मध्य प्रदेश संकटः सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, विधानसभा अध्यक्ष विधायकों के इस्तीफे पर कब लेंगे फैसला; याचिका पर कल भी जारी रहेगी सुनवाई
LiveLaw News Network
18 March 2020 6:12 PM IST
सुप्रीम कोर्ट, कमलनाथ सरकार द्वारा तत्काल बहुमत परीक्षण करने के लिए दायर याचिका पर गुरुवार सुबह 10.30 बजे सुनवाई जारी रखेगा। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की खंडपीठ ने बुधवार को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और अन्य भाजपा नेताओं की ओर से दायर याचिका पर पूरे दिन सुनवाई की।
कोर्ट ने पूछा कि विधानसभा अध्यक्ष कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे पर फैसले में विलंब क्यों कर रहे हैं। पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि अध्यक्ष को आदर्श रूप से तीन महीने के भीतर विधायकों की अयोग्यता पर निर्णय करना चाहिए।
कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के वकील डॉ एएम सिंघवी से पूछा कि विधायकों के इस्तीफे पर कब तक फैसला हो पाएगा। सिंघवी ने जवाब दिया कि वह इस संबंध में कल बता पाएंगे।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने मुख्यमंत्री को कमलनाथ को 16 मार्च तक बहुमत साबित करने को कहा था, हालांकि 16 मार्च को बहुमत परीक्षण के बजाय मध्य प्रदेश की विधानसभा बजट सत्र तक के लिए स्थगित कर दी गई।
बुधवार की सुनवाई में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने भी सदन के बजट सत्र तक के लिए स्थबित किए जाने पर आश्चर्य व्यक्त किया। उन्होंने पूछा, "जब बजट पास नहीं होगा तो राज्य का कामकाज कैसे होगा?"
पीठ ने याचिकाकर्ताओं के सुझाव को भी ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल बेंगलुरु में डेरा डाले हुए 16 बागी विधायकों से मिल सकते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या उन्हें बंदी बनाया गया है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के बाद सरकार अल्पमत में आ गई है। उन्होंने दलील दी कि राज्यपाल के पास सरकार को बहुमत को साबित करने का निर्देश देने की विवेकाधिकार है।
एसआर बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए रोहतगी ने कहा कि विधानसभा में बहुमत परीक्षण इनकार को प्रथम दृष्टया प्रमाण माना जाना चाहिए कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बहुमत खो चुके हैं।
रोहतगी ने इन आरोपों पर भी पलटवार किया कि 'बागी' विधायकों को बंदी बना लिया गया है। उन्होंने कहा कि विधायकों ने मीडिया को बयान दिया है कि वे स्वतंत्र इच्छा से बेंगलुरु में डेरा डाले हुए हैं।
कर्नाटक और महाराष्ट्र की विधानसभाओं के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेशों सहित विभिन्न फैसलों का जिक्र करते हुए मुकुल रोहतगी ने मध्य प्रदेश विधानसभा में तत्काल बहुमत परीक्षण कराने कराने का निर्देश देने की मांग की।
इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने मध्य प्रदश कांग्रेस की ओर से दायर याचिका पर दलील पेश की। मध्य प्रदेश कांग्रेस ने अपनी याचिका में कथित रूप से भाजपा द्वारा बंदी बनाए गए विधायकों की रिहाई की मांग की थी।
दवे ने कहा कि विधायक अपने पद की शपथ से बंधे हैं और इसलिए विपक्षी पार्टी द्वारा मौद्रिक लाभ का लालच दिए जाने पर इस्तीफा नहीं दे सकते।
'बागी' विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा कि विधायकों का अपहरण नहीं किया गया है। सिंह ने कहा कि उन्होंने "वैचारिक कारणों" से इस्तीफा दिया है।
मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि दलबदल कानून के प्रभावों से बचने के लिए इस्तीफा एक चाल है। उन्होंने कहा कि सभी विधायकों के इस्तीफे केवल दो पंक्तियों के साथ लगभग एक समान थे, और उनमें से ज्यादातर एक ही व्यक्ति ने लिखे थे।
सिंघवी ने दलील दी कि राज्यपाल के पास "रनिंग असेंबली" में फ्लोर टेस्ट का आदेश देने का विवेकाधिकार नहीं है।
याचिका की पृष्ठभूमि
भाजपा ने मध्य प्रदेश विधानसभा में कमलनाथ सरकार द्वारा बहुमत परीक्षण किए जाने की मांग के संबंध में याचिका कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के हालिया फैसले के बाद दायर की।
सोमवार को मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष ने फ्लोर टेस्ट आयोजित किए बिना कोरोना वायरस के डर से 26 मार्च तक के लिए विधानसभा की बैठक स्थगित कर दी।
मध्य प्रदेश कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की है, जिसमें कथित रूप से भाजपा द्वारा बंदी बनाए गए 16 'बागी विधायकों' तक पहुंच देने की मांग की गई है।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश विधानसभा 230 सीटें हैं, जिसमें कांग्रेस के पास 114 सीटें हैं और भाजपा के पास 107 सीटें हैं। दिसंबर 2018 में कांग्रेस ने 7 अन्य विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी। बीजेपी नेताओं की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया है कि 22 कांग्रेस विधायक 10 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप चुके हैं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि भाजपा ने 14 मार्च को राज्यपाल को एक पत्र सौंपकर मध्य प्रदेश विधानसभा में तत्काल बहुमत परीक्षण की मांग की थी। राज्यपाल ने 16 मार्च को फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था, हालांकि सोमवार को सदन 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
बीजेपी नेताओं की ओर से दायर याचिका में एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ, (1994) 3 एससीसी 1 मामले में 9 जजों की संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए यह तर्क दिया गया है कि यदि कुछ विधायक सरकार से समर्थन कुछ वापस ले लेते हैं और सरकार सदन का विश्वास खो देती है तो राज्यपाल का यह कर्तव्य है बहुमत साबित करने के लिए सरकार को निर्देशित करें।