जजों के दिलों में उनकी धड़कनें होनी चाहिए, जिनका फैसला वे करते हैं, कानूनों की व्याख्या करते हुए और अधिकारों को लागू करते हुए उनके दिमाग में न्याय होना चा‌‌हिएः जस्टिस नागरत्ना

Avanish Pathak

11 March 2023 2:32 PM GMT

  • जजों के दिलों में उनकी धड़कनें होनी चाहिए, जिनका फैसला वे करते हैं, कानूनों की व्याख्या करते हुए और अधिकारों को लागू करते हुए उनके दिमाग में न्याय होना चा‌‌हिएः जस्टिस नागरत्ना

    महिला दिवस के अवसर पर केरल फेडरेशन ऑफ विमेन की ओर से आयोजित चीफ जस्टिस केके उषा मेमोरियल लेक्चर के तहत सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने 'परिवर्तनकारी संवैधानिकता' विषय पर व्याख्यान दिया।

    उन्होंने कहा,"जजों के दिलों में उनकी धड़कनें होनी चाहिए, जिनका फैसला वे करते हैं, कानूनों की व्याख्या करते हुए और अधिकारों को लागू करते हुए उनके दिमाग में न्याय होना चा‌‌हिए"।

    उन्होंने कहा कि संविधान की परिवर्तनकारी व्याख्या करने के लिए, सबसे पहले उन लोगों को समझना होगा, जिनके लिए इसे बनाया गया था।

    जस्टिस नागरत्न ने अपने भाषण में वकीलों और न्यायपालिका के कर्तव्य को यह सुनिश्चित करने के लिए रेखांकित किया कि संविधान एक स्थिर ठहरा हुआ दस्तावेज ना रहे, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों तक प्रभावी बना रहे।

    उन्होंने समझाया कि कैसे परिवर्तनकारी संवैधानिकता दस्तावेज़ के पाठ में पवित्रता को जोड़कर इस दृष्टिकोण में सहायता करती है।

    उन्होंने कहा,

    "हम सभी जानते हैं कि हमारा संविधान एक ठहरा हुआ दस्तावेज नहीं, बल्कि जीवित वृक्ष है, और गतिशील है। इस प्रकार, संविधान की व्याख्या विकसित हो रही है। संविधान में नए अधिकारों को पढ़ने और न्यायोचित ठहराने के लिए लीविंग ट्री एप्रोच का आह्वान किया गया है।"

    उन्होंने कहा कि इसलिए यह बार और बेंच के सदस्यों का सुनिश्चित करना कर्तव्य है कि यह 'जीवित वृक्ष' 'सदाबहार' बना रहे।

    संविधान का अधिनियमन - देश के परिवर्तन का क्षण

    जस्टिस नागरत्न ने जोर देकर कहा कि यद्यपि 'परिवर्तनकारी संवैधानिकता' की अवधारणा हाल के दिनों में यह संवैधानिक ‌विमर्श का हिस्सा बन गई है, हालांकि यह देश में पहले से ही प्रचलन में रही है।

    उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान के लागू होने का क्षण ही अपने आप में देश के 'गंभीर परिवर्तन' का क्षण था।

    उन्होंने कहा कि संविधान के लागू होने से देश में यह बदलाव दो तरीकों से हुआ; सबसे पहले, व्यक्तियों और नागरिकों के बीच कानूनी संबंध को बदलकर, जिसमें औपनिवेशिक शासन की प्रजा से गणतंत्र के नागरिक बन गए; और दूसरा, राज्य के पुनर्निर्माण के द्वारा यानि राज्य की शक्ति नागरिकों में संकेंद्रित किया गया, न कि राज्य में...।

    जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि संविधान ने 'परिवर्तनकारी संविधानवाद' के अपने प्रारूप में में विदेशी औपनिवेशिक वर्चस्व के साथ-साथ स्वदेशी सामाजिक और आर्थिक वर्चस्व दोनों पर काबू पाने की मांग की थी।

    उन्होंने कहा कि वर्तमान में भी, परिवर्तनकारी संवैधानिकता की इस अवधारणा के जर‌िए सामाजिक संबंधों को बदलने की मांग की जा रही है।

    उन्होंने कहा कि इस अर्थ में, परिवर्तनकारी संवैधानिकता वकीलों और जजों के लिए एक बहुत ही 'अंतरंग अवधारणा' थी, जिसका उपयोग न केवल "अतीत के घावों को भरने के लिए किया जाता है, बल्कि बेहतर भविष्य के लिए हमारा मार्गदर्शन करने के लिए भी किया जाता है।

    परिवर्तनकारी संवैधानिकता को पूरा करने के लिए तीन वाहन

    ज‌स्टिस नागरत्ना ने अपने भाषण में संविधान के तीन मूलभूत सिद्धांतों को छुआ, जो संविधान के परिवर्तन के एजेंडे को साकार करने के लिए तीन वाहनों के रूप में भी कार्य करते हैं, यानि, न्यायालयों को संविधान के मौलिक अधिकारों और अन्य प्रावधानों में, लोकप्रिय लोकतंत्र, वितरणात्मक न्याय, सामाजिक-आर्थिक अधिकारों की प्राप्ति और सुशासन के लिए एक गतिशील कार्यपालिका में 'जीवन डालने' का कार्य सौंपा गया है।

    संविधान के मूल प्रावधानों में प्राण फूंकने में न्यायपालिका की भूमिका

    जस्टिस नागरत्ना ने याद दिलाया कि संविधान के आलोक में कानूनों की व्याख्या करते समय संविधान में उत्कीर्ण इन परिवर्तनकारी सिद्धांतों को याद रखना वकीलों और न्यायाधीशों की जिम्मेदारी थी। उन्होंने इस संबंध में कहा कि जबकि संविधान में शब्द व्यापक रूप से लिखे गए हैं, यह वकीलों पर है जो न्यायालय की सहायता करते हैं और कानून की व्याख्या करते हैं और न्यायपालिका के लिए जो इस तरह की व्याख्याओं पर विचार करती है और संवैधानिक परिवर्तन के लिए संवाद तैयार करती है...।

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