दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ किया, असाधारण परिस्थितियों में नाबालिग भी कर सकता है अंगदान

LiveLaw News Network

2 April 2020 9:14 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ किया, असाधारण परिस्थितियों में नाबालिग भी कर सकता है अंगदान

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिश्यूज़ एक्ट, 1994 के तहत कोई नाबाल‌िग भी अंगदान कर सकते हैं। नाबालिगों के अंगदान करने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।

    अदालत ने कहा है, "... नाबाल‌िग के अंग या ऊतक दान करने पर कोई पूर्ण निषेध नहीं है। असाधारण परिस्थितियों में और नियमों के अनुसार, ऐसे दान की अनुमति है।"

    न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की एकल पीठ ने कहा है कि नाबालिगों को केवल असाधारण चिकित्सकीय परिस्थितियों में, नियमों के अनुसार ही अंग दान की अनुमति दी जा सकती है, और उन्हें जोखिम न हो, यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

    मौजूदा याचिका लीवर प्रत्यारोपण की अनुमति देने और याचिकाकर्ता को अपने पिता का अपने लिवर का हिस्सा दान करने की अनुमति देने के लिए दायर की गई थी। याचिका में अदालत से ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिश्यूज़ एक्ट, 1994 की धारा 13 (1) के तहत नियुक्त उचित प्राधिकरण को निर्देश देने की की मांग की गई थी।

    याचिकाकर्ता के पिता एक्यूट लिवर फेल्योर से पीड़ित हैं, और अस्पताल की ओर से जारी मेडिकल सर्टिफिकेट के मुताबिक, उन्हें तत्काल लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता है। याचिकाकर्ता की दलील ‌थी कि यदि दाता नाबालिग न हो तो किसी भी निकट संबंधी के मामले में ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिश्यूज़ एक्ट, 1994 के तहत प्रत्यारोपण के लिए अनुमति आवश्यक नहीं है।

    उन्होंने तर्क दिया कि 2011 में उक्त अधिनियम में संशोधन के बाद, नाबालिग के लिए मानव अंग या ऊतक को मृत्यु से पहले दान करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया, जिसके बाद एक नाबालिग को सरकार द्वारा निर्धारित तरीके से ही अंग और ऊतक दान करने की अनुमति दी जा सकती है।

    याचिका में कहा गया था,

    "ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिश्यूज़ रूल्स, 2014 के नियम 5 (3) (जी) के तहत, नाबालिग द्वारा जीवित अंगों या ऊतकों का दान पूर्ण प्रतिबंधित है। नाबालिग को यह अनुमति केवलअसाधारण चिकित्‍सकीय परि‌स्थितियों में है, हालांकि उसका विवरण पूर्ण औचित्य के साथ दर्ज किया गया और साथ में सक्षम प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त की गई हो।"

    याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि उसकी जन्मतिथि 22.05.2002 है और 22.05.2020 को वह बालिग हो जाएगी। फ‌िलहाल उसकी उम्र 17 साल 10 महीने है। वह बारहवीं कक्षा में पढ़ रही है। मानसिक रूप से सक्षम है और पूर्णतया समझदार हो चुकी है। इसलिए, वह स्वेच्छा से और बिना किसी जोर या जबरदस्ती के अपने लिवर का दाने करने के लिए तैयार थी।

    याचिका में तर्क दिया गया था कि COVID-19 की महामारी के कारण देश में पूर्ण लॉकडाउन की मौजूदा स्थिति के मद्देनजर, कोई अन्य दानदाता मिलना संभव नहीं है और याचिकाकर्ता के पिता को तत्काल सर्जरी की आवश्यकता है।

    दूसरी ओर, सरकार की ओर से पेश वकील ने अदालत को सूचित किया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने याचिकाकर्ता की मां की ओर से ‌‌दिए गए आवेदन को खारिज़ कर दिया है, जिसमें उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा मोहम्मद सुहैल मिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए वैसी ही राहत की मांग की थी।

    अदालत, हालांकि, मंत्रालय के फैसले पर असहमति व्यक्ति की और कहा कि उपरोक्त मामले में अदालत ने माना था कि एक नाबालिग असाधारण चिकित्सकीय परिस्थितियों में अंग दान कर सकता है।

    हालांकि, उस मामले के तथ्यों के अनुसार, नाबालिग ने अंग दान से इनकार किया था क्योंकि चिकित्सा विशेषज्ञों ने सुझाव दिया था कि ऐसा करने से नाबालिग के स्वास्थ्य को खतरा होगा।

    मोहम्मद सुहैल मिया और मौजूदा मामले के तथ्यों के बीच अंतर स्‍पष्ट करते हुए अदालत ने कहा कि:

    'वर्तमान मामले में ऐसी कोई चिकित्सकीय राय नहीं है कि अंगदान से याचिकाकर्ता को जोखिम है। नाबालिग की उम्र 17 साल, 10 महीने हो चुकी है।'

    कोर्ट ने कहा कि बा‌लिग होने से पहले किसी नाब‌ालिग के अंग या ऊतक को दान करने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है। असाधारण परिस्थितियों में और नियमों के अनुसार, दान की अनुमति है।

    अदालत ने मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, साकेत के निदेशक को निर्देश दिया कि दो वरिष्ठ डॉक्टरों की एक समिति का तत्काल गठन किया जाए, जिनमें एक लिवर प्रत्यारोपण और पित्त विज्ञान का एक्सपर्ट हो, जो याचिकाकर्ता के मामले पर विचार कर सके और यह पता लगे सके कि याचिकाकर्ता के अंग दान से उसे कोई संभावित खतरा तो नहीं है।

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