निर्भया मामला : दोषी विनय की राष्ट्रपति के दया याचिका खारिज करने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

LiveLaw News Network

13 Feb 2020 8:56 AM GMT

  • निर्भया मामला : दोषी विनय की राष्ट्रपति के दया याचिका खारिज करने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

    2012 के दिल्ली गैंगरेप और हत्या केस में मौत की सजा पाने वाले चार दोषियों में से एक विनय शर्मा की उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है जिसमें मंगलवार को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा उनकी दया याचिका की अस्वीकृति को चुनौती दी गई है।

    न्यायमूर्ति आर बानुमति, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ ने गुरुवार को फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि पीठ शुक्रवार दोपहर 2 बजे फैसला सुनाएगी ।

    सुनवाई के दौरान विनय की ओर से पेश वकील एपी सिंह ने कहा कि विनय के साथ 'पिक एंड चूज़' की नीति अपनाई जा रही है ये मामला राजनीतिक तरीके से लिया गया और कई नेताओं ने चुनावी प्रेस कांफ्रेंस में इस पर बयान दिए ।

    उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने भी 48 घंटे में याचिका खारिज कर दी और उनके सामने सारे तथ्य नहीं रखे गए, जबकि जेल में प्रताड़ना की वजह से विनय की मानसिक हालत भी खराब हो गई, लेकिन जेल प्रशासन ने ये तथ्य राष्ट्रपति के सामने नहीं रखे।

    सिंह ने कहा कि नियम ये है कि यदि कोई दोषी मानसिक रूप से बीमार है तो उसे फांसी नहीं दी जा सकती। उन्होंने आरोप लगाया कि फाइल पर हस्ताक्षर भी नहीं हैं। वहीं सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध किया और कहा कि दोषियों की नियमित मानसिक और शारीरिक जांच की जाती रही है और ये तमाम रिपोर्ट राष्ट्रपति के सामने रखी गई थीं।

    तुषार ने कहा कि गृहमंत्रालय ने इस याचिका पर विचार करने के बाद इसे खारिज करने का सिफारिश की थी और इस मामले को दुर्लभतम से दुर्लभ श्रेणी काम अपराध माना है ।

    दरअसल वकील एपी सिंह के माध्यम से दायर याचिका में, विनय शर्मा ने दावा किया है कि जेल में क्रूर और अमानवीय व्यवहार के कारण उसे " मानसिक आघात" का सामना करना पड़ा और जेल में यातना भी दी गई।

    उसने यह भी आरोप लगाया कि उसे एकांत कारावास में रखा गया था जो मानदंडों का उल्लंघन करता है। कई मेडिकल रिकॉर्ड में कहा गया है कि शारीरिक चोट और यातना के कारण उसके शरीर पर चोटें आई थीं शर्मा ने दावा किया कि अवसाद, चिंता और समायोजन विकारों के कारण वो मानसिक और व्यवहार संबंधी मुद्दों का सामना कर रहा है

    याचिका में "शत्रुघ्न चौहान" मामले में उच्चतम न्यायालय के 2014 के फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि मानसिक बीमारी के दोषियों को मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए।

    यह तर्क दिया गया है कि राष्ट्रपति ने बिना रिकॉर्ड के संबंधित सामग्री पर विचार किए सरसरी तौर पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत दया की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में कहा गया है कि ईपुरु सुधाकर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रपति का आदेश न्यायिक समीक्षा के अधीन भी है।

    दरअसल सर्वोच्च न्यायालय ने 29 जनवरी को एक अन्य दोषी मुकेश सिंह द्वारा दया याचिका की अस्वीकृति के खिलाफ दायर एक ऐसी ही रिट याचिका को खारिज कर दिया था। पीठ ने इस मामले में कहा था कि राष्ट्रपति के आदेश पर न्यायिक समीक्षा की एक सीमित गुंजाइश है और यह माना कि अस्वीकृति आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए कोई आधार नहीं बनाया गया था।

    17 जनवरी को पटियाला हाउस अदालत द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार, दोषियों को 1 फरवरी को सुबह 6 बजे फांसी दी जानी थी लेकिन इस आदेश को ट्रायल कोर्ट ने 31 जनवरी को इस आधार पर रोक दिया था कि सभी दोषियों ने अपने हर कानूनी उपाय को समाप्त नहीं किया है। दो दोषियों की दया याचिका तब लंबित थी।

    ट्रायल कोर्ट ने माना कि इन दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती है क्योंकि उन्हें ही एक सामान्य आदेश द्वारा सजा सुनाई गई थी।हालांकि केंद्र ने इस आदेश को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया।

    कोर्ट ने, हालांकि, दोषियों द्वारा अपनाई गई "देरी की रणनीति" को देखते हुए निर्देश दिया था कि उन्हें 5 फरवरी से शुरू होने वाले सात दिनों के भीतर अपने उपचार को समाप्त करना चाहिए।

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