केवल परेशान करना धारा 306, IPC के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं होगा, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

LiveLaw News Network

3 Aug 2021 6:47 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि केवल परेशान करना भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं होगा।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव और ज‌स्टिस अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने कहा कि एक मामले को धारा 306 IPC के दायरे में लाने के लिए, आत्महत्या का मामला ‌निश्‍चित रूप से होना चाहिए और उक्त अपराध को बनाने के लिए, जिस व्यक्ति के बारे में कहा गया है कि उसने आत्महत्या के लिए उकसाया है, उसने उकसाने के कार्य में सक्रिय भूमिका अदा की हो या आत्महत्या के कृत्य में कोई ‌न‌िश्च‌ित कार्य किया हो।

    इस मामले में मृतक ने कथित तौर पर जहर खाकर अपने घर में आत्महत्या कर ली थी और चार सुसाइड नोट छोड़े थे। इन नोटों में, यह उल्लेख किया गया था कि उसने आत्महत्या इसलिए की क्योंकि आरोपी ने अपनी पत्नी और बेटी को उसके साथ नहीं भेजा और वे उसकी आत्महत्या के लिए उत्तरदायी हैं। हाईकोर्ट ने आरोपी की पुनरीक्षण याचिका को अनुमति दी थी और ट्रायल कोर्ट के चार्ज फ्रेम करने के आदेश को रद्द कर दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में, यह दलील दी गई थी कि अभियुक्तों द्वारा आत्महत्या के अपराध के लिए उकसाने का प्रयास प्रथम दृष्टया किया गया है क्योंकि उनके द्वारा परेशान किए जाने से मृतक ने आत्महत्या की।

    बेंच ने अमलेंदु पाल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2010) 1 एससीसी 707 में दिए गए फैसले की चर्चा करते हुए कहा, "IPC की धारा 306 के प्रावधान के तहत एक मामले को लाने के लिए, आत्महत्या का मामला निश्च‌ित रूप से होना चाहिए और उक्त अपराध को बनाने के लिए, जिस व्यक्ति के बारे में कहा जाता है कि उसने आत्महत्या के लिए प्रेरित किया है, उसने सक्रिय भूमिका निभाई हो...घटना के दरमियान अभियुक्त की ओर से किसी सकारात्मक कार्रवाई के बिना केवल परेशान करना, जिसके कारण आत्महत्या हुई, धारा 306 IPC के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। "

    अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा उकसाना तब होता है, जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को कुछ करने के लिए कहता है और उकसाने का अनुमान तब लगाया जा सकता था, जब आरोपी अपने कृत्यों से ऐसी परिस्थितियां पैदा करता है कि मृतक के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। [ चित्रेश कुमार चोपड़ा बनाम राज्य (NCT दिल्ली सरकार) (2009) 16 एससीसी 605 के संदर्भ में ]

    इसलिए पीठ ने अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरोप यह है कि उन्होंने मृतक को परेशान किया, लेकिन रिकॉर्ड पर कोई अन्य सामग्री नहीं है जो उकसाने का संकेत देती हो।

    मामला: शब्बीर हुसैन बनाम मध्य प्रदेश राज्य [एसएलपी (सीआरएल) 7284/2017]

    कोरम: जस्टिस एल नागेश्वर राव और अनिरुद्ध बोस

    सिटेशन: एलएल 2021 एससी 341

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