'कोर्ट की गलती का फायदा कोई नहीं उठा सकता': सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा बढ़ाने के 'अनजाने में' दिए आदेश पर भरोसा करने से इनकार किया

LiveLaw News Network

27 Sep 2021 7:54 AM GMT

  • कोर्ट की गलती का फायदा कोई नहीं उठा सकता: सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा बढ़ाने के अनजाने में दिए आदेश पर भरोसा करने से इनकार किया

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आदेश पारित करने में अदालत से अनजाने में हुई गलती का कोई पक्ष लाभ नहीं उठा सकता है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 1976 में जारी एक अधिसूचना के अनुसार नोएडा प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहित भूमि के मुआवजे में वृद्धि की मांग की गई थी।

    अपीलकर्ताओं ने मंगू बनाम यूपी राज्य के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2014 के फैसले पर भरोसा किया था। उक्त मामले में हाईकोर्ट ने अपीलों के एक बैच के निपटान के लिए एक सामान्य निर्णय पारित किया था, जो मुख्य रूप से 1992 में हुए भूमि अधिग्रहण से संबंधित थे। हालांकि, अधिग्रहण से संबंधित अपीलों में से एक 1977 की थी, जिसे 'अनजाने में' 1992 के अधिग्रहण से संबंधित अन्य अपीलों के साथ टैग किया गया। चूंकि हाईकोर्ट ने वृद्धि के लिए एक सामान्य आदेश पारित किया था, 1977 के अधिग्रहण के भूमि मूल्य में भी 1992 के अधिग्रहण के साथ-साथ 'यांत्रिक रूप से' वृद्धि हुई।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ताओं ने 1977 के मामले के लिए हाईकोर्ट द्वारा दी गई इस वृद्धि पर भरोसा किया।

    हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1977 के अधिग्रहण से संबंधित मामले को अनजाने में 1992 के अधिग्रहण से संबंधित मामलों के अन्य बैच के साथ टैग कर दिया गया था। इस तथ्य को किसी ने हाईकोर्ट को नहीं बताया। इसलिए, हाईकोर्ट ने अपीलों के बैच में 1977 के अधिग्रहण से संबंधित मामले की उपस्थिति पर ध्यान दिए बिना सभी मामलों के लिए "यांत्रिक रूप से" मुआवजे में वृद्धि की।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा , "... इस तरह 1977 और 1991 के अधिग्रहण के संबंध में अंतर पर ध्यान न देना हाईकोर्ट की ओर से एक गलती थी।"

    कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता हाईकोर्ट की गलती का फायदा नहीं उठा सकते।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "किसी को भी अदालत या किसी भी पक्ष की गलती का लाभ लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जो गलती अनजाने में और अजीबोगरीब तथ्यों को देखे बिना हुई है। ऐसे में दावेदारों का यह कर्तव्य था कि वे सही तथ्य को इंगित करें।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि नोएडा प्राधिकरण ने इस गलती को ध्यान में रखते हुए एक समीक्षा याचिका दायर की है, और उक्त समीक्षा याचिका पर फैसला लंबित है। इस पृष्ठभूमि में, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर अपीलकर्ताओं के तर्कों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

    बाद के अधिग्रहण के लिए दिए गए मूल्य पर विचार नहीं किया जा सकता

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी देखा कि भूमि के बाजार मूल्य का निर्धारण करते समय किसी अन्य भूमि को दिए गए मुआवजे, जिसे बाद में अधिग्रहित किया गया था, पर विचार नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस शाह द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया है, "कानून के तय प्रस्ताव के अनुसार, बाद में अधिग्रहित भूमि के लिए निर्धारित मुआवजे को तुलनीय नहीं कहा जा सकता है।"

    अपीलकर्ताओं ने यह तर्क देने के लिए कि उनकी भूमि का बाजार मूल्य ठीक से निर्धारित नहीं किया गया था, 1983 में अधिग्रहित भूमि को दिए गए मुआवजे पर भरोसा किया। पीठ ने इस तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि बाद के अधिग्रहण के लिए दिए गए मुआवजे को ध्यान में नहीं रखा जा सकता है।

    "कानून की निर्धारित पूर्वधारणा के अनुसार, बाद में अधिग्रहित भूमि के लिए निर्धारित मुआवजे को तुलनीय नहीं कहा जा सकता है। अन्यथा तथ्यों और परिस्थितियों में भी इसे तुलनीय नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह रिकॉर्ड पर आ गया है कि वर्ष 1976 में जब विचाराधीन भूमि का अधिग्रहण किया गया था, तब कोई विकास नहीं हुआ था, हालांकि 1980 के बाद विकास हुआ था और यहां तक ​​कि विकास योजना को उस समय स्वीकृत किया गया था जब वर्ष 1983 भूमि का अधिग्रहण किया गया था। इसलिए, उपरोक्त अनुरोध को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।"

    केस शीर्षक: अजय पाल सिंह और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

    कोरम: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना

    सिटेशन : एलएल 2021 एससी 501

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