NEET-UG : सुप्रीम कोर्ट ने फीस जमा करने की समय-सीमा चूकने पर MBBS सीटें गंवाने वाले तमिलनाडु के छात्रों को राहत दी
Praveen Mishra
5 Dec 2025 7:19 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने आज (5 दिसंबर) तमिलनाडु के तीन NEET-UG अभ्यर्थियों को राहत देते हुए उन्हें MBBS प्रवेश के लिए फीस जमा करने का एक और मौका दिया। तकनीकी कारणों और बैंक अवकाश के चलते समय पर फीस नहीं भर पाने से उनकी सीटें रद्द हो गई थीं।
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर की खंडपीठ ने छात्रों को 10 दिसंबर (बुधवार) तक फीस जमा करने की अनुमति दी। हालांकि प्रारंभ में कोर्ट ने कहा कि केवल आर्थिक कठिनाई को आधार बनाकर राहत देना “पैंडोरा बॉक्स खोलने जैसा” होगा। लेकिन जब यह बताया गया कि अंतिम तिथि बैंक अवकाश (द्वितीय शनिवार) थी और तकनीकी समस्याएँ भी थीं, तो कोर्ट ने विशेष परिस्थितियों को देखते हुए राहत दी। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश को भविष्य के मामलों के लिए मिसाल नहीं माना जाएगा।
कोर्ट ने राज्य को निर्देश दिया कि उपलब्ध मैनेजमेंट कोटा की खाली सीटों से इन छात्रों को प्रवेश दिया जाए, ताकि वे अपनी गलती से नहीं बल्कि नियंत्रण से बाहर परिस्थितियों के कारण अवसर से वंचित न हों।
मामला कैसे पहुँचा सुप्रीम कोर्ट?
एक याचिकाकर्ता विक्श ने कहा कि भुगतान की अंतिम तिथि बैंक अवकाश होने के कारण वह फीस जमा नहीं कर पाए।
बाकी दो अभ्यर्थी आर्थिक कठिनाइयों के कारण भुगतान नहीं कर सके। इनमें से एक अभ्यर्थी, शिल्पा सुरेश, ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने उसे राहत देने से इनकार कर दिया था।
शिल्पा ने NEET-UG 2025-26 में 251 अंक हासिल किए थे और 3 नवंबर 2025 को माधा मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट में सीट मिली थी। उसे 8 नवंबर तक रिपोर्ट करना था, लेकिन द्वितीय शनिवार (बैंक अवकाश) होने के कारण वह NEFT/RTGS से ₹15,00,000 की फीस जमा नहीं कर पाई।
उनके अनुसार, कॉलेज से संपर्क करने की भी कोशिश की गई, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। परिणामस्वरूप सीट को खाली मानकर stray vacancy के लिए जोड़ दिया गया।
मद्रास हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने पहले उसे राहत दी थी, लेकिन बाद में जस्टिस एस.एम. सुब्रमण्यम और जस्टिस मोहम्मद शफीक की डिवीजन बेंच ने यह आदेश रद्द कर दिया। बेंच ने कहा कि प्रॉस्पेक्टस में तय टाइम-स्कीम का पालन सभी को करना चाहिए, क्योंकि कई अन्य छात्र भी समय पर रिपोर्ट न कर पाने के कारण प्रभावित हो सकते हैं।
हालांकि आदेश रद्द करने के बाद बेंच ने छात्रा से बातचीत कर उसे अन्य कोर्स चुनकर आगे बढ़ने की सलाह दी।
इसी तरह अन्य दो छात्र भी समान राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुँचे थे।

