सरकारी सेवकों का 'ग्रहणाधिकार' तभी समाप्त होता है, जब उन्हें किसी अन्य पद पर 'मौलिक' रूप से नियुक्त किया जाता है/पुष्ट किया जाता है या स्थायी रूप से शामिल किया जाता है: सुप्रीम कोर्ट
Avanish Pathak
7 Sept 2023 3:20 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी का 'ग्रहणाधिकार' (Lien) केवल तभी समाप्त होता है, जब उसे किसी अन्य पद पर 'मौलिक रूप से' नियुक्त किया जाता है/पुष्टि की जाती है या स्थायी रूप से शाामिल किया जाता है, अन्यथा, उनका ग्रहणाधिकार पिछले पद पर जारी रहेगा।
जस्टिस जेके माहेश्वरी और केवी विश्वनाथन की पीठ मामले पर सुनवाई कर रही थी।
मामले में दायर अपील में उठाए गए सवाल इस प्रकार थे-
(1) क्या कर्नाटक सिविल सेवा नियमों के नियम 252 (बी) के अनुसार गुलबर्गा यूनिवर्सिटी की ओर से दिए गए आदेश, जिसमें अपीलकर्ता को 'सहायक रजिस्ट्रार' के रूप में एक और नियुक्ति स्वीकार करने की 'राहत' दी गई है, उसे नए पद पर कार्यभार ग्रहण करने के लिए इस्तीफे के रूप से समझा जाना चाहिए?
(ii) क्या नए पद पर कार्यभार ग्रहण करने पर अपीलकर्ता का मूल/पिछले पद पर ग्रहणाधिकार तब तक कायम रहेगा, जब तक कि वह स्थायी रूप से नए विभाग या कैडर, जिसमें उसे बाद में नियुक्त किया गया है, में शामिल नहीं हो जाता?
अदालत ने कहा कि लिएन एक सिविल सर्वेंट के उस पद को मूल रूप से धारण करने के अधिकार को दर्शाता है, जिस पर उसे नियुक्त किया गया है, जिसका अर्थ है कि उस पद पर सरकारी कर्मचारी की नियुक्ति ठोस होनी चाहिए क्योंकि वह दो अलग-अलग संवर्गों में एक साथ दो पद नहीं रख सकता है और एक ही समय में उन दोनों पर ग्रहणाधिकार बनाए नहीं रख सकता है।
कोर्ट ने कहा,
"निर्धारित कानूनी स्थिति के अनुसार, हम मानते हैं कि एक सरकारी कर्मचारी का 'ग्रहणाधिकार' केवल तभी समाप्त होता है, जब उसे किसी अन्य पद पर 'मौलिक' रूप से नियुक्त/पुष्टि या स्थायी रूप से शामिल किया जाता है, अन्यथा, उसका ग्रहणाधिकार पिछले पद पर ही जारी रहेगा।"
अदालत ने यह भी देखा कि केसीएस नियमों के नियम 252 (बी) के संदर्भ में, 'रिलीविंग ऑर्डर' को इस्तीफे के रूप में नहीं माना जा सकता है। इसमें कहा गया है कि उक्त नियम यह स्पष्ट करता है कि यदि किसी सरकारी कर्मचारी की ओर से उचित अनुमति के साथ दूसरी नियुक्ति ली जाती है, तो इसे सार्वजनिक सेवा से इस्तीफा नहीं माना जा सकता है।
इसलिए अदालत ने अपील की अनुमति दी और माना कि अपीलकर्ता का 'कार्यालय अधीक्षक' के मूल/पिछले पद पर ग्रहणाधिकार बरकरार रखा जाएगा और उस तारीख से जारी माना जाएगा जब उसे प्रतिवादी विश्वविद्यालय की ओर से कार्यमुक्त किया गया था, यानी आठ अप्रैल, 1993 से।
केस टाइटलः एलआर पाटिल बनाम गुलबर्गा यूनिवर्सिटी 2023 लाइव लॉ (एससी) 748 - 2023 आईएनएससी 796