकि इसमें आवेदनकर्ता शामिल नहीं है।
इन दलीलों के आधार पर न्यायमूर्ति विभू बखरू ने यह कहते हुए कि उसके शामिल होने के बारे में सबूत पर्याप्त नहीं हैं अपीलकर्ता को ज़मानत दे दी।
जज ने कहा, "विरोध प्रदर्शन और बोलने की आज़ादी को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता; पर किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन नहीं किया जा सकता। हालांकि, वर्तमान मामले में, अपीलकर्ता के हिंसक कार्रवाइयों में शामिल होने के पर्याप्त सबूत नहीं हैं।"
जज ने उसे ₹5000 के निजी मुचलके और एक स्योरिटी देने की शर्त पर ज़मानत दी। उसे कहा गया कि वह हर सोमवार जामिया नगर थाने पर हाज़िरी देगा और अनुशासित रहेगा।
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