(लोक सेवा भर्ती) अगर उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन का प्रावधान न हो तो न्यायिक समीक्षा का बहुत कम प्रयोग किया जाना चाहिएः सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
11 May 2020 11:50 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन के किसी प्रावधान के अभाव में न्यायिक समीक्षा का प्रयोग शायद ही कभी होना चाहिए। मौजूदा मामले में पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के विभिन्न विभागों में तृतीय श्रेणी के 1569 रिक्त पदों के लिए बिहार कर्मचारी चयन आयोग (बीएसएससी) द्वारा आयोजित मुख्य परीक्षा के परिणामों को रद्द कर दिया था।
कोर्ट ने बीएसएससी को स्नातक स्तरीय संयुक्त परीक्षा -2010 के नए परिणाम तैयार करने का निर्देश दिया था। नए परिणाम को प्रश्नों और उत्तरों के विलोपन/ संशोधन के संबंध में कोर्ट के निर्देशों के अनुसार तैयार करने का आदेश दिया गया था।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आयोग और कुछ उम्मीदवारों की ओर से दायर अपील पर विचार करते हुए, जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा-
"यह अदालत दोहराती है कि उम्मीदवारों के मूल्यांकन से संबंधित मामलों में अनुच्छेद 226 के तहत न्यायिक समीक्षा का दायरा-विशेष रूप से, सार्वजनिक सेवाओं में भर्ती के संबंध में संकीर्ण है। अदालत के पिछले फैसलों ने लगातार रेखांकित किया है कि उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन के लिए किसी प्रावधान के अभाव में, न्यायिक समीक्षा का शायद ही कभी प्रयोग किया जाना चाहिए - विशेष रूप से असाधारण परिस्थितियों में।
पीठ ने मामले के रिकॉर्ड की जांच करते हुए कहा कि हाईकोर्ट द्वारा किए गए पुनर्मूल्यांकन के एकतरफा प्रयोग ने 'संकट को हल नहीं किया है, बल्कि और बढ़ा दिया है।
कोर्ट ने कहा,
"सुनवाई के दौरान किसी भी पक्ष ने कोई नियम या विनियमन नहीं दिखाया, जिससे अपनाया गया दृष्टिकोण न्यायसंगत साबित होता।
बीएसएससी, हमारी राय में, विशेषज्ञों के एक पैनल के जवाबों को संदर्भित करने में, पहली बार में सही ढंग से काम किया था। यदि उस पैनल की सिफारिशों के बारे में उचित संदेह थे, जो कम से कम जो किया जाना चाहिए था, वह था कि बीएसएससी को विवादित या संदिग्ध प्रश्नों को किसी अन्य विशेषज्ञ पैनल को संदर्भित करने को कहा जाता। ऐसा नहीं किया गया था; "
पीठ ने अपील स्वीकार करते हुए एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की थी। पीठ ने बीएसएससी को विशेषज्ञों की सिफारिशों के आलोक में नए परिणामों के प्रकाशन का निर्देश दिया। साथ ही कहा कि एकल न्यायाधीश के निर्देशों के अनुसार पूर्व में की गई नियुक्तियों के साथ छेड़खान न करें।
केस नं : SLP (C) No. 23202-23204 of 2015
केस का नाम: बिहार कर्मचारी चयन आयोग बनाम अरुण कुमार
कोरम: जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और एस रविंद्र भट
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