एमएसीपी योजना एक सितंबर 2008 से लागू, वित्तीय उन्नयन का अधिकार निकटमत अगले ग्रेड वेतन के लिए है न कि अगले पदोन्नति पद के लिए: सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

24 Aug 2022 8:09 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि संशोधित सुनिश्चित करियर प्रगति योजना (MACP) 01.09.2008 से लागू है न कि 01.01.2006 से, जिस तारीख से छठे केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशें प्रभावी हैं। कोर्ट ने कहा कि एमएसीपी के तहत निकटतम अगले ग्रेड पे के बराबर वित्तीय उन्नयन का अधिकार है और न कि निकतटम अगले पदोन्नति पद के लिए।

    यूनियन ऑफ इंडिया (यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एक्स एचसी/जीडी वीरेंद्र सिंह और संबंधित मामलों) की ओर से दायर अपीलों के एक बैच पर फैसला करते हुए जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया।

    हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया कि एमएसीपी योजना 01.01.2006 से लागू है और एमएसीपी योजना के तहत कर्मचारी अगले पदोन्नति पद के बराबर वित्तीय उन्नयन के हकदार हैं।

    हालांकि केंद्रीय सशस्त्र बलों के लिए एमएसीपी योजना के संबंध में न्यायालय ने माना कि ऐसे कर्मियों को, जिन्हें प्रशासनिक या अन्य कारणों से पदोन्नति-पूर्व पाठ्यक्रमों के लिए नहीं भेजा गया, उन्हें वित्तीय उन्नयन प्रदान करने के लिए पदोन्नति पूर्व (Pre-promotional) मानदंडों को पूरा करने पर जोर नहीं देना चाहिए। केंद्र सरकार ने कोर्ट के समक्ष स्वीकार किया कि प्रशासनिक कारणों से पदोन्नति-पूर्व पाठ्यक्रम से गुजर नहीं पाए कर्मियों से इस आवश्यकता पर जोर नहीं देना चाहिए।

    बेंच ने लागू होने की तारीख और एमएसीपी योजना के दायरे के संबंध में यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम एमवी मोहनन नायर (2020) में तीन जजों की बेंच के फैसले का अनुकरण किया।

    उस फैसले में, यह समझाया गया था कि एमएसीपी को उन कर्मचारियों को वित्तीय उन्नयन का लाभ देने के लिए पेश किया गया था, जो अपेक्षित वर्षों की सेवा के बावजूद पदोन्नति पाने में असमर्थ थे। हालांकि, वित्तीय उन्नयन व्यक्तिगत है, यह नियमित या वास्तविक कार्यात्मक पदोन्नति के समान नहीं है और एक नए पद के निर्माण की आवश्यकता नहीं है।

    इसका वरिष्ठता की स्थिति से कोई संबंध नहीं है और आरक्षण के सिद्धांत लागू नहीं होते हैं। वित्तीय उन्नयन केवल उन्हीं कर्मचारियों को दिया जाता है, जिन्हें अपेक्षित सेवा अवधि पूरी होने के बाद भी वास्तविक या कार्यात्मक पदोन्नति नहीं मिली है, हालांकि वे पदोन्नति के लिए निर्धारित शर्तों को पूरा करते हों।

    साथ ही, यूनियन ऑफ इंडिया बनाम आरके शर्मा व अन्य में एमएसीपी की प्रभावी तिथि 01.09.2008 है।

    हालांकि कर्मचारियों ने यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम बलबीर सिंह तुर्न और अन्‍य (2018) में दो जजों के फैसले पर भरोसा करने की मांग की, जिसने एमएसीपी योजना को 01.01.2006 से प्रभावी माना था। बेंच ने इसे इस आधार पर स्वीकार नहीं किया कि एमवी मोहनन नायर में तीन जजों की पीठ ने अन्यथा आयोजित किया है।

    पीठ ने फैसले में कहा,

    "यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा दायर अपीलों आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और आक्षेपित निर्णय को, उस हद तक कि एमएसीपी योजना 1.1.2006 से लागू है और एमएसीपी योजना के तहत कर्मचारी अगले पदोन्नति पद के बराबर वित्तीय उन्नयन के हकदार हैं, को रद्द किया जाता है। एमएसीपी योजना 1.9.2008 से लागू है।

    एमएसीपी योजना के अनुसार, केंद्रीय सिविल सेवा (संशोधित वेतन) नियम, 2008 की पहली अनुसूची के खंड 1, भाग ए में बताए गए वेतन बैंड के पदानुक्रम में निकटम अगले ग्रेड वेतन के बराबर वित्तीय उन्नयन की पात्रता है।


    केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एक्स एचसी/जीडी वीरेंद्र सिंह और जुड़े मामले

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एससी) 699

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