जस्टिस गीता मित्तल कॉलेजियम सिस्टम की विफलता का उदाहरणः जस्टिस सीकरी

LiveLaw News Network

10 Feb 2020 5:04 PM IST

  • जस्टिस गीता मित्तल कॉलेजियम सिस्टम की विफलता का उदाहरणः जस्टिस सीकरी

    देश में जजों की कमी का उल्लेख करते हुए ज‌स्टिस एके सीकरी ने कहा, भारत में जज-जनसंख्या अनुपात दुनिया में सबसे कम है।

    सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एके सीकरी ने शुक्रवार को कहा कि 'जस्टिस गीता मित्तल कॉलेजियम सिस्टम की विफलता का एक उदाहरण है'। जस्टिस सीकरी कॉर्नेल इंडिया लॉ सेंटर के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे। जस्टिस गीता मित्तल जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट की वर्तमान चीफ जस्टिस हैं।

    कार्यक्रम में सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने "ट्रांसफॉर्मिंग इंडियाज ज्यूडिशियल सिस्टम: प्रोफॉर्म फॉर रिफॉर्म्स" विषय पर व्याख्यान दिया।

    जस्टिस एके सीकरी ने दोहराया, "(बेंच में नियुक्ति के लिए) व्यक्तियों को चुनना मुश्किल नहीं है, लेकिन, जैसा कि (सीनियर एडवोकेट और कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी) ने टिप्पणी की, न्यायपालिका में, कार्यपालिका और संसद से भी बदतर राजनीति है।" मुझे खुशी है कि उन्होंने यह टिप्‍पणी की कि , सरकार फाइलें रोक लेती है, इसलिए वह स्वीकार करती है कि कार्यपालिका भी समान रूप से जिम्मेदार है। हर कोई जानता है कि वे नाम क्यों अटक जाते हैं। इन पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के गलियारों में चर्चा की जाती है ...।"

    देश में जजों की कमी का उल्लेख करते हुए, ज‌स्टिस एके सीकरी ने कहा, "भारत में जज-जनसंख्या अनुपात दुनिया में सबसे कम है। चीन में भी एक मिलियन की आबादी पर 300 से अधिक जज हैं, जो अमेरिका की तुलना में कहीं अधिक है। भारत में यह 20-21 है। अमेरिका में यह 150 है या ऐसा है ... वहां क्षमता है, फिर भी वे हाईकोर्ट के 1070-1080 जजों के पद भरने में असमर्थ हैं, हमारे पास जजों के 400 पद खाली हैं।"

    जस्टिस एके सीकरी ने कहा-

    संविधान के तहत, एक व्यक्ति की हाईकोर्ट के जज के रूप में सिफारिश करने के लिए न्यूनतम आयु 35 साल है, हालांकि यह एक प्रथा बन गई है, आज ठोस रिवाज हो चुका है कि जब तक कि व्यक्ति की आयु कम से कम 45 वर्ष न हो जाए, उसका नाम भेजा नहीं जाएगा। इस प्रक्रिया में, क्याहोता है कि बहुत सारी प्रतिभा खो जाती है। एक व्यक्ति 24-25 साल की उम्र में वकालत के पेशे में शामिल होता है। 15 साल बाद, जब वे 39-40 साल के हो जाते हैं, तब तक वे अच्छे, बहुत अच्छे होते हैं। मैं यह सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में कॉलेजियम के सदस्य के रूप में रहे अपने 20 वर्षों के अनुभव से कह रहा हूं।''

    ''आप सभी उच्च न्यायालयों में पाएंगे, विशेष रूप से महानगरीय उच्‍च न्यायालयों जैसे मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, मद्रास, गुजरात में, कि कई नए और अच्छे वकील हैं। अपने पहले 10 वर्षों में, वे अपनी पहचान बनाने में सक्षम होते हैं। अगले 5 वर्षों में, वे अपने कौशल को और निखारते हैं। जब वे 40 वर्ष के होते हैं, तो हम उन्हें चुन सकते हैं, लेकिन हमें उनकी सिफारिश करने की अनुमति नहीं होती है। 40-45 वर्ष की उम्र बहुत ही महत्वपूर्ण चरण होती है, अच्छे वकीलों को वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया जाता है। वे इतनी अच्छी कमाई करने लगते हैं कि 45 साल की उम्र में वे जज बनने से इनकार कर देते हैं। हम पाते हैं कि वास्तव में अच्छे वकील हैं, जो उसके बाद जज नहीं बनना चाहते हैं ..।"

    "अब जब 45 की न्यूनतम आयु निर्धारित हो गई है, तो एक अलिखित रिवाज यह भी है कि 55 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति का नाम भी नहीं भेजा जाना चाहिए। इसके पीछे एक तर्क हो सकता है कि एक व्यक्ति जो बार से आता है, उसे कम से कम 7 साल के लिए जज होना ही चाहिए, लेकिन अगर कोई व्यक्ति पहले से ही 58,59 या 60 वर्ष का है, तो उसका क्या उपयोग है क्योंकि सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष है। लेकिन यदि ऐसा है, तो आप न्यूनतम स्तर पर सीमा को क्यों बढ़ाते हैं, य‌ह कहने के लिए यह 45 साल होनी चाहिए? "

