मद्रास हाईकोर्ट ने जिला जज की परीक्षा में शामिल होने के लिए ओबीसी उम्मीदवारों को आयु सीमा में छूट देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

7 Feb 2020 3:36 PM IST

  • मद्रास हाईकोर्ट ने जिला जज की परीक्षा में शामिल होने के लिए ओबीसी उम्मीदवारों को आयु सीमा में छूट देने से इनकार किया

    मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को जिला न्यायाधीश की परीक्षा में शामिल होने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उम्मीदवारों को ऊपरी आयु सीमा में छूट देने से इनकार कर दिया।

    चीफ जस्टिस एपी साही और जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की खंडपीठ ने उन याचिकाओं के बैच को खारिज कर दिया, जिनमें ओबीसी उम्‍मीदवारों की ऊपरी आयु सीमा को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/ एसटी) के उम्मीदवारों की ऊपरी आयु सीमा के बराबद करने की मांग की गई थी। मतलब यह कि ओबीसी उम्‍मीदवार की ऊपरी आयु सीमा को 45 वर्ष से बढ़ाकर 48 वर्ष करने की मांग की गई ‌थी।

    कोर्ट ने देखा कि ऐसे मुद्दों पर ऑल ‌इंडिया जजेज़ असोसिएशन व अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2002) 4 एससीसी 247 के मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसला कर चुका था। उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आयु में छूट के संबंध में शेट्टी आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार किया था, जिसमें पिछड़ा वर्ग को अलग आयु छूट नहीं दी गई थी।

    पीठ ने कहा-

    "ऑल इंडिया जजेज़ असोसिएशन व अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (सुप्रा) के मामले में दिया गया फैसला शेट्टी कमीशन की रिपोर्ट पर आधारित सचेत निर्णय है, जिसमें आईएएस की भर्तियों में अन्य पिछड़ा वर्ग को दी गई छूट का भी ध्यान रखा गया है और उक्त फैसले में न्यायिक सेवाओं में पिछड़े वर्ग के लिए ऊपरी आयु सीमा में छूट के लिए कोई सिफारिश नहीं की गई है। हम इसलिए उसी से बंधे हैं।"

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया कि ओबीसी वर्ग को उम्र में छूट के लाभ से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लांघन है और भेदभावपूर्ण है।

    कोर्ट ने कहा कि आयु-सीमा में छूट की आरक्षण का मौलिक अधिकार नहीं है। 'आरक्षण' और 'छूट', दोनों को दो अलग-अलग अवधारणाओं के रूप में समझा जाना चाहिए। छूट, आरक्षण का पर्याय नहीं है।

    "आरक्षण के मुद्दे और आयु-सीमा में छूट के सवाल का एक साथ घालमेल नहीं किया जा सकता है, ... आरक्षण भारतीय संविधान और वर्तमान संदर्भों में, मौलिक संवैधानिक अधिकार का हिस्सा है। जबकि छूट कुछ आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वैधानिक प्रक्रिया का नुस्खा है, जिसके इस्तेमाल का दारोमदार अथॉरिटीज़ का है।

    कोर्ट ने आगे कहा-

    "यह एक स्वीकार की गई स्थिति है कि SC/ST वर्ग के उम्मीदवारों को अन्य पिछड़े वर्गों की तुलना में एक अलग पैमाने पर रखा गया है। इन दोनों वर्गों के लिए अलग प्रावधान बनाकर संवैधानिक योजना द्वारा समर्थित है।"

    कोर्ट कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बंधी हुई है, हालांकि साथ ही यह भी कहा कि उसके पास ऊपरी आयु-सीमा में छूट देने की संवैधानिक शक्तियां हैं, मगर वह ऐसा करेगी नहीं। अदालत का विचार था कि दो अलग-अलग श्रेणियों के लिए अलग-अलग ऊपरी आयु-सीमा निर्धारित करने की वर्तमान व्यवस्था उच‌ित है और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

    अदालत ने याचिकाकर्ता के इस अनुरोध को स्वीकार करने इनकार कर दिया कि अन्य उच्च न्यायालयों ने ओबीसी उम्मीदवारों को आयु में छूट का लाभ दिया है।

    पीठ ने 13 जनवरी, 2019 को हाईकोर्ट के अधिकारियों द्वारा जारी एक अधिसूचना पर भरोसा करने के याचिकाकर्ता के प्रयास को भी ठुकरा दिया, जिसमें जिला न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिए एक ओबीसी उम्मीदवार की ऊपरी आयु सीमा 48 वर्ष बताई गई थी।

    बेंच ने कहा कि अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि यह अनजाने में हुई गलती थी और 12 दिसंबर, 2019 को एक और अधिसूचना जारी की गई, जिसमें सही आयु सीमा दी गई थी।

    "नियमों के विपरीत विज्ञापन निहित अधिकार का आधार नहीं बन सकता है या नियमों से परे वैध अपेक्षा को जन्म नहीं दे सकता है।" उल्‍लेखनीय है कि तमिलनाडु राज्य न्यायिक सेवा (कैडर और भर्ती) नियम, 2007 के तहत ऐसी आयु में छूट स्वीकार्य नहीं है।

    अदालत ने अंत में उक्त पद के लिए रिक्तियों की अधिसूचना जारी करने के बीच पांच साल से अधिक के अंतराल से संबंधित मुद्दे को संबोधित किया। याचिकाकर्ता ने कहा था कि 2013 और 2019 के बीच जिला न्यायाधीश पद के लिए परीक्षा आयोजित नहीं की गई, जिससे बहुत सारे उम्मीदवार वंचित रह गए, जिनकी 'वैध अपेक्षा' थी कि एक परीक्षा आयोजित की जाएगी।

    इस मुद्दे पर किसी भी तरह की राहत की घोषणा न करते हुए, अदालत ने यह माना कि परीक्षाओं के आयोजन में देरी के कारण अवसर की हानि स्वयं ही हो जाती है....जो उम्र में छूट प्रदार करने का आधार नहीं हो सकती है।

    मामले में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के इनकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था ताकि उन्हें अंतरिम उपाय के रूप में परीक्षा के लिए अनंतिम रूप से पंजीकृत करने की अनुमति मिल सके। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को स्वीकार नहीं किया था और हाईकोर्ट से मुख्य याचिका को शीघ्रता से विचार करने का अनुरोध किया था।

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