न्यायाधीशों की नियुक्तियां | सुप्रीम कोर्ट नियुक्तियों को अधिसूचित करने में देरी को लेकर केंद्र के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर 26 सितंबर को सुनवाई करेगा

Shahadat

6 Sep 2023 7:54 AM GMT

  • न्यायाधीशों की नियुक्तियां | सुप्रीम कोर्ट नियुक्तियों को अधिसूचित करने में देरी को लेकर केंद्र के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर 26 सितंबर को सुनवाई करेगा

    सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर को संवैधानिक अदालतों में नियुक्ति के लिए अदालत के कॉलेजियम द्वारा दोहराए गए नामों पर केंद्र सरकार की रोक के खिलाफ दायर याचिका सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ के समक्ष एडवोकेट अमित पई द्वारा शीघ्र सुनवाई के लिए इस याचिका का मौखिक रूप से उल्लेख किया गया।

    याचिका एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु द्वारा दायर की गई, जिसने केंद्र पर 2021 के फैसले में अदालत के निर्देशों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। इसने न्यायिक नियुक्तियों के लिए समयरेखा निर्धारित करने की भी मांग की है।

    एडवोकेट्स एसोसिएशन ने अपनी अवमानना याचिका में आरोप लगाया है कि केंद्र सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित समयसीमा का पालन करने में विफल रहा है। याचिकाकर्ता-एसोसिएशन ने तर्क दिया कि यह आचरण पीएलआर प्रोजेक्ट्स बनाम महानदी कोलफील्ड्स मामले में दिए गए निर्देशों का घोर उल्लंघन है। पिछले नवंबर में अदालत ने नोटिस जारी कर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों की नियुक्ति में देरी के लिए केंद्र की आलोचना करते हुए न्याय सचिव और प्रशासन और नियुक्तियों से निपटने वाले सरकार के अतिरिक्त सचिव से जवाब मांगा था।

    पिछले अवसर पर सरकार की ओर से भारत के अटॉर्नी-जनरल आर वेंकटरमणी ने अदालत को आश्वासन दिया था कि न्यायिक नियुक्तियों के लिए समय-सीमा का पालन किया जाएगा। उन्होंने कहा था कि लंबित कॉलेजियम सिफारिशों को जल्द ही मंजूरी दी जाएगी। इस आश्वासन के बावजूद, उदाहरण के लिए, केंद्र ने अभी तक वकील सौरभ किरपाल, सोमशेखर सुंदरेसन और जॉन सत्यन की नियुक्ति को अधिसूचित नहीं किया है, जबकि अदालत ने सरकार की आपत्तियों को खारिज करते हुए उनके नाम दोहराए हैं।

    इससे पहले, न्यायालय ने कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ पूर्व कानून मंत्री किरेन रिजिजू की टिप्पणियों पर निराशा व्यक्त की थी और शीर्ष कानून अधिकारियों से केंद्र को न्यायिक नियुक्तियों के संबंध में न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून का पालन करने की सलाह देने का आग्रह किया था। एक अन्य अवसर पर अदालत ने यह भी याद दिलाया कि एक बार प्रक्रिया ज्ञापन का पहलू संविधान पीठ के फैसले द्वारा तय हो जाने के बाद केंद्र इसे टाल नहीं सकता।

    अदालत ने कहा कि नियुक्तियों में किसी भी तरह की देरी ने 'पूरे सिस्टम को निराश' किया है। इसने जजशिप के लिए नामांकित व्यक्तियों की सीनियरिटी को बाधित करने वाले 'कॉलेजियम प्रस्तावों को विभाजित करने' की केंद्र की प्रथा पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की है।

    केस टाइटल- एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु बनाम बरुण मित्रा और अन्य। | अवमानना याचिका (सिविल) नंबर 867/2021 में स्थानांतरण याचिका (सिविल) नंबर 2419/2019

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