21 साल से उम्रक़ैद की सजा भुगत रहे दोषी की अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट में 16 साल से लंबित : सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के लिए HC में अर्जी देने को कहा

LiveLaw News Network

19 Nov 2020 5:44 AM GMT

  • 21 साल से उम्रक़ैद की सजा भुगत रहे दोषी की अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट में 16 साल से लंबित : सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के लिए HC में अर्जी देने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आजीवन कारावास के एक दोषी द्वारा दायर रिट याचिका, जिसकी सजा के आदेश के खिलाफ अपील 16 साल से अधिक समय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है, का ये निर्देश देते हुए निपटारा किया कि उच्च न्यायालय जमानत के लिए उसके आवेदन पर तुरंत विचार करे।

    यह सूचित किए जाने पर कि याचिकाकर्ता ने अपनी अपील के लंबित रहने के दौरान 21 साल जेल में बिताए, वो भी बिना किसी छूट के जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने याचिकाकर्ता को नई जमानत अर्जी दाखिल करने की स्वतंत्रता दी और कहा कि एक महीने की अवधि के भीतर निर्णय लिया जाएगा।

    आदेश में कहा गया है,

    "ऐसा प्रतीत होता है कि जमानत 2004 से 2013 तक लंबित रही और अभियोजन पक्ष के लिए इसे निपटा दिया गया। इसके बाद अपील की सुनवाई के लिए कई तारीखें तय की गईं लेकिन आज तक सुनवाई नहीं हो सकी। याचिकाकर्ता के लिए वकील कहते हैं कि याचिकाकर्ता को 21 साल जेल में रहने के बाद जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। हमारा विचार है कि वर्तमान मामले के तथ्यों में, लंबित आपराधिक अपील में उच्च न्यायालय के सामने सजा के निलंबन और जमानत देने के लिए एक नया आवेदन करने के लिए याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता देकर न्याय का सिरा पूरा किया जाना चाहिए।"

    याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया था कि उसे समय ये पहले रिहाई दे दी जाए क्योंकि उसका मामला कुछ समय के लिए अनसुना रह गया है और उसने पहले से ही अच्छे व्यवहार में सलाखों के पीछे पर्याप्त समय बिताया है। शोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2020 एससीसी ऑनलाइन एससी 626 पर भरोसा रखा गया था, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को समय- पूर्व

    रिहा कर दिया, क्योंकि वह पहले ही 28 साल जेल में रह चुका था, उसका इतिहास साफ था और जेल में उसका आचरण अच्छा था।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि उसकी अपील, जमानत / निलंबन की अस्वीकृति के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष उसके द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिका को फरवरी 2013 से अंतिम रूप से तय नहीं किया गया है।

    "याचिकाकर्ता सहानुभूति के लायक है क्योंकि उसका परिवार बिखर गया है क्योंकि याचिकाकर्ता 21 वर्षों से अधिक समय तक जेल में रह रहा है (बिना छूट के) और 2004 में दोष सिद्ध करने के बाद, ये अवधि 16 साल है (छूट के बिना) लेकिन न तो उसे अपील के लंबित रहने के दौरान जमानत दी गई है याचिका में और ना ही अपील पर सुनवाई कर माननीय उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है।

    न्यायालय ने हालांकि उच्च न्यायालय में लंबित एक आपराधिक अपील (दोषसिद्धि के खिलाफ) के मद्देनज़र राहत देने से इनकार कर दिया।

    एडवोकेट ऑन रिकार्ड रोहित अमित स्थालेकर और अधिवक्ता जेड यू खान, सुलेमान मोहम्मद खान, तैयबा खान और आशीष चौधरी याचिकाकर्ता के लिए उपस्थित हुए।

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