विवाह समानता | सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नई पहेली, किस पार्टनर की उम्र 21 होगी, किसकी 18?
Avanish Pathak
19 April 2023 3:57 PM IST
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिलाने के लिए दायर याचिकाओं पर बुधवार को भी सुनवाई जारी रखी।
आज पीठ के समक्ष यह मुद्दा उठा कि समलैंगिक विवाह में दोनों पार्टनरों में से किस पार्टनर की उम्र 18 साल होगी और किसकी उम्र 21 साल होगी, जैसा कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत प्रावधान है। उल्लेखनीय है कि पांच जजों की संवैधानिक पीठ में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है।
उम्र के मुद्दे पर आज चर्चा तब शुरू हुई जब सीनियर एडवोकेट ने मुकुल रोहतगी ने यह बताने के लिए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में लिंग तटस्थ शब्द कहां हैं डाला जा सकता है, अधिनियम के प्रावधानों की जानकारी दी।
विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 विवाह के अनुष्ठान से संबंधित शर्तों को निर्धारित करती है। उप-धारा 3 में कहा गया है कि पुरुष को इक्कीस वर्ष की आयु पूरी करनी चाहिए और महिला को अठारह वर्ष की आयु पूरी करनी चाहिए।
जस्टिस हिमा कोहली ने पूछा कि यदि अधिनियम में लिंग-तटस्थ शब्द शामिल किया जाता है तो अधिनियम की धारा 4 को कैसे पढ़ा जाएगा। सीनियर एडवोकेट ने कहा कि अन्य धाराओं के लिए लिंग तटस्थ शब्दों को शामिल किया जा सकता है, धारा 4 में ऐसा नहीं किया जा सकता था।
उन्होंने सुझाव दिया कि प्रावधान को जैसा है वैसा ही छोड़ा जा सकता है। "यदि दो पुरुषों की शादी हो रही है, तो यह 21 हो। यदि दो महिलाओं की शादी हो रही है, तो यह 18 हो। आपको इसे बदलने की आवश्यकता नहीं है।"
हालांकि, जस्टिस कोहली और जस्टिस भट इससे संतुष्ट नहीं दिखे। उन्होंने कहा, "संपूर्ण विचार यह है कि आप खुद से परे जाते हैं ... फिर पुरुष और महिला क्यों? आप अंदर और बाहर विभाजित हो रहे हैं।"
रोहतगी ने तब जवाब दिया-
"यदि आप इसे एक व्यक्ति (पुरुष या महिला के बजाय) के रूप में पढ़ते हैं, तो यह दोहरी उम्र देगा। जो 18 होगा, जो 21 होगा?"
जस्टिस भट ने बीच में टोका-
"तो मुख्य भाग के लिए आप चाहते हैं कि यह लिंग तटस्थ हो लेकिन इस भाग के लिए, आप पुरुष और महिला को बनाए रखना चाहते हैं?"
सकारात्मक जवाब देते हुए रोहतगी ने कहा- "हां, क्योंकि अलग-अलग उम्र हैं- 18 साल और 21 साल। 18 साल को बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव है। पहले से ही एक बिल है। जैसे ही महिलाओं के लिए 18 साल 21 हो जाएगा, समस्या हल हो जाएगी।"
"यह थोड़ा खतरनाक तर्क है," सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस मौके पर यह कहते हुए मौखिक टिप्पणी की कि एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की एक याचिका एक बेंच के समक्ष पेश हुई थी, जिसे उन्होंने जस्टिस नरसिम्हा के साथ साझा किया था, जिसमें महिलाओं के लिए 18 वर्ष की आयु के प्रावधान को चुनौती दी गई थी। उन्होंने कहा कि उन्होंने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि अगर अदालत इस प्रावधान को असंवैधानिक मानती है, तो शादी की कोई न्यूनतम उम्र नहीं होगी।
हालांकि, जस्टिस भट धारा 4 के प्रयोजनों के लिए "पुरुष" और "महिला" शब्दों को बनाए रखने से संबंधित सबमिशन से संतुष्ट नहीं दिखे। उन्होंने कहा-
"इतने सारे स्पेक्ट्रम हैं। उन्हें कैसे समायोजित किया जा सकता है?"
