केरल लोकायुक्त के पास केवल अनुशंसात्मक क्षेत्राधिकार, वह सकारात्मक निर्देश जारी नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

4 Dec 2023 6:38 AM GMT

  • केरल लोकायुक्त के पास केवल अनुशंसात्मक क्षेत्राधिकार, वह सकारात्मक निर्देश जारी नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में माना कि केरल लोक आयुक्त अधिनियम 1999 के तहत लोक आयुक्त सकारात्मक निर्देश जारी नहीं कर सकता और उसके पास केवल अपनी सिफारिशों के साथ संबंधित प्राधिकारी को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अधिकार क्षेत्र है।

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने इसमें सुधा देवी के. बनाम जिला कलेक्टर 2017 एससीसी ऑनलाइन केर 1264 और जिला कलेक्टर बनाम रजिस्ट्रार, केरल लोकायुक्त, एआईआर 2023 केआर 97 मामले में केरल हाईकोर्ट के फैसलों का संदर्भ दिया।

    न्यायालय ने कहा,

    हाईकोर्ट के उपरोक्त दो निर्णयों में केरल लोकायुक्त अधिनियम, 1999 अधिनियम के प्रावधानों की सही व्याख्या की गई है।

    सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त निर्णयों का जिक्र करते हुए कहा,

    “अधिनियम, 1999 की धारा 12(1) के संदर्भ में लोक आयुक्त सकारात्मक निर्देश जारी करने में सक्षम नहीं है। वह केवल अपनी सिफारिशों के साथ संबंधित प्राधिकारी के पास रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकता है। उनके पास केवल अनुशंसात्मक क्षेत्राधिकार है। लोकायुक्त या उप लोकायुक्त विभिन्न क़ानूनों के तहत बनाए गए अन्य सक्षम मंचों पर अपीलीय या पर्यवेक्षी प्राधिकारी नहीं है, क्योंकि उनमें से प्रत्येक प्रतिमान अपील, संशोधन आदि जैसे अपने स्वयं के उपचारात्मक कदम उपलब्ध कराता है।”

    अधिनियम, 1999 की धारा 12 में कहा गया कि यदि लोकायुक्त या उप लोकायुक्त किसी पक्ष की किसी कार्रवाई/निष्क्रियता से संतुष्ट है, जिसके परिणामस्वरूप शिकायतकर्ता के साथ अन्याय/कठिनाई हुई है तो वह सक्षम प्राधिकारी को सिफारिश करते हुए लिखित रूप में रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। इस अन्याय या कठिनाई का समाधान करें।

    सुप्रीम कोर्ट केरल हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसके तहत उप लोकायुक्त के आदेश के खिलाफ अतिरिक्त तहसीलदार द्वारा रिट याचिका दायर की गई थी। उक्त याचिका में शिकायतकर्ता की संपत्ति के राजस्व रिकॉर्ड को सही करने का निर्देश दिया गया था। तहसीलदार की अपील को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई।

    लोकायुक्त के समक्ष दायर शिकायत में निश्चित संपत्ति के राजस्व रिकॉर्ड में त्रुटि को सुधारने और शिकायतकर्ता के कानूनी उत्तराधिकारियों के नाम पर उसका उत्परिवर्तन करने के संबंध में शिकायत उठाई गई। लोकायुक्त ने तहसीलदार को राजस्व रिकार्ड में हुई गलती को सुधारने और शिकायतकर्ता से टैक्स भी वसूलने के निर्देश दिए।

    अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि लोकायुक्त अन्य वैधानिक प्राधिकरणों से ऊपर पर्यवेक्षी निकाय नहीं है। लोकायुक्त को दिया गया अधिकार क्षेत्र केवल कुप्रशासन के मुद्दे को संबोधित करने के लिए है, लेकिन इस मामले में उसने गुण-दोष के आधार पर मामले से निपटने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र से परे यात्रा की और राजस्व रिकॉर्ड में सुधार के लिए सकारात्मक निर्देश जारी किए।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी नोट किया कि प्रतिवादी-शिकायतकर्ता ने राजस्व रिकॉर्ड में सुधार के अपने अनुरोध की अस्वीकृति के बाद किसी भी उचित वैधानिक उपाय का लाभ नहीं उठाया।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने राजस्व रिकॉर्ड में सुधार के लिए उप लोकायुक्त द्वारा जारी निर्देश को बरकरार रखा, जो लोकायुक्त के अधिकार क्षेत्र से परे है।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार माना कि हाईकोर्ट और उप लोकायुक्त द्वारा पारित आदेश कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है और आदेशों को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: एडिशनल तहसीलदार बनाम उर्मिला जी., सिविल अपील नंबर(एस) 2023 का ___ (एस.एल.पी.(सी) नंबर 2652/2023 से उत्पन्न)

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