जजों को लोकप्रिय मतों के आधार पर नहीं, बल्‍कि कानून के आधार पर फैसले लेने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए; "न्यायिक बर्बरता" जैसे शब्दों की निंदा होनी चाहिए: कानून मंत्री

LiveLaw News Network

27 Nov 2020 7:30 AM GMT

  • जजों को लोकप्रिय मतों के आधार पर नहीं, बल्‍कि कानून के आधार पर फैसले लेने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए; न्यायिक बर्बरता जैसे शब्दों की निंदा होनी चाहिए: कानून मंत्री

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री, और इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने न्यायपालिका की "निष्पक्ष आलोचना" और "परेशान करने वाली प्रवृत्ति" की बात की, जो हाल ही में उभरी है और जिन पर चर्चा किए जाने की जरूरत है।

    उन्होंने कहा, "कोलेजियम की तरह कई चीजों की आलोचना रही है ... लेकिन हाल ही में लोगों दायर की गई किसी भी याचिका पर फैसला क्या होना चाहिए, इन पर विचार रखने लगे हैं..यह अखबारों में दृष्ट‌िकोण हैं ... और यदि निर्णय उस दृष्ट‌िकोण के अनुरूप नहीं है तो आलोचना हो रही है।"

    प्रसाद ने कहा, "न्यायाधीशों को कानून के आधार पर फैसले लेने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। संविधान निर्माताओं की यह राय नहीं थी कि न्याय लोकप्रिय मतों के आधार पर हो।"

    उन्होंने कहा, "'न्यायिक बर्बरता' जैसे शब्दों के उपयोग की निंदा की जानी चाहिए, उनका उपयोग करने वाले व्यक्ति के कद की परवाह किए बिना ... हमें याद रखना चाहिए कि यह न्यायपालिका है, जो गरीबों और वंचितों के साथ खड़ी है। उन्होंने कहा कि कमियां हो सकती हैं, आलोचना औचित्य की सीमाओं के परे नहीं हो सकती है। हमें न्यायपालिका पर गर्व होना चाहिए।"

    रविशंकर प्रसाद ने अनुच्छेद 21 के उद्देश्य के लिए, कानून की प्रक्रिया पर जोर देने पर, मनमानी के खिलाफ निषेधाज्ञा, उचित और न्यायसंगत होने के लिए सुप्रीम कोर्ट के योगदान की सराहना की।

    उन्होंने कहा, "संविधान की मूल संरचना को समग्रता में देखा जाना चाहिए ... न्यायपालिका की स्वतंत्रता बहुत महत्वपूर्ण है और शक्तियों का पृथक्करण भी उतना ही प्रासंगिक है।"

    मंत्री ने महामारी की चुनौतियों का सामना करने और शानदार कामकाज के लिए सुप्रीम कोर्ट और अन्य अदालतों की सरहाना की। उन्होंने कहा कि अक्टूबर तक, 30,000 मामले सुप्रीम कोर्ट द्वारा, 13.74 लाख मामले देश के सभी उच्च न्यायालयों द्वारा और 35.93 लाख देश भर की जिला अदालतों द्वारा निपटाए जा चुके हैं।

    उन्होंने कहा, "कुल 50 लाख के करीब मामलों का निपटारा किया गया है, और मैं इसमें ट्रिब्यूनल और अन्य आभासी कार्यवाही शामिल नहीं कर रहा हूं। कानून मंत्री के रूप में, मैं भारत के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों, कानून अधिकारियों, वकीलों, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और अन्य न्यायाधीशों और अधीनस्थ अदालतों के न्यायाधीशों की की सराहना करना चाहता हूं, जिन्होंने इन कठ‌िन परिस्थितियों में न्याय वितरण सुनिश्चित करने के लिए बढ़िया कामकाज किया।"

    उन्होंने कहा कि 16,000 डिजिटल अदालतों आदि के रूप में देश भर में तकनीकी रूप से कानून ने अपना विस्तार किया।

    उन्होंने कहा, "संविधान के 71 वर्षों में, भारत एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में उभरा है, आय, शैक्षिक, जाति, समुदाय, भाषा अवरोधों के बावजूद भी यह संविधान निर्माताओं के भरोसे को दर्शाता है। देश के 1.3 अरब लोगों के पास मताधिकार द्वारा सरकार को बदलने की शक्ति है... संविधान निर्माताओं ने विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य को खारिज किया और भारत का विचार दिया था, जिसमें वैदिक युग के आदर्शों को शामिल किया गया था, यहां तक ​​कि राम की और कृष्ण, अशोक से लेकर अकबर तक को शामिल किया गया है।"

    अंत में, उन्होंने कहा, "COVID वैक्सीन आने वाली है, और जब भी यह आती है, मुझे आशा है कि चिकित्सा बिरादरी को पहले यह दी जानी चाहिए। आखिरकार, यह उनके प्रयास हैं जो लोगों के जीवन बचे हैं।"

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