मोटर दुर्घटना दावा याचिका घायल दावेदार की मृत्यु पर समाप्त नहीं होती: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

17 Aug 2021 10:42 AM IST

  • मोटर दुर्घटना दावा याचिका घायल दावेदार की मृत्यु पर समाप्त नहीं होती: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक मोटर दुर्घटना दावा याचिका घायल दावेदार की मृत्यु के बाद भी समाप्त नहीं होती है।

    न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि संपत्ति के नुकसान के संबंध में उत्तराधिकारियों और कानूनी प्रतिनिधियों के मुकदमा करने का अधिकार जीवित रहता है ।

    कोर्ट ने कहा कि संपत्ति के नुकसान में दवाओं, उपचार, आहार, परिचारक, डॉक्टर की फीस आदि खर्च तथा आय और भविष्य की संभावनाएं भी शामिल होंगी, जिससे संपत्ति में उचित वृद्धि हुई होती, लेकिन अचानक हुए खर्च को पूरा करने में घायल, जिसकी बाद में मौत हो गयी थी, की संपत्ति समाप्त हो गयी थी।

    इस मामले में, मूल दावेदार, जो दो मई 1999 को एक मोटर दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गया था, ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166(1)(ए) के तहत मुआवजे के लिए दावा दायर किया। मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने केवल नौ प्रतिशत ब्याज के साथ रु.1,00,000/¬ की राशि का फैसला सुनाया।

    इस फैसले से असंतुष्ट मूल दावेदार ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की थी, जिसकी सुनवाई लंबित रहने के दौरान ही मृत्यु हो गई थी। दुर्घटना में लगी चोटों को मौत के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया था। दावेदार की बेटी, जो दुर्घटना के समय 21 वर्ष की अविवाहित लड़की थी, अपील में प्रतिस्थापित की गई थी। हाईकोर्ट ने अपील की अनुमति दी और मुआवजे में काफी वृद्धि की थी।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में, बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि चूंकि घायल की मौत का कारण व्यक्तिगत था, जो दुर्घटना के कारण नहीं हुई थी, कानूनी उत्तराधिकारी केवल ऐसे मुआवजे का हकदार है जो मृतक की संपत्ति का हिस्सा बनता है मृतक की। यह भी दलील दी गयी थी कि वेतन का नुकसान, भविष्य की संभावनाएं, दर्द और पीड़ा के साथ-साथ परिचर शुल्क मृतक की संपत्ति का हिस्सा नहीं है।

    इस दलील के समर्थन में, उन्होंने 'कनम्मा बनाम उप महाप्रबंधक, आईएलआर 1990 कर्नाटक 4300', 'उत्तम कुमार बनाम माधव और अन्य, आईएलआर 2002 कर्नाटक 1864' में कर्नाटक उच्च न्यायालय के दो पूर्ण पीठ के निर्णयों पर भरोसा जताया।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी ने दलील दी थी कि मृतक की मृत्यु के साथ केवल व्यक्तिगत चोटों का दावा समाप्त हो जाएगा और आय की हानि, चिकित्सा व्यय आदि जैसे दावे संपत्ति के नुकसान के हिस्से के रूप में जारी रहेंगे।

    दावा पाने में निराशा, उसके फल तक पहुंचने में 20 साल लग गए

    पीठ ने शुरुआत में नोट किया,

    "एक मोटर दुर्घटना में हुई चोटों से उत्पन्न होने वाला दावा, जो इस न्यायालय के समक्ष 20 से अधिक वर्षों के बाद फलित हुआ है, हमें निराशाजनक लगता है। मूल दावेदार और उसकी पत्नी, दोनों ही परिणाम देखने के लिए जिंदा नहीं बचे, अब यह मुकदमा उनकी बेटी द्वारा चलाया जा रहा है।"

    इस तर्क पर विचार करते हुए, पीठ ने कहा कि 'मधुबेन महेशभाई पटेल बनाम जोसेफ फ्रांसिस मेवान 2015 (2) जीएलएच 49' में गुजरात हाईकोर्ट ने कहा था कि घायल दावेदार की मृत्यु के बाद भी, दावा याचिका समाप्त नहीं होती है और जहां तक संपत्ति के नुकसान का संबंध है, उत्तराधिकारियों और कानूनी प्रतिनिधियों के लिए मुकदमा करने का अधिकार जीवित रहता है, जिसमें उपचार पर किए गए व्यक्तिगत खर्च और संपत्ति के नुकसान से संबंधित अन्य दावे शामिल होंगे।

