इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय, एनआईसी और एनईजीडी को जानकारी नहीं कि आरोग्य सेतु ऐप किसने बनाया और कैसे बनाया : सीआईसी ने सीपीआईओ को समन जारी किया

LiveLaw News Network

28 Oct 2020 12:29 PM GMT

  • इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय, एनआईसी और एनईजीडी को   जानकारी नहीं कि आरोग्य सेतु ऐप किसने बनाया और कैसे बनाया : सीआईसी ने सीपीआईओ को समन  जारी किया

    केंद्रीय सूचना आयोग ने मंगलवार को इलेक्ट्रॉनिक मंत्रालय,नेशनल इन्फर्मैटिक्स सेंटर व एनईजीडी के सीपीआईओ को कारण बताओ नोटिस जारी किया है कि क्यों न आरटीआई एक्ट की धारा 20 के तहत उन पर जुर्माना लगा दिया जाए क्योंकि उन्होंने प्रथम दृष्टया सूचनाएं प्रदान करने में बाधा ड़ाली हैं और आरोग्य सेतु ऐप से संबंधित एक आरटीआई आवेदन का स्पष्ट जवाब नहीं दिया है।

    सीआईसी ने एनआईसी को यह बताने के लिए भी कहा है कि जब आरोग्य सेतु वेबसाइट में यह उल्लेख किया गया है कि प्लेटफॉर्म को उनके द्वारा डिजाइन, विकसित और होस्ट किया गया है, तो यह कैसे हो सकता है कि उन्हें ऐप के निर्माण के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

    सूचना आयुक्त वनजा एन सरना ने कहा कि,

    ''आयोग ने एनआईसी के सीपीआईओ को निर्देश दिया है कि वह इस मामले को लिखित रूप में बताए कि अगर उनके पास कोई सूचना नहीं है तो वेबसाइट https://aarogyasetu.gov.in/ को डोमेन नाम gov.in के साथ कैसे बनाया गया है।''

    सीआईसी ने कहा, ''सीपीआईओ में से कोई भी इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं कर पा रहा था कि ऐप किसने बनाया है, फाइलें कहां हैं और यह बहुत ही प्रतिकूल है।''

    आयोग ने कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं-

    1. श्री एस के त्यागी, उप निदेशक व सीपीआईओ,

    2. श्री डी के सागर, उप निदेशक इलेक्ट्रॉनिक्स

    3. श्री आर ए धवन, वरिष्ठ महाप्रबंधक (एचआर और प्रवेश) व सीपीआईओ एनईजीडी

    आयोग ने उपर्युक्त सीपीआईओ को निर्देश दिया है कि 24 नवम्बर 2020 को दोपहर 1.15 बजे पीठ के समक्ष पेश हों और बताएं कि वह आरटीआई एक्ट की धारा 20 के तहत क्यों ने उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों शुरू की जाए?

    सीपीआईओ को उन सभी सहायक दस्तावेजों की एक प्रति भेजने के लिए भी निर्देशित किया गया है, जिनका वे सुनवाई के दौरान हवाला देने चाहेंगे। लिंकपेपर के जरिए की जाने सुनवाई से 5 दिन पहले उक्त दस्तावेज आयोग को भेज दिए जाएं।

    यदि उक्त चूक के लिए कोई अन्य व्यक्ति जिम्मेदार है, तो सीपीआईओ इस आदेश की एक प्रति इस तरह के व्यक्तियों को भेज दें ताकि वह भी बेंच के समक्ष उपस्थित हो सकें। श्री स्वरूप दत्ता, वैज्ञानिक एफ और एनआईसी के सीपीआईओ से भी पूछा गया है क्यों न आरटीआई एक्ट की धारा 20 के तहत उन पर भी जुर्माना लगा दिया जाए क्योंकि उन्होंने प्रथम दृष्टया सूचना के मार्ग में अवरोध पैदा किया है और एक अस्पष्ट जवाब दिया है?

    सौरव दास द्वारा इस मामले में एक शिकायत दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि संबंधित प्राधिकरण यानी एनआईसी, राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिवीजन (एनईजीडी) और इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) उसको आरोग्य सेतु ऐप के को बनाने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी प्रस्तुत करने में विफल रहे हैं।

    उसने बताया था कि उसने एक आरटीआई को एनआईसी के समक्ष दायर की थी,जिसके जवाब में उसे बताया गया कि उनके पास ऐप के निर्माण से संबंधित ''जानकारी नहीं है'',जबकि यह बहुत आश्चर्यजनक है क्योंकि उन्होंने ऐप को डेवलप किया है।

    उन्होंने आगे बताया कि एनईजीडी और एमईआईटीवाई ने भी ऐप के निर्माण और अन्य मामलों से संबंधित कोई जानकारी नहीं दी है।

    बड़े पैमाने पर लोगों द्वारा उपयोग किए जा रहे एक ऐप के लिए इस तरह की जानकारी न देने से चिंतित, याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया था,

    ''इस ऐप को कैसे बनाया गया है, इसके निर्माण से संबंधित फाइलें, जिन्होंने इस ऐप के निर्माण के लिए इनपुट दिए हैं, लाखों भारतीयों के व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग की जांच के लिए क्या ऑडिट उपाय मौजूद हैं, क्या उपयोगकर्ता के डेटा के लिए कोई भी प्रोटोकॉल विकसित किया गया है और इस डेटा को किसके साथ साझा किया जा रहा है,इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है।

