लखनऊ गोमती रिवर फ्रंट घोटाला : सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व प्रोजेक्ट सलाहकार को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

Shahadat

17 Jun 2023 4:58 AM GMT

  • लखनऊ गोमती रिवर फ्रंट घोटाला : सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व प्रोजेक्ट सलाहकार को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट के पूर्व सलाहकार बद्री श्रेष्ठ की अग्रिम जमानत खारिज कर दी गई, जिस पर प्रोजेक्ट को लागू करने में भारी भ्रष्टाचार और बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का आरोप लगाया गया था।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष श्रेष्ठा ने अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी, जिसे 15 दिसंबर, 2022 को विस्तृत निर्णय द्वारा खारिज कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर की गई, जिसमें इसे चुनौती दी गई।

    सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी खारिज करते हुए टिप्पणी की,

    "कुछ सुनवाई के बाद सीनियर वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता खुद को ट्रायल कोर्ट के सामने पेश करेगा और जमानत के लिए आवेदन करेगा। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि विवादित आदेश में टिप्पणियों को आवेदन के विचार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालना चाहिए। यह स्पष्ट किया जाता है कि याचिका में यदि याचिकाकर्ता ज़मानत के लिए आवेदन करता है तो ट्रायल कोर्ट अदालतों के आदेशों से अप्रभावित रहते हुए यथासंभव शीघ्रता से विचार करेगा और आदेश पारित करेगा।

    हालांकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई स्वतंत्रता को आत्मसमर्पण करने या प्राप्त करने के बजाय श्रेष्ठ ने हाईकोर्ट के समक्ष दूसरी अग्रिम जमानत याचिका दायर की। उक्त आवेदन को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने दूसरी जमानत अर्जी के सीमित दायरे पर विचार किया।

    यह कहा गया,

    “दूसरी जमानत अर्जी/अग्रिम जमानत अर्जी पर सीमित आधार पर ही विचार किया जाना है। कानून में बदलाव या कुछ नए तथ्य किसी ऐसे अभियुक्त को अग्रिम जमानत पर बढ़ाने का आधार नहीं हो सकते हैं, जिसकी अपील के लिए विशेष अनुमति (आपराधिक) सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई हो। अग्रिम जमानत के लिए दूसरा आवेदन न तो पुनर्विचार है और न ही अपील। दूसरी ज़मानत अर्ज़ी के फ़ैसले के लिए सीमित आधार है, जो परिस्थिति में बदलाव है। बीच में कुछ निर्णयों को बदलना अभियुक्त को अग्रिम जमानत आवेदन के लिए बढ़ाने का आधार नहीं हो सकता है, खासकर तब जब उसने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने आदेश दिनांक 07.02.2023 में दी गई स्वतंत्रता का पालन करने के लिए सहमति दी हो।

    जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की अवकाश पीठ के समक्ष जैसे ही यह मामला शुक्रवार को सुनवाई के लिए आया, जस्टिस कोहली ने शुरुआत में ही श्रेष्ठा की ओर से पेश सीनियर वकील को चेतावनी दी,

    "जुर्माने के लिए तैयार रहें। यह प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसे ध्यान में रखें और फिर बहस करें। हाईकोर्ट इतना उदार था कि उसने जुर्माना नहीं लगाया, हम इतने उदार नहीं हैं।

    सीनियर वकील ने कहा कि वह याचिका वापस ले लेंगे और सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश का पालन करेंगे।

    तदनुसार, खंडपीठ ने आदेश में दर्ज किया,

    "याचिकाकर्ता के सीनियर वकील ने निर्देश पर कहा कि याचिकाकर्ता को वर्तमान याचिका वापस लेने और 07.02.2023 के फैसले का पालन करने के लिए कदम उठाने की अनुमति दी जा सकती है।"

    जस्टिस कोहली ने सीनियर वकील से कहा,

    "आपको अपने मुवक्किल को सलाह देनी चाहिए थी। आपका मुवक्किल कानून के साथ खिलवाड़ कर रहा है।”

    [केस टाइटल: बद्री श्रेष्ठ बनाम सीबीआई एसएलपी (सीआरएल) नंबर 7012/2023]

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