महज इलाज सफल न होने या सर्जरी के दौरान मरीज की मौत होने मात्र से ही मेडिकल प्रोफेशनल को लापरवाह नहीं ठहराया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
8 Sept 2021 10:50 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक मेडिकल प्रोफेशनल को केवल इसलिए लापरवाह नहीं माना जा सकता क्योंकि उपचार सफल नहीं हुआ या सर्जरी के दौरान रोगी की मृत्यु हो गई।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि लापरवाही का संकेत देने के लिए रिकॉर्ड पर तथ्य उपलब्ध होना चाहिए या फिर उचित चिकित्सा साक्ष्य प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि 'रिस इप्सा लोक्विटुर' (केवल कुछ प्रकार की दुर्घटना का होना ही लापरवाही का संकेत देने के लिए पर्याप्त है) का सिद्धांत तब लागू किया जा सकता है जब कथित लापरवाही पूरी तरह स्पष्ट हो और केवल धारणा पर आधारित न हो।
इस मामले में किडनी स्टोन का पता चलने पर अस्पताल में भर्ती हुई महिला की सर्जरी के बाद मौत हो गई, जिसके उपरांत उसके पति (दावेदार) ने चिकित्सा में लापरवाही का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) से संपर्क किया। एनसीडीआरसी ने डॉक्टर और अस्पताल को चिकित्सकीय लापरवाही का दोषी ठहराया और मुआवजे के रूप में सत्रह लाख रुपये का मुआवजा ब्याज के साथ भुगतान करने का निर्देश दिया।
अपील में, पीठ ने कहा कि इस मामले में, एनसीडीआरसी के समक्ष दावेदारों द्वारा लगाए गए आरोपों के अलावा, डॉक्टरों की ओर से लापरवाही का संकेत देने के लिए कोई अन्य चिकित्सा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है।
कोर्ट ने कहा,
"यह स्पष्ट है कि हर मामले में जहां उपचार सफल नहीं होता है या सर्जरी के दौरान रोगी की मृत्यु हो जाती है, यह स्वत: यह नहीं माना जा सकता है कि पेशेवर चिकित्सक ने लापरवाही की थी। लापरवाही को इंगित करने के लिए रिकॉर्ड पर सामग्री उपलब्ध होनी चाहिए या उपयुक्त चिकित्सा साक्ष्य प्रस्तुत किया जाना चाहिए। कथित लापरवाही इतनी स्पष्ट होनी चाहिए कि उस स्थिति में रेस इप्सा लोक्विटूर के सिद्धांत को लागू किया जा सकता है, केवल धारणा के आधार पर नहीं। मौजूदा मामले में, एनसीडीआरसी के समक्ष दावेदारों द्वारा लगाए गए आरोपों के अलावा दोनों शिकायत में और कार्यवाही में दायर हलफनामे में, शिकायतकर्ता द्वारा डॉक्टरों की ओर से लापरवाही का संकेत देने के लिए कोई अन्य चिकित्सा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिन्होंने अपनी ओर से अपने हलफनामे में चिकित्सा प्रक्रिया से यह समझाने के लिए अपनी स्थिति स्पष्ट की थी कि इलाज में कोई लापरवाही नहीं की गयी थी।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा की गई जांच को दूसरी सर्जरी और मरीज की स्थिति के मामले में डॉक्टरों या अस्पताल की ओर से लापरवाही साबित करने के लिए चिकित्सा साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए कहा:
"23. उपरोक्त परिस्थिति में जब एनसीडीआरसी के समक्ष ऐसे महत्वपूर्ण चिकित्सीय पहलू पर कोई चिकित्सीय साक्ष्य उपलब्ध नहीं था जिसके लिए इस तरह की राय की आवश्यकता थी, केवल मजिस्ट्रियल जांच पर भरोसा करना पर्याप्त नहीं होगा। हालांकि सिविल सर्जन, जो समिति के सदस्य थे, की राय रिपोर्ट में निहित है, लेकिन इसे निर्णायक नहीं माना जा सकता, क्योंकि इस तरह की रिपोर्ट में वैधानिक तथ्य मौजूद नहीं है और न ही जिरह के दौरान सिविल सर्जन से चिकित्सा पहलुओं पर मांगी गयी जानकारियों में कोई दम। इसलिए, यदि इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है, तो उपचार की शुद्धता या ऑपरेशन करने का निर्णय और अपनाई जाने वाली विधि सभी को इस मामले के विशेष तथ्यों में चिकित्सा साक्ष्य की पृष्ठभूमि में विचार करने की आवश्यकता थी। जैसा कि संकेत दिया गया है, केवल कानूनी सिद्धांत और मूल्यांकन के सामान्य मानक वर्तमान प्रकृति के मामले में पर्याप्त नहीं थे, जबकि उसी व्यवस्था के तहत वही रोगी का डॉक्टरों की उसी टीम द्वारा एक सफल ऑपरेशन किया गया था। इसलिए, जिस निष्कर्ष पर एनसीडीआरसी पहुंचा है वह टिकाऊ नहीं है।"
केस: डॉ. हरीश कुमार खुराना बनाम जोगिंदर सिंह; सिविल अपील नं. 7380/ 2009
साइटेशन: एलएल 2021 एससी 425
कोरम: जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एएस बोपन्ना
वकील : एनेस्थेटिस्ट की ओर से एडवोकेट क्रिस्टी जैन और अस्पताल की ओर से एडवोकेट लिज़ मैथ्यू पेश हुए
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