    यह इस तथ्य के बावजूद है कि इन सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा कोई भी चूक और कमीशन और प्रोटोकॉल, 2020 के तहत उल्लिखित और अनिवार्य रूप से अपने कर्तव्यों को निभाने में कोई विफलता लाखों भारतीयों के व्यक्तिगत और उपयोगकर्ता डेटा की सुरक्षा से समझौता होगा। यह एक बड़े पैमाने पर निजता के मौलिक अधिकार का गंभीर उल्लंघन होगा और लोगों को संवैधानिक रूप से मिले जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के लिए खतरा होगा।''

    यद्यपि आयोग ने निजता के पहलू पर कोई टिप्पणी करने से परहेज किया, लेकिन इसने शिकायतकर्ता को ''अस्पष्ट जवाब देने'' के लिए अधिकारियों को खिंचाई की है।

    आयोग ने उल्लेख किया है कि अधिकारियों ने आरटीआई आवेदन को एक-दूसरे के पास स्थानांतरित करने के लिए अधिनियम की धारा 6 (3) का इस्तेमाल किया था लेकिन किसी ने भी किसी भी जानकारी का खुलासा नहीं किया था। इस तरह के प्रैक्टिस की निंदा करते हुए आयोग ने कहा कि,

    ''सभी संबंधित प्राधिकारियों द्वारा सूचना देने से इनकार करने को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता ... आरटीआई अधिनियम की धारा 6 (3) का उपयोग सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा मामले को एक दूसरे के पाले में ड़ालने के लिए नहीं किया जा सकता है।

    यह एक मौजूदा मुद्दा है और यह संभव नहीं है कि इस ऐप को बनाते समय कोई फाइल मूवमेंट न हुआ हो, कोई नागरिक कस्टोडियन का पता लगाने के लिए सर्कल में चक्कर नहीं लगा सकता है।''

    ''शिकायतकर्ता की वह दलील तर्कपूर्ण व न्यायसंगत जवाब के अभाव में सही लगती है जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिवीजन, एमईआईटीवाई के सीपीआईओ को बार-बार रिमाइंडर भेजने के बावजूद आरटीआई एक्ट के अनुरूप काम न करने के लिए उन्हें आरटीआई अधिनियम की धारा 20 (1) और 20 (2) के तहत दंडित किया जाना चाहिए।''

    वह सभी यह कहकर अपने हाथ खड़े नहीं कर सकते हैं कि उनके पास सूचना उपलब्ध नहीं है। संबंधित सार्वजनिक प्राधिकरणों को मांगी गई सूचनाओं के संरक्षक का पता लगाने के लिए कुछ प्रयास करने चाहिए थे, जबकि जाहिर तौर पर वे संबंधित पक्ष हैं।''

    आयोग ने आगे कहा कि एनईजीडी का सीपीआईओ यह स्पष्ट नहीं कर सका कि जवाब देने के लिए उसे लगभग दो महीने का समय क्यों लगा और न ही यह बताया गया कि क्यों मांगी गई सूचना उनसे संबंधित नहीं है।

    इसी तरह, यह भी नोट किया कि, एमईआईटीवाई के सीपीआईओ ने भी उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया है। न ही यह बताया कि कहां से आरोग्य सेतु ऐप के निर्माण से संबंधित जानकारी मिल सकती है। सिर्फ यह बताया गया कि इसके निर्माण में एनआईटीआई अयोग से लिया गया इनपुट शामिल हैं। न ही यह बताया गया कि यह कैसे संभव है कि ऐप बनाया गया था और इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को इसकी उत्पत्ति के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

    यह कहते हुए कि अधिकारियों का यह रुख ''बहुत ही प्रतिकूल'' है, आयोग ने सभी तीन सीपीआईओ,एमईआईटीवाई, एनईजीडी और एनआईसी को निर्देशित किया है कि वे 24 नवंबर, 2020 को उनके समक्ष पेश हों, ताकि क्यों न उनके खिलाफ आरटीआई एक्ट की धारा 20(बिना किसी उचित कारण के जानकारी देने में विफलता के लिए) के तहत कार्रवाई शुरू की जा सकें?

    यह भी कहा गया कि,

    ''सीपीआईओ, एनआईसी की यह दलील समझने योग्य है कि ऐप के निर्माण से संबंधित पूरी फाइल एनआईसी के पास नहीं हैं, लेकिन यही सबमिशन यदि एमईआईटीवाई, एनईजीडी और एनआईसी की तरफ से स्वीकार किए जाते हैं, तो यह पता लगाना अब और अधिक प्रासंगिक हो जाता है कि ऐप कैसे बनाया गया था,जबकि किसी भी संबंधित सार्वजनिक प्राधिकरण के पास कोई जानकारी नहीं है।''

    कहा गया कि,

    वेबसाइट https://aarogyasetu.gov.in/ के अनुसार, यह उल्लेख किया गया है कि ऐप की सामग्री का स्वामित्व MyGov, MeitY के पास है और उन्हीं के द्वारा इसे अपडेट किया जाता है। इसलिए, श्री त्यागी को निर्देश दिया जाता है कि वह लिखित रूप में यह समझाए कि ऐप की देखरेख करने वाले MyGov, MeitY के बारे में बताने के लिए संबंधित सीपीआईओ कौन है।

    रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया है कि वह एक ई-मेल support.aarogyasetu.gov.in नामक आईडी पर भेज दें क्योंकि वेबसाइट पर यही आईडी दी गई है,ताकि सुनवाई की अगली तारीख पर आयोग के समक्ष संबंधित अधिकारी को उपस्थित होने के लिए भेजा जा सकें।

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