मोटर दुर्घटना दावा : क्या थर्ड पार्टी इंश्योरेंस में पीलियन राइडर भी कवर होता है? सुप्रीम कोर्ट ने सवाल बड़ी बेंच को संदर्भित किया

Avanish Pathak

31 Aug 2022 3:59 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    क्या मोटरसाइकिल पर पीछे बैठने वाला कोई तीसरा पक्ष है? क्या बीमा कंपनी "केवल अधिनियम" पॉलिसी के मामले में ऐसे प‌िलियन राइडर की चोट या मृत्यु के कारण बीमित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी है? सुप्रीम कोर्ट ने इन सवालों को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ एक विशेष अनुमति याचिका में पेश दलील पर विचार कर रही थी कि एक पीलियन राइडर (मोटर साइकिल पर पीछे बैठने वाला व्यक्ति) तीसरा पक्ष नहीं है, इसलिए बीमा कंपनी बीमित व्यक्ति को ऐसे पीलियन राइडर की चोटों या मृत्यु के एवज में क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी नहीं है।

    केरल हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ एसएलपी दायर की गई थी और याचिकाकर्ता के वकील ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम तिलक सिंह 2006 (4) SCC 404 और ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम सुधाकरन के वी 2008 (7) SCC 428 में सु्प्रीम कोर्ट के दो फैसलों पर भरोसा किया था।

    भारतीय मोटर टैरिफ एंडोर्समेंट नंबर 70 का जिक्र करते हुए यह तर्क दिया गया कि "केवल अधिनियम" पॉलिसी में, बीमित व्यक्ति को पीलियन राइडर को कवर करने के लिए अतिरिक्त प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है।

    तिलक सिंह (सुप्रा) में यह माना गया था कि बीमा कंपनी का पीलियन राइडर को लगी चोटों के प्रति कोई दायित्व नहीं है, क्योंकि बीमा पॉलिसी एक वैधानिक नीति थी, और इसलिए इसमें किसी न‌िशुल्‍क यात्री की मृत्यु या शारीरिक चोट के जोखिम को कवर नहीं किया गया था।

    सुधाकरन केवी (सुप्रा) में, यह माना गया था कि दो पहिया वाहन में पीछे बैठे सवार को तीसरे पक्ष के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, जब दुर्घटना स्कूटर की लापरवाही के कारण हुई हो, न कि दूसरे वाहन के चालक की ओर से।

    पीठ ने कहा,

    "हालांकि, सवाल यह है कि क्या तीसरे पक्ष में बीमाधारक के अलावा अन्य सभी व्यक्ति शामिल हैं। बीमाधारक पहला पक्ष है, जबकि बीमाकर्ता तीसरा पक्ष है। इसलिए, अन्य सभी व्यक्ति जो न तो बीमित हैं और न ही बीमाकर्ता हैं, तीसरे पक्ष में शामिल होंगे और उन्हें 'एक्ट वनली' द्वारा कवर किया जाएगा, व्यक्त किए गए विचार के बारे में हमारा प्रथम दृष्टया आरक्षण है।

    बेंच ने इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ को संदर्भित करते हुए कहा, इस तरह के प्रश्न को आधिकारिक रूप से निर्धारित करने की आवश्यकता है।"

    आक्षेपित फैसले में, केरल हाईकोर्ट ने मनुआरा खातून और अन्य बनाम राजेश कृष्ण सिंह और अन्य (AIR 2017 SC 1204) पर भरोसा किया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पाया था कि मृतक एक नि: शुल्क यात्री था जो बीमा पॉलिसी के तहत कवर नहीं किया गया था। बीमाकर्ता को दावेदारों को मुआवजे की राशि का भुगतान करने और बीमाधारक से इसे वसूल करने का निर्देश दिया गया था।

    यह माना गया कि बीमाकर्ता ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित मुआवजे की राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी था और उसे उल्लंघन करने वाले वाहन के मालिक से इसे वसूल करने की स्वतंत्रता दी गई थी।

    केस टाइटल: मोहना कृष्णन एस बनाम के बालासुब्रमण्यम | SLP (C) 3433/2020

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (SC) 726

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story