निर्भया गैंगरेप : पटियाला हाउस कोर्ट में फिर टली डेथ वारंट पर सुनवाई, जज ने कहा, कानून से बाहर नहीं जा सकते

LiveLaw News Network

13 Feb 2020 12:38 PM GMT

  • निर्भया गैंगरेप : पटियाला हाउस कोर्ट में फिर टली डेथ वारंट पर सुनवाई, जज ने कहा, कानून से बाहर नहीं जा सकते

    दिल्ली गैंगरेप- हत्या मामले में पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया के माता- पिता और सरकार की उस अर्जी पर सुनवाई को 17 फरवरी के लिए टाल दिया है, जिसमें दोषियों के लिए नया डेथ वारंट जारी करने का आग्रह किया गया है। हालांकि अदालत ने दोषी पवन को दिल्ली लीगल सर्विस अथॉरिटी की ओर से दिए गए वकील को नियुक्त कर दिया है ।

    दरअसल अभी तक तीन दोषियों अक्षय सिंह, विनय शर्मा और पवन गुप्ता की पैरवी कर रहे वकील एपी सिंह अब पवन के वकील नहीं हैं। इसके चलते पटियाला हाउस कोर्ट ने पवन को से वकील देने को कहा था ।

    गुरुवार को सुनवाई के दौरान निर्भया के घरवालों की ओर से कहा गया कि अब नया डेथ वारंट जारी किया जा सकता है, लेकिन दो दोषियों के वकील ए पीसिंह ने बताया कि विनय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार दोपहर फैसला सुनाने के लिए कहा है ।

    वहीं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा कि पवन को वकील दिए बिना और उसका पक्ष सुने बिना ये कदम कैसे उठाया जा सकता है ।

    अदालत ने मामले को 17 फरवरी के लिए टाल दिया। इससे नाराज निर्भया की मां ने कहा कि वो रोज सुनवाई में आती हैं और रोजाना ये टल जाती है । इस पर अदालत ने कहा कि वो कानून से बाहर नहीं जा सकते ।

    दरअसल मंगलवार को पटियाला हाउस कोर्ट ने इस याचिका पर दोषियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।बुधवार को अदालत ने सुनवाई शुरू की तो बताया गया कि वकील एपी सिंह ने दोषी पवन के लिए नोटिस लेने से इनकार करते हुए कहा था कि वो उसके वकील अब नहीं है इस पर अदालत ने मुकेश की वकील वृंदा ग्रोवर से पूछा तो उन्होंने इससे इनकार कर दिया था । अदालत ने लीगल एड से अधिकारी को वकीलों की सूची के साथ बुलाया और सूची जेल प्रशासन को देते हुए निर्देश दिया था कि दोषी को इसमें से वकील चुनने के लिए कहा जाए ।

    17 जनवरी को पटियाला हाउस अदालत द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार, दोषियों को 1 फरवरी को सुबह 6 बजे फांसी दी जानी थी। इस आदेश को ट्रायल कोर्ट ने 31 जनवरी को इस आधार पर रोक दिया था कि सभी दोषियों ने अपने हर कानूनी उपाय को समाप्त नहीं किया है। दो दोषियों की दया याचिका तब लंबित थी। ट्रायल कोर्ट ने माना कि इन दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती है क्योंकि उन्हें ही एक सामान्य आदेश द्वारा सजा सुनाई गई थी।

    हालांकि केंद्र ने इस आदेश को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया। कोर्ट ने, हालांकि, दोषियों द्वारा अपनाई गई "देरी की रणनीति" को देखते हुए निर्देश दिया था कि उन्हें 5 फरवरी से शुरू होने वाले सात दिनों के भीतर अपने उपचार को समाप्त करना चाहिए।

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