इधर, सीनियर एडवोकेट केवी विश्वनाथन ने प्रस्तुत किया-
"धारा 4 उन्हें उनके द्वारा प्रकट किए गए लिंग को चुनने के विकल्प की गारंटी देता है।"
जस्टिस भट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की-
"तो अंततः आप उस सामाजिक रूढ़िवादिता पर वापस जा रहे हैं जिससे आप बचना चाहते हैं ... यह आप जो चाहते हैं, उसके साथ मेल खाता है, यह आपके उद्देश्य के अनुरूप है।"
रोहतगी ने तर्क दिया कि एक बार जब धारा 4 से संबंधित विनिमय समाप्त हो गया, तो अधिनियम के अन्य प्रावधानों में लिंग तटस्थ शब्दों को शामिल किया जा सकता है ।
अधिनियम की धारा 2(बी) का उल्लेख करते हुए, जो "निषिद्ध संबंध की डिग्री" को परिभाषित करता है - एक पुरुष और अधिनियम की पहली अनुसूची के भाग I में उल्लिखित व्यक्तियों में से किसी के रूप में और एक महिला और पहली अनुसची के भाग II में उल्लिखित व्यक्तियों में से किसी के संबंध में,
उन्होंने कहा-
"तो निषेध यह है कि एक पुरुष का भाग I में नामित सभी व्यक्तियों के साथ संबंध नहीं होगा, इसी तरह एक महिला का भाग II में वर्णित पुरुषों के साथ संबंध नहीं होगा। अब तकनीकी रूप से, भाग I में पिता गायब है। इसलिए एक पुरुष उन सभी के साथ जिनका भाग I में नाम दिया गया है, जो महिलाएं हैं, से संबंध नहीं बना सकता है। लेकिन तकनीकी रूप से वह एक पिता को शामिल कर सकता है। इसी तरह महिला भाग II में वर्णित सभी पुरुषों के साथ संबंध नहीं रख सकती है, लेकिन तकनीकी रूप से इसमें एक मां शामिल है। यह सिर्फ एक पहेली है। लेकिन अगर आप इसे पढ़ें जिस तरह से मैं कह रहा हूं (पुरुष और महिला को एक व्यक्ति के रूप में), इसलिए एक व्यक्ति और कोई भी व्यक्ति जिसका उल्लेख भाग I में है और एक व्यक्ति और कोई भी व्यक्ति जिसका उल्लेख भाग II में है। तो दोनों अब लागू होंगे।"
उनकी दलीलों पर स्पष्टीकरण मांगते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने पूछा-
"आपके अनुसार, अगर दो पुरुष शादी कर रहे हैं, तो यह केवल भाग I नहीं है जो लागू होगा और यदि दो महिलाओं की शादी हो रही है, तो यह केवल भाग II लागू नहीं होगा ... लेकिन यह भी एक मौन संकेत है कि विशेष विवाह अधिनियम ने समान लिंग के लोगों की शादी करने पर विचार नहीं किया है।"
इस पर रोहतगी ने जवाब दिया-
"संवैधानिक घोषणा के अनुरूप, यह होना चाहिए। अन्यथा यदि घोषणा दी जाती है तो यह असंवैधानिक हो जाएगा। हम नहीं चाहते कि यह असंवैधानिक हो। हम इसका उपयोग करना चाहते हैं।"
रोहतगी ने पीठ से यह भी आग्रह किया कि इस मुद्दे को केवल इस तर्क के आधार पर खारिज न किया जाए कि समाज समलैंगिक विवाह के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने कई उदाहरणों का हवाला दिया, जहां समाज में परिवर्तन कानून के जरिए किया गया था।
उन्होंने कहा,
"जब हिंदू कोड आया, तो संसद तैयार नहीं थी। हिंदू कोड सिर्फ हिंदू विवाह अधिनियम नहीं था, इसमें गोद लेना, उत्तराधिकार - बहुत सी चीजें थीं। इसे स्वीकार नहीं किया गया था। डॉ अंबेडकर को इस्तीफा देना पड़ा था। फिर यह खंण्डित तरीके से आया। पहले हिंदू विवाह अधिनियम, फिर उत्तराधिकार अधिनियम, फिर गोद लेने, संरक्षकता आदि के कानून- ये सभी बाद में आए। इसलिए जो 1950 में स्वीकार नहीं किया गया था, उसे 1956 में स्वीकार किया गया और फिर समाज का आदर्श बन गया।"
उन्होंने 19वीं सदी में आए हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह के अधिकार अधिनियम की शुरूआत का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा, "समाज बीसवीं सदी तक भी तैयार नहीं था। वहां कानून ने तत्परता से काम किया। इसलिए, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से एलबीटीक्यू समुदाय को हर तरह से समान मानने के लिए समाज पर जोर देने का आग्रह किया।
रोहतगी ने आज अपनी दलीलें पूरी कीं। पीठ अब याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवाकेट एएम सिंघवी की दलीले सुन रही है।
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