Murshidabad Violence मामले में याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार, 'कुछ बयानों' पर जताई आपत्ति
Shahadat
21 April 2025 7:55 AM

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा की कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग करने वाली याचिका में किए गए कुछ बयानों पर आपत्ति जताई।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने व्यक्तिगत रूप से पेश हुए याचिकाकर्ता एडवोकेट शशांक शेखर झा से कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में किए गए बयानों के साथ सावधान और जिम्मेदार होना चाहिए।
जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ता से कहा,
"हमें हमेशा संस्था की अखंडता और मर्यादा को बनाए रखना चाहिए। सोचें कि कौन से बयान दिए जाने चाहिए और कौन से हटाए जाने चाहिए। प्रचार की तलाश न करें। ठंडे दिमाग से सोचें।"
जस्टिस कांत ने कहा कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट आर्काइव कोर्ट है, इसलिए कोर्ट में दायर की गई दलीलें भावी पीढ़ियों के लिए होंगी। इसलिए दलीलों में शालीनता बनाए रखने और आपत्तिजनक बयानों से बचने की आवश्यकता है।
जस्टिस कांत ने उनसे कहा,
"हम हर उस नागरिक का सम्मान करते हैं, जो हमारे पास आना चाहता है, उनका स्वागत है। लेकिन जिम्मेदारी की भावना के साथ। जो भी बयान दिए जा रहे हैं, उनके बारे में सावधान रहें।"
जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ता से बार में उनकी स्थिति और एक सीनियर के साथ उनके अनुभव के बारे में पूछा। उन्होंने जवाब दिया कि वह सात साल के प्रैक्टिशनर हैं और उन्होंने पहले भी कुछ जनहित याचिकाएं दायर की हैं।
जस्टिस कांत ने आगे पूछा कि याचिकाकर्ता अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र का आह्वान क्यों नहीं कर सकता तो उन्होंने जवाब दिया कि पश्चिम बंगाल के कई लोग, जो हिंसा के कारण राज्य से बाहर चले गए हैं, उन्होंने उनसे संपर्क किया था। इसलिए वह हाईकोर्ट न जाकर सुप्रीम कोर्ट चले आए।
जस्टिस कांत ने तब कहा कि याचिका में ऐसे व्यक्तियों का कोई विवरण नहीं है।
जस्टिस कांत ने पूछा,
"हमें ऐसे व्यक्तियों का विवरण दें।"
लोगों के दूसरे राज्यों में पलायन के बारे में सूचना के स्रोत के बारे में पूछे जाने पर याचिकाकर्ता ने कहा,
"मीडिया रिपोर्ट्स।"
इस पर जस्टिस कांत ने कहा,
"तो आपने मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर याचिका दायर की है! आपने इसका सत्यापन कहां किया है?"
जस्टिस कांत ने याचिकाओं में इस्तेमाल किए गए कुछ शब्दों और वाक्यांशों पर आपत्ति जताई। जब याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ऐसे वाक्यांश बंगाल की स्थिति के बारे में रेलवे द्वारा केंद्र को जारी किए गए संचार का हिस्सा हैं तो जस्टिस कांत ने पूछा कि उन्हें ऐसे आंतरिक संचार कैसे मिले।
जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ता से आगे सवाल किया,
"यहां इस शब्द का इस्तेमाल न करें। क्या आपको दलीलों में ऐसे भावों का इस्तेमाल करना चाहिए? ऐसे कथन नहीं हो सकते, जो पहली नज़र में आपत्तिजनक हों।"
जज ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता ने उन लोगों के खिलाफ आरोप लगाए हैं, जिन्हें याचिका में पक्ष नहीं बनाया गया। जब याचिकाकर्ता ने कहा कि आरोप सरकारी अधिकारियों के खिलाफ लगाए गए हैं तो जस्टिस कांत ने पूछा कि क्या अदालत उन्हें सुने बिना कोई आदेश पारित कर सकती है।
जस्टिस कांत ने कहा,
"आप उन व्यक्तियों के खिलाफ आरोप लगा रहे हैं, जो हमारे सामने नहीं हैं। क्या हम इन आरोपों को स्वीकार कर सकते हैं और उनकी पीठ पीछे उनकी जांच कर सकते हैं? आपने उन्हें पक्षकार नहीं बनाया है।"
याचिकाकर्ता ने जब याचिका में संशोधन करने पर सहमति जताई तो जस्टिस कांत ने कहा,
"इसलिए हमने कहा, आप जल्दी में हैं। हां, बेजुबान लोगों को न्याय मिलना चाहिए, लेकिन उचित तरीके से। इस तरह नहीं।"
अंततः याचिकाकर्ता ने "बेहतर और उचित विवरण" के साथ नई याचिका दायर करने के लिए याचिका वापस लेने पर सहमति जताई।
न्यायालय ने एडवोकेट विशाल तिवारी द्वारा दायर समान याचिका को भी वापस लेने की अनुमति दी, जब उन्होंने कहा कि वे याचिका दायर करने के बाद दिए गए कुछ "भड़काऊ बयानों" को रिकॉर्ड में लाना चाहते हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ एक सांसद की टिप्पणी भी शामिल है।
संक्षेप में कहा जाए तो न्यायालय दो याचिकाओं पर विचार कर रहा था: पहली, एडवोकेट विशाल तिवारी द्वारा दायर की गई, जिसमें जांच के लिए रिटायर सुप्रीम कोर्ट जज की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग के गठन की मांग की गई थी; और दूसरा, एडवोकेट शशांक शेखर झा द्वारा दायर किया गया, जिसमें न्यायालय की निगरानी में मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल के गठन की मांग की गई।
याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से हिंसा के संबंध में पश्चिम बंगाल राज्य से रिपोर्ट मांगने के साथ-साथ लोगों के जीवन और संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपायों की मांग की। उन्होंने कुछ व्यक्तियों द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषणों के खिलाफ कार्रवाई के लिए निर्देश भी मांगे।
केस टाइटल:
(1) विशाल तिवारी बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 377/2025
(2) शशांक शेखर झा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य, डायरी संख्या 20020-2025