कुकी संगठन का आरोप: मणिपुर पुलिस ने फॉरेंसिक जांच में पूरी रिकॉर्डिंग नहीं, सिर्फ एडिटेड क्लिप्स भेजीं

Praveen Mishra

21 Nov 2025 10:54 PM IST

  • कुकी संगठन का आरोप: मणिपुर पुलिस ने फॉरेंसिक जांच में पूरी रिकॉर्डिंग नहीं, सिर्फ एडिटेड क्लिप्स भेजीं

    मणिपुर हिंसा मामले में बड़े आरोप: कुकी मानवाधिकार संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा—पुलिस ने NFSU को पूरी 48 मिनट की रिकॉर्डिंग नहीं भेजी, सिर्फ छोटे-छोटे क्लिप भेजे

    कुकी ऑर्गनाइज़ेशन फ़ॉर ह्यूमन राइट ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में गंभीर आरोप लगाया है कि मणिपुर पुलिस ने 2023 की जातीय हिंसा में पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की कथित संलिप्तता वाली 48 मिनट 46 सेकंड की पूरी ऑडियो रिकॉर्डिंग राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NFSU), गांधीनगर को भेजने के बजाय केवल चार छोटे संपादित क्लिप भेजे।

    संगठन ने हलफनामे में कहा कि पुलिस द्वारा भेजे गए 0:30, 1:28, 0:36 और 1:47 मिनट के क्लिप सबूत का अधूरा और भ्रमित करने वाला प्रस्तुतिकरण हैं और इससे जांच की निष्पक्षता प्रभावित होती है।

    यह हलफनामा NFSU की 10 अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट के जवाब में दायर किया गया है, जिसमें कहा गया था कि ऑडियो फ़ाइलें “tampered” हैं और वैज्ञानिक वॉयस तुलना के लायक नहीं। याचिका में संगठन ने राज्य मशीनरी की भूमिका की कोर्ट-निगरानी में स्वतंत्र जांच की मांग की है।

    “हमने पूरी रिकॉर्डिंग भेजी थी, पुलिस ने सिर्फ क्लिप भेजीं” — संगठन

    हलफनामे में कहा गया कि—

    • याचिकाकर्ता ने 22 जनवरी 2025 को पूरी रिकॉर्डिंग कोर्ट में दाखिल की थी।

    • कोर्ट ने निर्देश दिया था कि पूरी फ़ाइल को NFSU जांचे।

    • लेकिन साइबर क्राइम यूनिट ने केवल चार छोटे अंश प्रयोगशाला को भेजे।

    • याचिकाकर्ता और वकील को इसकी जानकारी भी नहीं दी गई।

    संगठन का कहना है कि अधूरे क्लिप भेजे जाने के कारण न NFSU और न ही CFSL रिकॉर्डिंग की निरंतरता या प्रामाणिकता का परीक्षण कर सके।

    NFSU ने इन क्लिपों में AI-generated/processed जैसे संकेत बताए और तुलना करने से इनकार कर दिया। यहां तक कि दूरदर्शन द्वारा दिए गए मुख्यमंत्री के मूल भाषण के सैंपल को भी “processed/altered” बताया गया।

    Truth Labs की रिपोर्ट: 'आवाज़ 93% संभावना से मैच करती है'

    हलफनामे में कहा गया कि—

    • Truth Labs ने दो पेन ड्राइवों पर ऑडिटरी, स्पेक्ट्रोग्राफिक और ध्वनिक परीक्षण किए।

    • जांच के बाद 18 जनवरी 2025 को रिपोर्ट दी कि दोनों आवाज़ें 93% संभावना से मेल खाती हैं।

    • संगठन का कहना है कि Truth Labs की जांच अधिक वैज्ञानिक, विस्तृत और विश्वसनीय है।

    2023 हिंसा में राज्य मशीनरी की कथित भूमिका पर सवाल

    हलफनामे में कहा गया कि 48 मिनट की रिकॉर्डिंग के ट्रांसक्रिप्ट, जो पहली बार अगस्त 2024 में सामने आए थे, 2023 की जातीय हिंसा में राज्य मशीनरी का रोल दिखाते हैं।

    साथ ही कहा गया कि जस्टिस लांबा आयोग को भी पूर्ण रिकॉर्डिंग मिली थी, पर सुरक्षा कारणों से छोटे हिस्से Truth Labs को भेजे गए थे।

    SIT जांच की दोबारा मांग

    संगठन ने कहा कि वह 8 नवंबर 2024 से अब तक सुप्रीम कोर्ट के हर निर्देश का पालन कर रहा है जबकि राज्य अधूरी सामग्री भेजता रहा।

    हलफनामे में कहा गया कि—

    “रिकॉर्ड दिखाता है कि राज्य के शीर्ष स्तर पर संलिप्तता की prima facie संभावना है। रिकॉर्डिंग की प्रामाणिकता की जांच कोर्ट का नहीं, बल्कि जांच एजेंसी का काम है।”

    अंत में संगठन ने कहा:

    “फॉरेंसिक रिपोर्ट का अधूरापन जांच रोकने का आधार नहीं हो सकता। यदि जांच में कुछ न मिले, तो क्लोज़र रिपोर्ट दायर की जा सकती है। लेकिन स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से जांच शुरू होना आवश्यक है।”

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