    कोर्ट ने कहा कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 'ज्योति राम बनाम चमनलाल, एआईआर 1985 पी एंड एच 2' और मद्रास हाईकोर्ट ने 'थाईलम्मई बनाम ए.वी. मलय्या पिल्लई, 1991 एसीजे 185' मामले में भी यही मंतव्य दिये थे।

    कोर्ट ने कहा,

    "16. कनम्मा (सुप्रा) और उत्तम कुमार (सुप्रा) में लिया गया यह विचार कि दावा समाप्त हो जाएगा, अधिनियम की एक संकीर्ण व्याख्या पर आधारित है जो हमारे लिए सराहनीय नहीं है। गुजरात उच्च न्यायालय का तर्क अधिनियम के लक्ष्य, उद्देश्य और भावना के अनुरूप है और इसके वास्तविक इरादे और उद्देश्य को आगे बढ़ाते है और इसे हम इसलिए स्वीकार करते हैं।"

    अदालत ने आगे कहा कि अधिनियम एक लाभकारी और कल्याणकारी कानून है।

    इसने आगे कहा,

    "9... अधिनियम की धारा 166(1) (ए) चोट लगने वाले व्यक्ति द्वारा दुर्घटना से उत्पन्न मुआवजे के लिए वैधानिक दावे का प्रावधान करती है। क्लॉज (बी) के तहत, मुआवजा मालिक को देय है संपत्ति का। मृत्यु होने की स्थिति में, मृतक के कानूनी प्रतिनिधि दावा कर सकते हैं। इस अधिनियम के तहत, पारंपरिक परिभाषा की तुलना में सम्पत्ति का बहुत व्यापक अर्थ होगा। यदि कानूनी उत्तराधिकारी मृत्यु के मामले में सम्पत्ति की हानि का दावा कर सकते हैं, तो इसके सदृश हमें कोई कारण नजर नहीं आता कि कानूनी प्रतिनिधि धारा 166 के खंड 1 (सी) के तहत दुर्घटना या चोटों के अलावा अन्य कारणों से बाद में हुई मौत पर संपत्ति के नुकसान के दावा क्यों नहीं कर सकते हैं। ऐसा दावा दावेदार की व्यक्तिगत चोट के लिए किये जाने वाले दावे से पूरी तरह अलग और जो मौत का कारण नहीं हो सकता है। व्यक्तिगत चोटों से संबंधित ऐसे दावे निस्संदेह घायलों की मृत्यु के साथ समाप्त हो जाएंगे। संपत्ति के नुकसान का क्या मतलब होगा और इसके द्वारा किन वस्तुओं को कवर किया जाएगा, ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर हमें ध्यान देना है। मोटर दुर्घटना दावा मामलों में मुआवजे का भुगतान करना अपीलकर्ता का वैधानिक दायित्व है। यह कहकर इस दायित्व से नहीं बचा जा सकता कि यह केवल व्यक्तिगत चोटों के लिए उपलब्ध था और उसकी मौत के बाद यह समाप्त हो जाता है, भले ही चोटों के कारण मृतक की संपत्ति को नुकसान हुआ हो।"

    इस मामले में हाईकोर्ट ने मुआवजे को बढ़ाकर 37,81,234/¬ रुपये कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि निजी चोट होने के कारण दर्द और व्यक्तिगत चोट के मद में घोषित मुआवजे को उचित नहीं माना जा सकता है। इस मद के तहत दिए गए मुआवजे को अस्वीकार करते हुए, पीठ ने कुल मुआवजे का पुनर्मूल्यांकन करते हुए संबंधित मुआवजे की राशि 28,42,175/¬- रुपये कर दी।

    केस: ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम कहलों @ जसमेल सिंह कहलों (मृतक)

    साइटेशन: एलएल 2021 एससी 382

    कोरम: न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी

    वकील: अपीलकर्ता के लिए एडवोकेट एच. चंद्रशेखर, प्रतिवादी के लिए एडवोकेट निखिल गोयल

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