बीमाकर्ता को पहले से मौजूद बीमारियों की जानकारी देना प्रस्तावक का कर्तव्यः सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
23 Oct 2020 10:51 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एक प्रस्तावक जीवन बीमा की पॉलिसी लेने से पहले से, अपनी मौजूदा बीमारियों की जानकारी बीमाकर्ता को देना के लिए कर्तव्यबद्ध है।
मौजूदा मामले में, बीमा प्रस्ताव फॉर्म में प्रस्तावक के स्वास्थ्य और चिकित्सा इतिहास से संबंधित प्रश्न थे और इस बात का विशेष रूप से खुलासा करना था कि क्या प्रस्तावक को किसी भी प्रकार की बीमारी है, या अस्पताल में भर्ती किया गया है या उपचार किया गया है और उसे अपने अच्छे स्वास्थ्य की घोषणा करनी थी। प्रस्तावक ने प्रश्नों का उत्तर नकारात्मक दिया, जिसका अर्थ था कि उसने किसी भी प्रकार कि चिकित्सा उपचार नहीं लिया या अस्पताल में भर्ती नहीं हुआ है और किसी भी रोग या बीमारी से पीड़ित नहीं है।
प्रस्तावक की ओर से दिए गए प्रस्ताव के आधार पर कार्य करते हुए, उसे बीमा पॉलिसी जारी की गई।
इसके एक महीने बाद ही बीमाधारक की मृत्यु हो गई। उनकी मां द्वारा किए गए बीमा दावे को जांच रिपोर्ट के आधार पर अस्वीकार कर दिया गया, जिसमें पता चला कि प्रस्तावक मौत के करीब था, वह पेट की बीमारी से पीड़ित था, उसे खून की उल्टियां होती थी। नतीजतन, वह अस्पताल में इलाज करवा रहा था।
जिला उपभोक्ता फोरम ने दावेदार द्वारा दर्ज शिकायत की अनुमति दी। बीमा कंपनी द्वारा दायर पहली अपील को राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने खारिज कर दिया। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है और मृत्यु के कारण और बीमारी का खुलासा नहीं होने के बीच कोई उचित संबंध नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्रा, और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने उल्लेख किया कि जांच के दौरान जो मेडिकल रिकॉर्ड प्राप्त हुए हैं, वे स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि मृतक के शरीर में गंभीर चिकित्सा स्थिति मौजूद थी, जिसकी जानकारी बीमा कंपनी को नहीं दी गई। यह कहते हुए कि एनसीडीआरसी का फैसले कानून की उचित स्थिति नहीं रखता है, बेंच ने कहा,
"बीमा का अनुबंध परम सद्भाव का विषय है। एक प्रस्तावक, जिसे जीवन बीमा की पॉलिसी लेना है, वह यह यह सुनिश्चित करने के लिए कि बीमाकर्ता जोखिम उठाना उचित समझेगा, मुद्दे को प्रभावित करने वाले सभी भौतिक तथ्यों का खुलासा करने के लिए कर्तव्य-बद्ध है।
इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए प्रस्ताव फॉर्म में पहले से मौजूद बीमारियों के विशिष्ट प्रकटीकरण की आवश्यकता है, ताकि बीमाकर्ता को बीमाकृत से संबंधित वास्तविक जोखिमों के आधार पर विचारपूर्वक निर्णय करने में सक्षम बनाया जा सके। वर्तमान मामले में, जैसा कि हमने संकेत दिया है, प्रस्तावक ने खून की उल्टी होने का खुलासा नहीं किया, जबकि यह बीमा पॉलिसी लेने से एक महीने पहले हुई थी और जिसके कारण उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बीमाकर्ता द्वारा की गई जांच से पता चलता है कि कि बीमित व्यक्ति शराब के अत्यधिक उपयोग के कारण पहले से बीमारी से पीड़ित था, जिसकी उसे जानकारी थी, लेकिन उसने इसका खुलासा नहीं किया। इसी कारण उन सिद्धांतों के तहत ही , जिसे इस न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों में तैयार किए गया है, जिनका पहले एक संदर्भ दिया गया है, बीमाकर्ता ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।"
अदालत ने रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रेखाबेन नरेशभाई में दिए गए निर्णय और अन्य निर्णयों का भी हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि बीमित व्यक्ति द्वारा पूर्व में प्राप्त बीमा पॉलिसी का खुलासा करने में विफलता बीमाकर्ता को पॉलिसी के तहत दावा रद्द करने का हकदार बनाती है।
हालांकि, दावेदार की उम्र को ध्यान में रखते हुए, जो सत्तर वर्ष का था, पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 का आह्वान किया, ताकि यह निर्देश दिया जा सके कि जिस राशि का भुगतान किया गया है, उसकी वसूली नहीं की जाएगी।
केस: ब्रांच मैनेजर, बजाज आलियांज लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम दलबीर कौर [सीए 3397/2020]
कोरम: जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी
परामर्शदाता: अपीलार्थी के लिए एडवोकेट अमोल चितले, प्रतिवादी के लिए एडवोकेट अनिकेत जैन