आजादी महत्वपूर्ण है, लेकिन जमानत मंजूर करते वक्त कोर्ट को गवाहों, पीड़ितों के लिए संभावित खतरे पर विचार करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
26 April 2021 10:29 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि आपराधिक मामले में किसी अभियुक्त को जमानत मंजूर करते वक्त कोर्ट के लिए यह जरूरी होता है कि वह गवाहों अथवा पीड़ितों पर होने वाले इसके प्रभाव पर भी विचार करे।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को दरकिनार कर दिया जिसमें उसने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एवं समाज विरोधी गतिविधियां (निरोधक) कानून, 1986 के तहत गिरफ्तार एक अभियुक्त को जमानत मंजूर कर दिया था।
अभियुक्त कथित तौर पर कांट्रैक्ट किलर (सुपारी लेकर हत्या करने वाला) और शार्प शूटर बताया जाता है। मृतक की विधवा पत्नी ने हाईकोर्ट की ओर से अभियुक्त को मंजूर की गयी जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले में विभिन्न पहलुओं की अनदेखी की है, जैसे- गवाहों की जान को व्यापक खतरा, और इस कारण ट्रायल कोर्ट को उन्हें सुरक्षा प्रदान करने को मजबूर होना पड़ा है।
अपने अंतिम कार्यदिवस को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा,
"यह बताने की जरूरत नहीं है कि इस तरह के मामलों में यह महत्वपूर्ण है कि कोर्ट को केवल अपने समक्ष उपस्थित पक्षों और विवादित घटना को ध्यान में रखकर ही अभियुक्त को आंख मूंदकर जमानत पर रिहा नहीं करना चाहिए। कोर्ट के लिए इस बात पर भी विचार करना जरूरी है कि ऐसे व्यक्तियों की जमानत पर रिहाई का प्रभाव उन गवाहों पर क्या होगा जिनसे जिरह किया जाना शेष है और इसका प्रभाव पीड़ित के परिवार के सदस्यों पर क्या होगा? संभव है वे भी अगले शिकार हो सकते हैं।"
न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यन की मौजूदगी वाली बेंच ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं कि यहां तक कि अपराध के आरोपी व्यक्ति की भी आजादी महत्वपूर्ण है, लेकिन यदि ऐसे अभियुक्त को जमानत पर रिहा किया जाता है तो कोर्ट के लिए पीड़ितों और गवाहों के जीवन और आजादी के संभावित खतरे की पहचान करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।"
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा कि जमानत पर विचार करने के लिए जिन बातों पर विचार किया जाना चाहिए, वे निम्न प्रकार से हैं :-
(i) क्या प्रथम दृष्ट्या यह मानने के लिए तार्किक आधार है कि अभियुक्त ने अपराध किया था,
(ii) आरोपों की प्रकृति एवं गम्भीरता,
(iii) दोषसिद्धि की स्थिति में सजा की कठोरता,
(iv) जमानत पर रिहा करने की स्थिति में अभियुक्त के फरार होने का खतरा,
(v) अभियुक्त का चरित्र, व्यवहार, साधन, पद और प्रतिष्ठा,
(vi) अपराध को दोहराये जाने की आशंका,
(vii) गवाहों के प्रभावित होने की तार्किक आशंका, और
(viii) जमानत मंजूर किये जाने से न्याय का गला घोंटे जाने का खतरा।
सुप्रीम कोर्ट में बतौर न्यायाधीश किसी आदेश पर सीजेआई द्वारा हस्ताक्षर किया गया यह अंतिम आदेश था।
केस का विवरण :
केस का शीर्षक : सुधा सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य
कोरम : सीजेआई एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यन
साइटेशन : एलएल 2021 एससी 229
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