"उपराज्यपाल सदस्यों को मनोनीत कर प्रभावी रूप से निर्वाचित दिल्ली नगर निगम को अस्थिर कर सकते हैं", सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा

Avanish Pathak

17 May 2023 8:47 AM GMT

  • उपराज्यपाल सदस्यों को मनोनीत कर प्रभावी रूप से निर्वाचित दिल्ली नगर निगम को अस्थिर कर सकते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने आज इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) दिल्ली सरकार की सहमति के बिना दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन (मनोनीत सदस्य) को नामित कर सकते हैं।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की एक पीठ दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उस अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसके माध्यम से दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में दस मनोनीत सदस्यों को नियुक्त किया था। उन्होंने नियुक्त‌ि अपनी पहल पर की थी, न कि मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर।

    याचिका पर सुनवाई करते हुए, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि एलजी एमसीडी में सदस्यों को नामित करने की शक्ति के साथ, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित एमसीडी को प्रभावी ढंग से अस्थिर कर सकते हैं।

    उन्होंने कहा,

    "इसे देखने का एक और तरीका है। क्या स्थानीय निकाय में विशेषज्ञों का नामांकन केंद्र सरकार के लिए इतनी बड़ी चिंता है? एलजी को यह शक्ति देकर, वह लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित एमसीडी को प्रभावी रूप से अस्थिर कर सकते हैं।"

    उन्होंने कहा,

    "उनके पास मतदान की शक्ति होगी। वे एलजी के जर‌िए इन दस सदस्यों को कहीं भी रख सकते हैं।"

    दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट डॉ एएम सिंघवी ने इस पर सहमति व्यक्त की और इस बात पर प्रकाश डाला कि एमसीडी की उन वार्ड समितियों में नामांकन किया गया, जहां भाजपा कमजोर थी।

    दलीलें

    उपराज्यपाल की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने अनुच्छेद 239AA के तहत उपराज्यपाल की भूमिका और दिल्ली नगर निगम अधिनियम के अनुसार स्थानीय निकाय के नामांकन की बात आने पर एक प्रशासक के रूप में उपराज्यपाल की भूमिका के बीच अंतर करने का प्रयास कियाउन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि दिल्ली नगर निगम अधिनियम ने विशेष रूप से प्रशासक (एलजी) की भूमिका को परिभाषित किया था। उन्होंने कहा कि एक वैधानिक शक्ति का प्रयोग करते समय दिल्ली सरकार की "सहायता और सलाह" आवश्यक नहीं थी, जो विशेष रूप से प्रशासक को प्रदान की गई थी। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि जबकि केंद्र और राज्य सरकार के कार्यों को प्रत्यायोजित किया जा सकता है, प्रशासक की शक्तियों का ऐसा कोई प्रत्यायोजन नहीं था।

    इसके विपरीत, जीएनसीटीडी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट डॉ एएम सिंघवी ने जीएनसीटीडी बनाम यूनियर ऑफ इंडिया के मामलों में संविधान पीठ के दो फैसलों पर भरोसा जताया। उन्होंने कहा कि 30 साल से यह प्रथा चली आ रही थी कि उपराज्यपाल कभी भी मंत्रियों की सहायता और सलाह के बिना नियुक्ति नहीं करते थे। इस पर एएसजी जैन ने कहा- "सिर्फ इसलिए कि एक प्रथा का वर्षों से पालन किया जा रहा है, इसका मतलब यह नहीं है कि यह सही है।"

    सिंघवी ने कहा-

    "जहां राज्य सरकार का जिक्र होता है, फाइल रुक जाती है, वह एलजी के पास नहीं जाती है। जहां एलजी का जिक्र होता है, वह मदद और सलाह पर काम करते हैं। दोनों ही मामलों में एलजी बाध्य हैं। यह फाइल की यात्रा है।"

    केस टाइटल: दिल्ली सरकार बनाम लेफ्टिनेंट गवर्नर कार्यालय, ‌‌दिल्‍ली, WP(C) नंबर 348/2023

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