रेलवे की जमीन पर झुग्गियों को अतिक्रमण की अनुमति देने की जिम्मेदारी स्थानीय प्राधिकरण लें: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

13 Nov 2021 1:22 PM GMT

  • रेलवे की जमीन पर झुग्गियों को अतिक्रमण की अनुमति देने की जिम्मेदारी स्थानीय प्राधिकरण लें: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक मौखिक टिप्पणी में कहा कि रेलवे की जमीन पर झुग्गियों को अतिक्रमण की अनुमति देने की जिम्मेदारी स्‍थानीय नगरपालिक को लेनी चाहिए। कोर्ट ने यह टिप्पणी रेलवे की जमीन से बेदखल किए गए झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिए भारतीय रेलवे जिम्मेदार है या गुजरात सरकार या सूरत नगर पालिका, इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए की।

    कोर्ट ने पूछा, "यदि स्थानीय प्राधिकरण ने अतिक्रमण की अनुमति दी है तो राज्य पुनर्वास के लिए कैसे जिम्मेदार हो सकता है?"

    जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ सूरत और फरीदाबाद में रेलवे पटरियों से सटे झुग्गियों के विध्वंस के लिए पार‌ित गुजरात ‌हाईकोर्ट के आदेशों के संबंध में वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सूरत नगर निगम के वकील के समक्ष उपरोक्त प्रश्न रखा।

    24 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात राज्य को राज्य में 10000 झुग्गियों को गिराने के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था । चीफ जस्टिस एनवी रमाना और जस्टिस सूर्यकांत की खंडपीठ ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश पारित किया था।

    29 सितंबर, 2021 को सीजेआई एनवी रमाना की अध्यक्षता वाली एक बेंच ने फरीदाबाद में रेलवे पटरियों के पास लगभग 40 झुग्गियों के प्रस्तावित विध्वंस के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था।

    शुरुआत में याचिकाकर्ताओं ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोंजाल्विस ने स्पष्ट किया कि एकमात्र सवाल पुनर्वास का है और इसका कर्तव्य किस पर है।

    अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने प्रस्तुत किया कि रेलवे द्वारा पुनर्वास योजना बनाने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। उन्होंने कहा, "अगर वे हकदार हैं, तो यह स्थानीय प्रशासन द्वारा किया जाना चाहिए ... उन्होंने झुग्गियों को रेलवे की जमीन में लगाने की अनुमति दी है।"

    सूरत नगर निगम की ओर से पेश अधिवक्ता धवल नानावती ने तर्क दिया कि पुनर्वास का बोझ राज्य पर है न कि नगर निगम पर। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही में याचिकाकर्ता ने रेलवे से राहत मांगी थी न कि स्थानीय प्राधिकरण से।

    जिस पर जस्टिस खानविलकर ने कहा, "यह ओपन-एंडेड नहीं हो सकता। इसे तेजी से तय करना होगा क्योंकि विध्वंस का काम शुरू करना है, निर्माण शुरू करना है। सार्वजनिक परियोजनाओं को इसलिए नहीं रोका जा सकता क्योंकि आपके पास पुनर्वास नीति नहीं है।"

    एडवोकेट नानावती ने इस बिंदु अदालत से कहा कि कर्तव्य रेलवे पर है। जस्टिस खानविलकर ने पलटवार करते हुए कहा कि अगर रेलवे की पुनर्वास नीति को रिकॉर्ड पर रखा जा सकता है तो कोर्ट को रेलवे को इस पर कार्रवाई करने के लिए कहने में कोई कठिनाई नहीं होगी।

    इस तर्क को खारिज करते हुए कि स्थानीय प्राधिकरण पर कोई जिम्मेदारी नहीं है, जस्टिस खानविलकर ने कहा, "हम स्थानीय प्राधिकरण को जिम्मेदारी लेने के लिए निर्देशित कर रहे हैं। आप इन क्षेत्रों को पूरे शहर में फैलने देते हैं और आप इसकी जिम्मेदारी नहीं लेंगे? नगर निगम को जिम्मेदारी लेनी चाहिए।"

    जब अधिवक्ता नानावती ने फिर से अदालत पर दबाव डालने की कोशिश की कि हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को पुनर्वास के लिए स्थानीय प्राधिकरण से नहीं बल्कि राज्य से संपर्क करने के लिए कहा है तो जस्टिस खानविलकर ने जवाब दिया, "हम निगम को जिम्मेदारी लेने और तत्काल व्यवस्था करने का निर्देश देंगे…। राज्य कैसे जिम्मेदार हो सकता है? आप अतिक्रमण की अनुमति देते हैं और फिर कहते हैं कि राज्य जिम्मेदार है…। यह रेलवे की भूमि के अधीन है लेकिन आपके शासन में है। आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई अतिक्रमण न हो। "

    अधिवक्ता नानावती ने संबंधित अधिकारियों से निर्देश लेने के लिए कुछ समय मांगा। पीठ ने अधिवक्ता नानावती के अनुरोध पर सहमति व्यक्त करते हुए 15/11/2021 को मामले की अगली सुनवाई तय की। एएसजी केएम नटराज ने कहा कि रेलवे की कोई पुनर्वास नीति नहीं है। पीठ ने यह भी देखा कि फरीदाबाद मामले में हाईकोर्ट ने दर्ज किया था कि रेलवे के पास कोई पुनर्वास नीति नहीं है।

    केस शीर्षक: उतरन से बेस्‍ठन रेलवे झोपड़पट्टी विकास मंडल बनाम भारत सरकार और अन्य | डायरी संख्या 19714/2021 और दीपक शर्मा और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य | डायरी नंबर 19647/2021

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