जब लड़की नाबालिग तो 'प्रेम संबंध' जमानत के लिए अप्रासंगिक आधार: पॉक्सो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा
LiveLaw News Network
22 Feb 2022 1:13 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सेक्शन 376, आईपीसी और सेक्शन 6, पोक्सो एक्ट के तहत आरोपी एक व्यक्ति की जमानत रद्द कर दी। झारखंड हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने उसे जमानत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि अभियोक्ता नाबालिग है। अभियोक्ता और आरोपी के बीच "प्रेम संबंध" था, आरोपी ने कथित रूप से विवाह से इनकार कर दिया। हालांकि "प्रेम संबंध" का आधार जमानत पर विचार करने के लिए अप्रासंगिक होगा।
झारखंड हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने अगस्त, 2021 में दूसरे प्रतिवादी/आरोपी के जमानत आवेदन को शर्तों के अधीन अनुमति दी थी। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रही थी।
पीठ ने कहा कि 27 जनवरी 2021 को जिला रांची में अन्य बातों के साथ-साथ आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी।
पीठ ने रिकॉर्ड किया, "याचिकाकर्ता की शिकायत में यह आरोप लगाया गया कि जब वह नाबालिग थी तो दूसरा प्रतिवादी उसे एक आवासीय होटल में ले गया और शादी करने के आश्वासन पर उसके साथ यौन संबंध बनाए। शिकायतकर्ता ने आगे बताया कि दूसरे प्रतिवादी ने उससे शादी करने से इनकार किया और उसने उसके पिता को अश्लील वीडियो भेजे।
दूसरे प्रतिवादी ने अग्रिम जमानत के लिए विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो), रांची के समक्ष आवेदन दिया, जिसे फरवरी, 2021 में खारिज कर दिया गया। इसके बाद, दूसरे प्रतिवादी ने आत्मसमर्पण कर दिया और जमानत की मांग की। 24 मई 2021 को विशेष न्यायाधीश के समक्ष आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।"
जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने आगे दर्ज किया कि झारखंड हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने जमानत के लिए आवेदन की अनुमति दी है। उन्होंने जिन कारणों को जमानत का आधार माना है, वह निम्नलिखित हैं-
'सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए गए बयान के साथ-साथ एफआईआर में किए गए बयानों से यह प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच प्रेम संबंध था और याचिकाकर्ता ने शिकायकर्ता से विवाह करने से इनकार कर दिया, मामला केवल इसी बिंदु पर स्थापित किया गया प्रतीत होता है।''
अपीलकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने प्रस्तुत किया कि 1. आधार कार्ड में दर्ज अपीलकर्ता की जन्म तिथि एक जनवरी 2005 है; 2. जिस समय कथित अपराध हुए थे, उस समय उसकी उम्र लगभग 13 वर्ष थी; 3. आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों के सापेक्ष, जिन कारणों का हाईकोर्ट ने परीक्षण किया है, वे प्रथम दृष्टया असंगत हैं और जमानत के लिए आवेदन की अनुमति नहीं दी जा सकती थी।
श्री ग्रोवर ने सोमवार को मौखिक रूप से अदालत में कहा, "आरोपी 20 साल का था, इसलिए ऐसा नहीं है कि जब यह हुआ था तब वे दोनों नाबालिग थे। 13 साल की बच्ची कानून में सहमति नहीं दे सकती थी। वैधानिक रूप से यह बलात्कार है। दुर्भाग्य से हाईकोर्ट का कहना है कि दोनों के बीच प्रेम संबंध था और यह मामला तभी दर्ज किया गया जब उसने शादी से इनकार कर दिया और इसलिए जमानत दी गई।
पीठ ने आदेश में आगे दर्ज किया कि दूसरे प्रतिवादी की ओर से पेश एडवोकेट राजेश रंजन ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज अभियोक्ता के बयान पर भरोसा किया है।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि आरोप पत्र प्रस्तुत किया जा चुका है, लेकिन कथित अश्लील वीडियो की कोई बरामदगी नहीं हुई है, और न ही यह इंगित करने के लिए कोई चिकित्सा साक्ष्य है कि दूसरे प्रतिवादी ने अपीलकर्ता के साथ यौन संबंध बनाए।
जस्टिस सूर्यकांत ने इस बिंदु पर मौखिक रूप से कहा, "चिकित्सकीय साक्ष्य और सब कुछ परीक्षण का मामला है।"
इसके बाद पीठ ने कहा कि, "हमारे विचार में हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से जमानत के लिए आवेदन की अनुमति देने में गलती की थी, विशेष रूप से इस आधार पर कि धारा 164 के तहत बयान के साथ-साथ एफआईआर से ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलकर्ता और दूसरे प्रतिवादी के बीच 'प्रेम प्रसंग' था और दूसरे प्रतिवादी द्वारा अपीलकर्ता के साथ विवाह करने से इनकार करने पर मामला स्थापित किया गया था।"
पीठ ने कहा, "प्रथम दृष्टया अदालत के समक्ष मौजूद सामग्री से प्रकट होता है कि अपीलकर्ता उस तारीख को मुश्किल से 13 वर्ष का था जब कथित अपराध हुआ था, इस आधार पर कि दोनों के बीच 'प्रेम संबंध' था, शादी से कथित इनकार जमानत के खिलाफ परिस्थितियां हो सकती हैं।"
पीठ ने कहा, "अभियोक्ता की उम्र और प्रकृति और अपराध की गंभीरता को देखते हुए, जमानत देने का कोई मामला स्थापित नहीं किया गया था। जमानत देने के अपने आदेश में, हाईकोर्ट द्वारा जिन परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया था, वे आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के प्रावधानों के संबंध में प्रकृति में अप्रासंगिक हैं। हम तदनुसार अपील की अनुमति देते हैं और हाईकोर्ट के आक्षेपित आदेश को रद्द करते हैं। हाईकोर्ट के आक्षेपित आदेश को रद्द करने के परिणामस्वरूप, दूसरा प्रतिवादी तत्काल आत्मसमर्पण करेगा।"
केस शीर्षक: एक्स (नाबालिग) बनाम झारखंड राज्य और अन्य।