दिल्ली पुलिस कमिश्नर को वकीलों ने लिखा पत्र, बंदियों के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने का किया अनुरोध
LiveLaw News Network
5 March 2020 2:12 PM IST
वकीलों के एक समूह ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर सीआरपीसी की धारा 41-डी के तहत बंदियों को प्रदत्त परामर्श और अनुपालन के मौलिक अधिकार को सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है।
पत्र में दिल्ली के पुलिस स्टेशनों में पुलिस कर्मियों द्वारा वकीलों पर किए गए हमलों की निंदा की गई है। पत्र में पुलिस की बंदियों और वकीलों से व्यवहार करने के मामले में कानून और शिष्टता के बुनियादी दिशानिर्देशों का पालन करने में हुई विफलता को भी उजागर किया गया है।
यह पत्र नई दिल्ली के जगतपुरी पुलिस स्टेशन में अधिवक्ताओं पर हुए हमले के मद्देनजर जारी किया गया है, जिसमें पुलिस आयुक्त से घटना में शामिल "पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने" का अनुरोध किया गया है।
पत्र में दयालपुर पुलिस स्टेशन में 28 फरवरी की उस घटना का जिक्र है, जब धारा 41-डी सीआरपीसी के तहत सक्षम न्यायालय के आदेशों के बावजूद वकीलों को प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था।
प्रतिरोध की शुरुआत 26 फरवरी को हुई, जब इंडियन सिविल लिबर्टीज यूनियन, ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क और अन्य संगठनों के कई वकील खुरेजी स्थित विरोध स्थल से हिरासत में लिए गए लोगों से मिलने के लिए जगतपुरी पुलिस स्टेशन गए थे। वहां अधिवक्ताओं को बंदियों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई। साथ ही, यह जानकारी भी सामने आई कि महिला बंदियों को भी पुरुष पुलिस अधिकारी ही नियंत्रित कर रहे है।
वकील सीमा मिश्रा, सौजन्य शंकरन और नितिका खेतान की ओर से भेजे गए पत्र में कहा गया है कि-"हम यह पत्र वर्तमान मामलों पर अपनी गंभीर चिंता और गहन रोष की अभिव्यक्ति के रूप में लिख रहे हैं, जिनमें कानूनी सलाह प्राप्त करने के मौलिक अधिकार को, जो कि न्याय सुनिश्चित करने की संवैधानिक वचनबद्घता की कसौटी है, को राज्य जानबूझकर रोक रहा है।"
पत्र में डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के 1997 के मामले में तय सिद्घांतों की पुलिस कर्मियों द्वारा अवहेलना और असहयोगी व्यवहार पर भी प्रकाश डाला गया है। यह पत्र न्यायिक मजिस्ट्रेटों के कई आदेशों के बावजूद, बंदियों को कानूनी और चिकित्सा सुविधाओं उपलब्ध कराने में बाधा डालने की कार्रवाई और वकीलों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने की भी निंदा करता है।
पत्र में कहा गया है-
"जगतपुरी पुलिस स्टेशन और दयालपुर पुलिस स्टेशन, दोनों थानों में अवैध रूप से हिरासत में रखे गए कई लोग गंभीर रूप से घायल गए थे, उन्हें कोई चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई। यहां तक कि उनके परिवार के सदस्यों को भी उनकी हिरासत के बारे में सूचित नहीं किया गया। उन व्यक्तियों के परिजनों की ओर से कोई भी शिकायत दर्ज नहीं की गई।"
पत्र में कहा गया कि यह उल्लंघन वर्तमान संदर्भ में अधिक खतरनाक हैं, क्योंकि मौजूदा संकट में पीड़ित परिवारों के पास यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं है कि क्या उनके रिश्तेदार भी हालिया हिंसा के शिकार हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट विनोद कुमार गौतम ने वकीलो की शिकायत पर पुलिस से रिपोर्ट भी मांगी थी। वकीलों ने अपनी शिकायत में कहा था कि उन्हें हिरासत में लिए गए व्यक्तियों से मिलने नहीं दिया जा रहा है।
पत्र में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से अधिकारियों को निर्देश जारी करने की अपील का भी जिक्र किया गया है, ताकि वे वकीलों के कामकाज में हस्तक्षेप न कर सकें। साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता और उच्चतम न्यायालयों द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार ही अपने दायित्वों का निर्वहन करें।