'केवल शादी से इनकार करना IPC की धारा 107 के तहत उकसाने के बराबर नहीं होगा': सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला खारिज किया
Shahadat
2 Nov 2025 7:08 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल शादी से इनकार करना, भले ही सच हो, अपने आप में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 107 के तहत "उकसाने" के बराबर नहीं होगा। कोर्ट ने एक महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ दर्ज FIR खारिज की, जिसने कथित तौर पर अपनी प्रस्तावित शादी से मुकरने के बाद आत्महत्या कर ली थी।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ यादविंदर सिंह उर्फ सनी द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा IPC की धारा 306 के तहत उसके खिलाफ दर्ज IPC रद्द करने से इनकार करने को चुनौती दी गई।
यह IPC 2016 में मृतक महिला की मां ने दर्ज कराई थी, जिन्होंने आरोप लगाया कि उनकी बेटी, जो एक सरकारी वकील है, उन्होंने अपीलकर्ता द्वारा उससे शादी करने के वादे से मुकर जाने के बाद जहर खा लिया और उसकी मौत हो गई। अभियोजन पक्ष का कहना था कि सिंह ने मृतका को यह आश्वासन देकर "विश्वासघात" किया कि वह अपने परिवार को विवाह के लिए राज़ी कर लेगा।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष के बयान को पूरी तरह स्वीकार करने के बावजूद, IPC की धारा 306 और धारा 107 के तहत आत्महत्या के लिए "उकसाने" का कोई भी आरोप साबित नहीं हुआ।
निपुण अनेजा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और जियो वर्गीस बनाम राजस्थान राज्य में अपने पिछले फैसलों का हवाला देते हुए खंडपीठ ने दोहराया कि उकसाने में किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने या जानबूझकर मदद करने की मानसिक प्रक्रिया शामिल होती है।
कोर्ट ने कहा गया,
"इस प्रकार, यदि मृतका ने अभियुक्त द्वारा प्रत्यक्ष और भयावह प्रोत्साहन/उकसाने के कारण आत्महत्या की है, जिससे आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता तो IPC की धारा 306 के अंतर्गत अपराध की सभी सामग्रियां पूरी हो जाएंगी। जैसा कि आरोप लगाया गया, उकसाने का कार्य मृतका को ऐसी स्थिति में धकेलने के इरादे से किया गया होगा कि उसके पास आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प न बचे। उकसाने या सक्रिय सहायता के सकारात्मक कृत्य के बिना, अपराध कायम नहीं रह सकता।"
कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया,
"केवल विवाह करने से इनकार करना, भले ही वह अपने आप में सच हो, IPC की धारा 107 के तहत बताए गए उकसावे के बराबर नहीं होगा।"
खंडपीठ ने कहा कि हालांकि, मृतका अपीलकर्ता के आचरण से आहत या निराश हुई होगी। हालांकि, साक्ष्यों से ऐसा कोई प्रत्यक्ष या सक्रिय उकसावा नहीं दिखा, जिसके कारण उसने यह चरम कदम उठाया। अपीलकर्ता द्वारा विवाह करने से इनकार करना, भले ही इससे भावनात्मक कष्ट हुआ हो, महिला को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के इरादे के बराबर नहीं माना जा सकता।
अदालत ने कहा,
"यह जानकर बहुत दुख हुआ कि एक युवती ने अपनी जान लेने जैसा चरम कदम उठाया। हो सकता है कि उसे कोई ठेस पहुंची हो। एक संवेदनशील क्षण ने एक युवती की जान ले ली। हालांकि, जज होने के नाते, हम रिकॉर्ड में मौजूद सबूतों के आधार पर मामले का फैसला करने के लिए बाध्य हैं।"
यह मानते हुए कि अभियुक्तों पर मुकदमा चलाना "न्याय का उपहास" होगा, सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार की और अमृतसर के छेहरटा पुलिस स्टेशन में दर्ज IPC नंबर 273/2016 और अमृतसर के एडिशनल सेशन जज के समक्ष लंबित कार्यवाही रद्द कर दी।
Case : YADWINDER SINGH @SUNNY v. STATE OF PUNJAB & ANR.

