लखीमपुर खीरी मामला : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के अनुरोध पर सुनवाई 15 नवंबर तक स्थगित की
LiveLaw News Network
12 Nov 2021 12:28 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तीन अक्टूबर की लखीमपुर खीरी हिंसा की उचित जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका की सुनवाई स्थगित कर दी। इस हिंसा में केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा के काफिले में वाहनों द्वारा कथित रूप से कुचले गए चार किसानों सहित आठ लोगों की मौत हो गई।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के अनुरोध पर मामले को स्थगित कर दिया।
साल्वे ने अनुरोध किया,
"क्या माई लॉर्डशिप मुझे सोमवार तक का समय देंगे? मैंने इसे लगभग पूरा कर लिया है। हम कुछ काम कर रहे हैं।"
पीठ ने अनुरोध पर सहमति व्यक्त की और मामले को 15 नवंबर, सोमवार को पोस्ट कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने आठ नवंबर को हुई पिछले सुनवाई पर कहा था कि वह जांच की निगरानी के लिए दूसरे राज्य के हाईकोर्ट से एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को नियुक्त करने का प्रस्ताव कर रहा है।
उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने पीठ द्वारा दिए गए सुझावों पर राज्य सरकार से निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा था।
पीठ ने उत्तर प्रदेश पुलिस की जांच पर असंतोष जताया। कोर्ट इस बात से भी असंतुष्ट था कि वीडियो साक्ष्य के संबंध में फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है और सभी आरोपियों के मोबाइल फोन जब्त नहीं किए गए हैं।
पीठ ने मॉब लिंचिंग के काउंटर केस को जांच को जोड़कर किसानों पर हमले को कमजोर करने के मामले में मुख्य आरोपी के खिलाफ मामले पर चिंता व्यक्त की।
इससे पहले, 26 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत प्रासंगिक गवाहों के बयान दर्ज किए जाएं और गवाहों को सुरक्षा प्रदान की जाए।
बेंच ने जांच टीम से और चश्मदीदों की पहचान करने की कोशिश करने को भी कहा था। जांच के संबंध में यूपी राज्य द्वारा दायर की गई दूसरी स्थिति रिपोर्ट को देखने के बाद निर्देश जारी किए गए।
20 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसे यह आभास हो रहा है कि यूपी पुलिस जांच से "अपने पैर खींच रही है।"
पीठ ने यह टिप्पणी यह देखने के बाद की कि 44 गवाहों में से केवल चार के बयान आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए।
सीजेआई ने टिप्पणी की थी,
"यह एक कभी न खत्म होने वाली कहानी नहीं बननी चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में उचित जांच की मांग करते हुए दो वकीलों द्वारा भेजी गई एक पत्र याचिका के आधार पर जनहित याचिका दर्ज की। कोर्ट की कार्रवाई सोशल मीडिया में चौंकाने वाले वीडियो के सामने आने के बाद हुई। इसमें आशीष मिश्रा के काफिले में शामिल वाहनों से प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचलते हुए दिखाया गया।
सुनवाई के पहले दिन आठ अक्टूबर को कोर्ट ने यूपी पुलिस की जांच पर अपना असंतोष जताया था, क्योंकि मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को तब तक गिरफ्तार नहीं किया गया था।
पीठ ने पूछा कि क्या पुलिस के लिए हत्या के एक मामले में आरोपी को गिरफ्तार करने के बजाय उसे दिए गए समन के जवाब का इंतजार करना सामान्य है।
पृष्ठभूमि:
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना की अध्यक्षता वाली एक पीठ तीन अक्टूबर की लखमीपुर खीरी हिंसा की निष्पक्ष जांच की मांग करने वाले दो वकीलों द्वारा भेजी गई एक पत्र याचिका के आधार पर दर्ज एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।
इस घटना में आठ लोग की मौत हुई थी। मरने वालों में से चार प्रदर्शनकारी किसान थे। उन्हें कथित तौर पर केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा के काफिले में शामिल वाहनों द्वारा कुचल दिया गया था।
केस : लखीमपुर खीरी (यूपी) में हुई हिंसा में लोगों की जान चली गई| WP(Crl) No.426/2021