म्यूटेशन एंट्री किसी भी व्यक्ति के पक्ष में कोई अधिकार, स्वत्वाधिकार या सरोकार प्रदान नहीं करती : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

9 Sep 2021 5:45 AM GMT

  • म्यूटेशन एंट्री किसी भी व्यक्ति के पक्ष में कोई अधिकार, स्वत्वाधिकार या सरोकार प्रदान नहीं करती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजस्व रिकॉर्ड में म्यूटेशन (दाखिल खारिज) प्रविष्टि केवल वित्तीय उद्देश्यों के लिए है और यह किसी व्यक्ति के पक्ष में कोई अधिकार, स्वत्वाधिकार या हित सरकार प्रदान नहीं करती है।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने कहा,

    "यदि टाइटल (स्वत्वाधिकार) के संबंध में कोई विवाद है और विशेष रूप से जब वसीयत के आधार पर म्यूटेशन प्रविष्टि की मांग की जाती है, तो जो पक्ष वसीयत के आधार पर स्वत्वाधिकार / अधिकार का दावा कर रहा है, उसे उपयुक्त सिविल कोर्ट/ अदालत का दरवाजा खटखटाना होता है और उसके अधिकारों को स्पष्ट कराना होता है और उसके बाद ही सिविल कोर्ट के समक्ष निर्णय के आधार पर आवश्यक म्यूटेशन एंट्री की जा सकती है।"

    इस मामले में रीवा संभाग के एडिशनल कमिश्नर ने याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत वसीयत के आधार पर राजस्व रिकॉर्ड में उसका नाम बदलने का निर्देश दिया. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कुछ पक्षों द्वारा दायर एक याचिका में आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को 20.05.1998 की कथित वसीयत के आधार पर अपने अधिकारों को स्पष्ट करने के लिए उपयुक्त अदालत का दरवाजा खटखटाने का निर्देश दिया। इसलिए याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर की।

    बेंच ने कहा,

    "5.. जैसा कि यह हो सकता है, कानून के तय नियमों के अनुसार, म्यूटेशन प्रविष्टि व्यक्ति के पक्ष में कोई अधिकार, स्वत्वाधिकार या सरोकार प्रदान नहीं करती है और राजस्व रिकॉर्ड में म्यूटेशन प्रविष्टि केवल वित्तीय उद्देश्य के लिए है। कानून के तय प्रक्रियाओं के अनुसार, यदि टाइटल के संबंध में कोई विवाद है और विशेष रूप से जब वसीयत के आधार पर म्यूटेशन प्रविष्टि की मांग की जाती है, तो वसीयत के आधार पर टाइटल/ अधिकार का दावा करने वाली पार्टी को उपयुक्त सिविल कोर्ट/अदालत का रुख करना होगा और अपने अधिकारों को स्पष्ट कराना होगा और उसके बाद ही सिविल कोर्ट के निर्णय के आधार पर आवश्यक म्यूटेशन एंट्री की जा सकती है।"

    अदालत ने 'बलवंत सिंह बनाम दौलत सिंह (मृत) (1997) 7 एससीसी 137' मामले में दिये गये फैसले का उल्लेख किया।

    कोर्ट ने कहा,

    "1997 से ही, कानून बहुत स्पष्ट है। 'बलवंत सिंह बनाम दौलत सिंह (मृत) (कानूनी प्रतिनिधियों के जरिये) (1997) 7 एससीसी 137' मामले में रिपोर्ट किया गया, इस न्यायालय के पास म्यूटेशन के प्रभाव पर विचार करने का अवसर था और यह देखा गया है और माना जाता है कि राजस्व अभिलेखों में संपत्ति का म्यूटेशन न तो संपत्ति का स्वत्वाधिकार बनाता है और न ही समाप्त करता है और न ही इसका टाइटल के लिए कोई अनुमानात्मक महत्व है। ऐसी प्रविष्टियां केवल भू-राजस्व एकत्र करने के उद्देश्य से प्रासंगिक हैं। इसी तरह का विचार उसके बाद के कई निर्णयों में व्यक्त किया गया है।"

    पीठ ने आगे कहा कि सूरज भान बनाम वित्तीय आयुक्त, (2007) 6 एससीसी 186 में, यह माना गया था कि राजस्व रिकॉर्ड में एक प्रविष्टि उस व्यक्ति को शीर्षक प्रदान नहीं करती है जिसका नाम रिकॉर्ड-ऑफ-राइट्स में दिखाई देता है।

    यह नोट किया,

    "राजस्व रिकॉर्ड या जमाबंदी में प्रविष्टियों का केवल "वित्तीय उद्देश्य" होता है, अर्थात, भू-राजस्व का भुगतान, और ऐसी प्रविष्टियों के आधार पर कोई स्वामित्व प्रदान नहीं किया जाता है। यह आगे देखा गया है कि जहां तक संपत्ति के शीर्षक का संबंध है, यह केवल एक सक्षम सिविल कोर्ट द्वारा तय किया जा सकता है।"

    पीठ ने आगे कहा कि 'सूरज भान बनाम वित्तीय आयुक्त, (2007) 6 एससीसी 186' मामले में, यह माना गया था कि राजस्व रिकॉर्ड में एक प्रविष्टि उस व्यक्ति को टाइटल प्रदान नहीं करती है जिसका नाम रिकॉर्ड-ऑफ-राइट्स में दिखाई देता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "राजस्व रिकॉर्ड या जमाबंदी में प्रविष्टियों का केवल "वित्तीय उद्देश्य" होता है, अर्थात, भू-राजस्व का भुगतान, और ऐसी प्रविष्टियों के आधार पर कोई स्वामित्व प्रदान नहीं किया जाता है। यह भी कहा गया है कि जहां तक संपत्ति के स्वत्वाधिकार का संबंध है, यह केवल एक सक्षम सिविल कोर्ट द्वारा तय किया जा सकता है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि 'सुमन वर्मा बनाम भारत सरकार, (2004) 12 एससीसी 58', 'फकरुद्दीन बनाम ताजुद्दीन (2008) 8 एससीसी 12'; 'राजिंदर सिंह बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य, (2008) 9 एससीसी 368'; नगर निगम, औरंगाबाद बनाम महाराष्ट्र सरकार, (2015) 16 एससीसी 689'; 'टी. रवि बनाम बनाम चिन्ना नरसिम्हा, (2017) 7 एससीसी 342'; 'भीमाबाई महादेव कम्बेकर बनाम आर्थर आयात और निर्यात कं, (2019) 3 एससीसी 191'; 'प्रह्लाद प्रधान बनाम सोनू कुम्हार, (2019) 10 एससीसी 259'; और 'अजीत कौर बनाम दर्शन सिंह, (2019) 13 एससीसी 70. 7' मामलों में भी इसी तरह के मंतव्य दिये गये हैं।

    हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए बेंच ने विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी।

    केस: जितेंद्र सिंह बनाम मध्य प्रदेश सरकार; एसएलपी (सी) 13146/2021

    साइटेशन : एलएल 2021 एससी 430

    कोरम: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस

    वकील: याचिकाकर्ता के लिए अधिवक्ता राजेश इनामदार, प्रतिवादी के लिए अधिवक्ता जी.वी. चंद्रशेखर

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