जस्टिस कौल ने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जांच और रिपोर्ट के लिए "सच्चाई और सुलह आयोग" की स्थापना की सिफारिश की
LiveLaw News Network
11 Dec 2023 2:01 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले को अपनी सहमति दी।
पांच जजों की पीठ में शामिल जस्टिस संजय किशन कौल ने अपने फैसले में राज्य में मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच और रिपोर्ट के लिए "ट्रूथ एंड रिकन्सिलीएश कमीशन" की स्थापना की सिफारिश की। उन्होंने कहा कि कम 1980 के दशक से कश्मीर घाटी में स्टेट और नॉन- स्टेट, दोनों की ओर से किए गए मानवाधिकार उल्लांघनों की जांच की जाए और उसे रिपोर्ट किया जाए।
अपने फैसले में जस्टिस कौल ने कहा कि कश्मीर घाटी पर "ऐतिहासिक जिम्मेदारी" है और वहां रहने वाले लोग कई दशकों से चल रहे संघर्षों के शिकार हैं। उन्होंने विशेष रूप से 1980 के दशक में घाटी में उग्रवाद से पैदा हुई समस्याओं का जिक्र किया, जिसकी परिणति "जनसंख्या के एक हिस्से" - कश्मीरी पंडितों - के अन्य प्रवास के रूप में हुई। चूंकि स्थिति ने भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डाल दिया, इसलिए सेना को बुलाना पड़ा।
उन्होंने कहा, "सेना स्टेट के दुश्मनों के साथ लड़ाई लड़ने के लिए है, न कि स्टेट के भीतर कानून और व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए। लेकिन तब, ये अजीब समय था। सेना के प्रवेश ने अपनी खुद की जमीनी हकीकत पैदा की और विदेशी घुसपैठ के खिलाफ राज्य और राष्ट्र की अखंडता को संरक्षित करने की उनकी कोशिशों के कारण राज्य के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने भारी कीमत चुकाई।
उन्होंने कहा कि क्षेत्र की अपनी यात्रा के दरयमियान, उन्होंने पहले से ही खंडित समाज में "अंतर-पीढ़ीगत आघात" के निशान देखे।
जस्टिस कौल ने कहा, आगे बढ़ने के लिए घावों को भरने की जरूरत है, उन्होंने कहा कि जो महत्वपूर्ण है वह सिर्फ अन्याय की पुनरावृत्ति को रोकना नहीं है, बल्कि क्षेत्र के सामाजिक ताने-बाने की बहाली है। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र अपने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए जाना जाता है, जो विभाजन के समय भी ख़राब नहीं हुआ था, जिसने महात्मा गांधी को यह कहने के लिए प्रेरित किया कि "कश्मीर मानवता के लिए आशा की किरण है।"
जस्टिस कौल ने कहा कि घावों को भरने और सामाजिक ताने-बाने को बहाल करने के लिए पहला कदम "क्षेत्र के लोगों के खिलाफ स्टेट और नॉन-स्टेट, दोनों द्वारा किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन की सामूहिक समझ हासिल करना है।"
उन्होंने कहा, हालांकि उल्लंघनों की कई रिपोर्टें हैं, लेकिन जो कुछ हुआ है उसकी आम तौर पर स्वीकृत कहानी या "सच्चाई को सामूहिक रूप से बताने" का अभाव है। यह देखते हुए कि सच बोलने से समझौता का मार्ग प्रशस्त होता है, जस्टिस कौल ने कहा, "मैं एक निष्पक्ष सत्य और समझौता आयोग की स्थापना की सिफारिश करता हूं। आयोग कम से कम 1980 के दशक से जम्मू और कश्मीर में स्टेट और नॉन स्टेट एक्टर्स द्वारा किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करेगा और रिपोर्ट करेगा और समझौते के उपायों की सिफारिश करेगा। "
उन्होंने रंगभेद के दौर में दक्षिण अफ्रीका में किए गए अत्याचारों के संबंध में स्थापित किए गए सत्य और समझौता आयोगों से प्रेरणा ली।
उन्होंने कहा, "याददाश्त खत्म होने से पहले आयोग का गठन किया जाना चाहिए। यह प्रक्रिया समयबद्ध होनी चाहिए।" उन्होंने कहा कि युवाओं की एक पूरी पीढ़ी अविश्वास की भावना के साथ बड़ी हुई है और इसकी भरपाई उन्हें ही करनी है।
जस्टिस कौल ने कहा, "सच्चाई और समझौता आयोग सुधारात्मक दृष्टिकोण की सुविधा प्रदान कर सकता है, जो अतीत के घावों के लिए क्षमा को सक्षम बनाता है और एक साझा राष्ट्रीय पहचान प्राप्त करने का आधार बनाता है।"