कई प्रतिष्ठित वकील बेंच में शामिल होने के इच्छुक नहीं, हालांकि वे एड-हॉक जज के रूप में काम करने के लिए तैयार: सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

8 Dec 2022 2:42 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सीनियर एडवोकेट अरविंद पी दातार और अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को निर्देश दिया कि वे हाईकोर्ट में एड-हॉक जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर विचार-मंथन करने और एक कम बोझिल प्रक्रिया प्रस्तुत करें।

    उल्लेखनीय है कि एनजीओ लोकप्रहरी ने एक जनहित याचिका दायर की है, और हाईकोर्ट में शेष मामलों की बढ़ती समस्या के निस्तारण के लिए एड-हॉक जजों की नियुक्ति के लिए अनुच्छेद 224ए का प्रयोग करने की मांग की है। उक्त याचिका के तहत दायर दो आवेदनों पर सुनवाई करते हुए ज‌स्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि सीनियर लॉयर्स बेंच पर स्थायी पदों को लेने की इच्छा नहीं दिखाते, वे अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में कुछ वर्षों के लिए एड-हॉक पदों को लेने के इच्छुक हो सकते हैं।

    खंडपीठ ने मौखिक रूप से दोनों वकीलों को इस बिंदु पर विचार करने और इस संबंध में सुझाव देने का आग्रह किया।

    पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में एड-हॉक जजों की नियुक्ति के संबंध में कई दिशा-निर्देश जारी किए थे। कोर्ट ने 5 ट्रिगर पॉइंट निर्धारित किए थे, जिनसे अनुच्छेद 224A के तहत प्रक्रिया सक्रिय हो सकती है-

    -यदि रिक्तियां स्वीकृत क्षमता के 20% से अधिक हैं।

    -एक विशेष श्रेणी के मामले पांच साल से अधिक समय से लंबित हैं।

    -लंबित मामलों के 10% से अधिक मामले पांच साल से अधिक पुराने हैं।

    -निस्तारण की दर का प्रतिशत किसी विशेष विषय या आम विषयों पर कोर्ट में मामलों के दा‌खिल होने से कम है।

    -भले ही कई पुराने मामले लंबित न हों, लेकिन क्षेत्राधिकार के आधार पर, शेष मामलों के बढ़ने की आशंका है, यदि निस्तारण की दर एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि में दाखिल करने की दर से लगातार कम है।

    जस्टिस कौल ने टिप्पणी की कि एड-हॉक जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया बहुत "बोझिल है और "काम नहीं" कर सकती।

    जज ने बताया कि हाईकोर्ट में में एड-हॉक जजों नियुक्ति पहली बार नहीं हो रहा है। वे पहले ऐसा कर चुके हैं और इस प्रकार उनके पास काम के बोझ से निपटने की विशेषज्ञता है।

    उन्होंने सुझाव दिया कि उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया नियमित नियुक्तियों की तुलना में सरल होनी चाहिए।

    उन्होंने कहा, ... हमें प्रक्रिया को आदर्श रूप से सरल बनाना चाहिए। हम उन्हें पहली बार नियुक्त नहीं कर रहे हैं, वे पहले ही जज रह चुके हैं..."

    उन्होंने सीनियर एडवोकेट को कुछ सालों के लिए एड-हॉक जज के रूप में नियुक्त करने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि ये प्रतिष्ठित वकील अपनी नियुक्ति की अवधि पूरी करने के बाद उन हाईकोर्ट में प्रैक्टिस नहीं करेंगे, जहां वे एड-हॉक जज के रूप में काम कर चुके हैं।

    जजों ने नियुक्तियों में विलंब की भी आलोचना की, और उन्होंने कहा कि यदि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिसों की अनुशंस पर कुछ दिनों के भीतर नियुक्ति नहीं की जाती है, तो मेधावी उम्मीदवार की रुचि नहीं रह जाती और न्याय वितरण प्रणाली को संकट का सामना करना पड़ता है।

    मामले की अगली सुनवाई 8 फरवरी, 2023 को की जाएगी।


    केस टाइटल: लोक प्रहरी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य। डब्ल्यूपी(सी) नंबर 1236/2019]

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