"विपरीत लिंगों का विवाह भारतीय कानूनी व्यवस्था के केंद्र में है": जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने समलैंगिक विवाह की मान्यता की मांग संबंधी याचिकाओं का विरोध किया
Avanish Pathak
1 April 2023 7:50 PM IST
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भारत में समलैंगिक विवाह (same sex marriage) को कानूनी मान्यता देने से संबंधित मामले में हस्तक्षेप की मांग की है।
संगठन ने तर्क दिया है कि एक कानूनी संस्था के रूप में विपरीत लिंग के बीच विवाह भारत की कानूनी व्यवस्था के केंद्र में रहा है। उन्होंने मौजूदा कानूनी व्यवस्था में समलैंगिक विवाह को फिट करने के लिए दायर याचिकाओं का विरोध किया है।
संगठन की ओर से दायर हस्तक्षेप आवेदन की दलील दी गई है कि विवाह की अवधारणा "किन्हीं दो व्यक्तियों" के मिलाप की सामाजिक-कानूनी मान्यता से कहीं अधिक है और इसकी मान्यता स्थापित सामाजिक मानदंडों के आधार पर है, यह अलग विश्वदृष्टि से उभरी नई मूल्य प्रणाली पर आधारित परिवर्तनशील धारणाओं के आधार पर बदलती नहीं रह सकती।
दलील दी गई है,
"एक कानूनी संस्था के रूप में विपरीत लिंग के बीच विवाह हमारे जैसे देश की कानूनी व्यवस्था के केंद्र में रहा है। हमारे पास कई वैधानिक प्रावधान हैं, जो विपरीत लिंग के बीच विवाह सुनिश्चित करते हैं, जिनके
संबंधित परिणामी कानूनी प्रावधानों के साथ विरासत, उत्तराधिकार और विवाह से उत्पन्न कर देनदारियों से संबंधित विभिन्न अधिकार हैं। इसलिए, दो विपरीत लिंगों के बीच विवाह की अवधारणा विवाह की अवधारणा की "मूल विशेषता" है, जो कई अधिकारों का निर्माण करती है।
आवेदन में कहा गया है कि समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने वाली याचिकाएं "फ्री-फ्लोटिंग सिस्टम" की शुरुआत करके विवाह की अवधारणा को कमजोर कर रही हैं, जो कि "एक स्थिर संस्था" है।
दलील दी गई है कि जिन देशों में समलैंगिक विवाहों को वैध किया गया है, वे शिक्षा/साक्षरता और सामाजिक स्वीकृति के संदर्भ में सामाजिक व्यवस्था के एक निश्चित स्तर तक पहुंच गए हैं। आवेदन का तर्क है कि समलैंगिक विवाह की अवधारणा को भारत में पेश नहीं किया जा सकता है।
आवेदन में तर्क दिया गया है, "यह उल्लेख करना भी उचित है कि अधिकांश पूर्वी देश "समान-लिंग विवाह 'को मान्यता नहीं देते हैं।"
आवेदन में यह दलील देने के लिए कि समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी जा सकती विभिन्न धर्मों पर भी भरोसा किया गया है।
आवेदन में कहा गया है,
"हिंदू धर्म में विवाह को एक धार्मिक संस्कार के रूप में परिभाषित किया गया है...। हिंदू धर्म में विवाह का उद्देश्य केवल नहीं है भौतिक सुख या संतान नहीं बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी है। यह सोलह संस्कारों में से एक है।"
आवेदन में तर्क दिया गया है कि ईसाई धर्म और इस्लाम में समलैंगिकता का निषेध इन धर्मों की शुरुआत से ही स्पष्ट रहा है। "इस्लामी कानून और धर्मशास्त्र में लिंग और यौनिकता के इस्लामी प्रतिमान का एक अध्ययन केवल दो लिंगों (जैविक) के एक स्पष्ट और निश्चित सिद्धांत को दर्शाता है। ।
उल्लेखनीय है कि समलैंगिक विवाहों की वैधता से संबंधित याचिकाओं को एक संविधान पीठ के समक्ष अंतिम निस्तारण और सुनवाई के लिए 18 अप्रैल 2023 को सूचीबद्ध किया गया है।