    "जब सुप्रीम कोर्ट की बात आती है, वहां एक और अलिखित नियम है कि उम्मीदवार 55 साल से कम नहीं होना चाहिए।

    सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के लिए लोगों को बार से सीधे भी चुना जा सकता है। 60-65 वर्षों में हमारे पास ऐसे 4 जज थे, हालांकि बीते 2-3 वर्षों में हमारे पास बार से चुने गए 4 जज हैं। लेकिन इसके लिए भी न्यूनतम आयु 55 साल है। और इसका मतलब यह नहीं है कि जब आप 55 वर्ष के हो जाते हैं, आप को चुन लिया जाता है! क्षमा करें, ऐसा नहीं है! जब तक व्यक्ति जज बनता है, तब तक वह 57, 58 साल का हो जाता है .."

    "एक अध्ययन के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में जजों की औसत आयु- आज तक नियुक्त सभी जजों और उनके कार्यकाल के आधार पर - 4-4.5 साल थी ... व्यक्ति रिटायरमेंट के कगार पर पहुंचने के बाद जज बनते हैं। वे 62 साल की उम्र में हाईकोर्ट से रिटायर होने वाले होते हैं, इसलिए उन्हें यहां 3 साल का अतिरिक्त समय मिल जाता है, या अधिक से अधिक 5-6 साल। ज्यादातर मामलों में यही होता है। 10 मामलों में 1 मामला ऐस हो सकता है, जहां एक न्यायाधीश को 7 वर्ष से अधिक का समय मिलता है..। ",

    "जब किसी व्यक्ति के पास ऐसा अनुभव होता है कि वह कानून और न्यायशास्त्र की वृद्धि में योगदान दे सकता है, तो उसकी सेवानिवृत्ति की तारीख आ जाती है। इसे ध्यान रखना होगा। "

    जस्टिस सीकरी ने कहा-

    "NJAC और कोलेजियम प्रणाली के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है। कागज़ पर, भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, यह शायद सबसे अच्छी प्रणाली है क्योंकि इसका कोई विकल्प नहीं है। लेकिन इसमें सुधार हो सकता है, और इसमें सुधार किया जाना चाहिए ... हाल ही में, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के बेटे चिंतन चंद्रचूड़ की पुस्तक के लॉन्च पर शेखर गुप्ता ने कहा कि जब संसद में हर बिल पर इतनी बहस और विरोध होता है तो एनजेएसी को चंद घंटों में कैसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया? संसद के साथ भी कुछ तो गड़बड़ है? .. यह एक बहुत ही उपयुक्त टिप्पणी थी ...कुछ हाइब्रिड प्रणाली होनी चाहिए। हमें कोलेजियम प्रणाली में सुधार करना है।"

    "जब एनजेएसी का मामला लंबित था, तब कोई भी नियुक्ति नहीं की गई थी। सामन्य कारण यह था कि नियुक्ति किस कानून के तहत हो, - उस कानून के तहत, जो अभी पारित हुआ है या कि मौजूदा कॉलेजियम प्रक्रिया के तहत। सुप्रीम कोर्ट कानून के संचालन पर रोक लगा सकता है और पुराने सिस्टम को जारी रख सकता था। लेकिन मुझे याद है कि तत्कालीन-चीफ जस्टिस ने कहा था, 'मैं इस मामले की सुनवाई कर रही बेंच को स्टे लगाने और और मुझे जजों की नियुक्ति का रास्ता देने के लिए नहीं कहा सकता।' मैं आपको अंदर की कहानी बता रहा हूं। ... मामले को तय करने में एक साल का समय लगा था। और उस एक साल में, कोई सिफारिश नहीं की गई और बैकलॉग बनता गया...।"

    अपने व्याख्यान के अंत में, उन्होंने एसएलपी क्षेत्राधिकार पर अनुच्छेद 136 में संशोधन करने का सुझाव दिया-

    "क्योंकि हर मामला, जो बहुत सामान्य या तुच्छ भी हो तो, सुप्रीम कोर्ट में ही आता है... हम इस संशोधन के साथ शुरू कर सकते हैं कि अगर कोई आपराधिक मामला है, जहां सजा 3 साल तक की कैद हो तो वहां हाईकोर्ट का फैसला अंतिम होना चाहिए। इन मामलों की पहले से ही तीन स्तरों पर जांच हो चुकी होती है और इसलिए, इनमें किसी भी SLP की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।''

    ''सिविल मामलों में, भूमि सुधार, किराया नियंत्रण, राज्य विधानमंडल द्वारा पास अधिनियमों, जैसे स्थानीय अधिनियमों के साथ शुरू करें। हाईकोर्ट राज्य में सबसे बड़ी अदालत है, और वैसे भी, जब तक वे उच्च न्यायालय तक पहुंचते हैं, तब तक वे तीन-चार स्तरों पर अपील से गुजर चुको होते हैं। ये मामले सुप्रीम कोर्ट में तभी आने चाहिए, जब वे किसी क़ानून की संवैधानिकता से जुड़े हों- जैसे दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट के कुछ प्रावधान या ऐसे कानून का एक सवाल, जहां दो हाईकोर्ट विरोधाभासी राय दें।"

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