प्रेरित याचिका, गुप्त एजेंडा: सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू सेना उपाध्यक्ष की जनहित याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

3 March 2022 9:00 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें चुनावों में जनता को मुफ्त चीजों देने का वादा करने वाले राजनीतिक दलों के ‌खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी। याचिका हिंदू सेना नामक संगठन के उपाध्यक्ष ने दायर की थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में याचिका "प्रेरित" करार दिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अगुवाई में एक पीठ ने कहा कि याचिका "छिपे हुए एजेंडे" के साथ दायर की गई थी। उन्होंने पूछा, "हमें लगता है कि यह प्रेरित है, चुनिंदा क्षति के लिए आप ऐसा कर रहे हैं। आपके पास एक छिपा हुआ एजेंडा है। आप कौन हैं?"


    य‌ा‌‌‌चिकाकर्ता के वकील ने कहा, "मैं हिंदू सेना नामक एनजीओ का उपाध्यक्ष हूं।"

    जस्टिस एएस बोपन्ना ने कहा, "आपकी याचिका में विशेष पक्ष क्यों हैं, यह सामान्य होना चाहिए था।"

    सीजेआई ने याचिका खारिज करने से पहले कहा, "छिपा हुआ एजेंडा दिखाता है।"

    जनहित याचिका में यूनियन ऑफ इंडिया और चुनाव आयोग को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के उम्‍मीदवारों और पंजाब चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने की मांग की गई थी। याचिका में सरकारी खजाने से उपहार और धन की पेशकश करने वाले चार राजनीतिक दलों भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी के खिलाफ लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123(1)(ए) के तहत किए गए अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने के लिए निर्देश मांगे गए थे।

    याचिकाकर्ता के अनुसार किसी राजनीतिक दल, उसके नेता, चुनाव में खड़े उम्मीदवारों द्वारा इस तरह के प्रस्ताव या वादे को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 (1) (बी) के प्रावधानों के तहत भ्रष्ट आचरण और रिश्वतखोरी में लिप्त घोषित किया जा सकता है। और ऐसे राजनीतिक दलों द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों को उस राज्य में चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

    याचिका में तर्क दिया गया है कि चुनाव आयोग को नामांकन दाखिल करने के समय एक तंत्र विकसित करने के लिए निर्देश देने की आवश्यकता है, जिसके जर‌िए इस आशय की घोषणा कि जाए कि उनके राजनीतिक दलों, जिनके प्रतीक पर वे चुनाव लड़ रहे हैं, उन्होंने कोई प्रस्ताव और मुफ्त चीज का वादा नहीं किया है।

    इसके अलावा, यदि उम्मीदवारों द्वारा इस तरह की घोषणा गलत पाई जाती है, तो ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए और यदि निर्वाचित किया जाता है, तो ऐसे चुनाव को शून्य घोषित किया जा सकता है।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, चुनावी लाभ के लिए राजनीतिक दलों द्वारा सामूहिक पेशकश या वादे को भ्रष्ट आचरण के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने 25 जनवरी 2022 को यूनियन ऑफ इंडिया और चुनाव आयोग को एक अन्य याचिका में नोटिस जारी किया था जिसमें चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी कि राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन मुफ्त वस्तुओं का वादा करने या वितरित करने की अनुमति न दी जाए। ऐसा करने वाले राजनीतिक दलों को अपंजीकृत करें या उनके चुनाव चिन्ह जब्त करें।

    बेंच ने सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले का उल्लेख किया , जहां कोर्ट ने कहा था कि चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 के तहत 'भ्रष्ट अभ्यास' नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के मार्गदर्शन के लिए राजनीतिक दलों के परामर्श से चुनाव घोषणापत्र की सामग्री पर दिशानिर्देश तैयार करने और इसे आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) में शामिल करने का निर्देश दिया था।

    केस शीर्षक: सुरजीत सिंह यादव बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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