जम्मू और कश्मीर बार एसोसिएशन अध्यक्ष की हिरासत बरकार, हाईकोर्ट ने खारिज़ की याचिका

LiveLaw News Network

8 Feb 2020 2:39 PM IST

  • जम्मू और कश्मीर बार एसोसिएशन अध्यक्ष की हिरासत बरकार, हाईकोर्ट ने खारिज़ की याचिका

    J&K&L High Court

    जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता और जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियां अब्दुल क़यूम के प्र‌िवेंटिस डिटेंशन को चुनौती दी गई थी।

    वह 5 अगस्त से नजरबंद है, जब केंद्र सरकार ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त कर दिया था।

    जस्टिस ताशी राबस्तान, जिन्होंने याचिका पर फैसला दिया, ने कहा कि क़यूम को हिरासत में लेने की आवश्यकता के संबंध में अधिकारियों की संतुष्टि के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्‍ध है। उन्होंने कहा कि प्र‌िवेंटिव डिटेंशन की कार्रवाई जम्मू-कश्मीर लोक सेवा अधिनियम 1978 के तहत की गई है।

    कोर्ट ने कहा कि प्र‌िवेंटिव डिटेंशन "संदेह या प्रत्याशा पर आधारित है न कि प्रमाण पर"। राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी या सार्वजनिक व्यवस्था का रखरखाव या आवश्यक सेवाओं और आपूर्ति, कार्यकारीणी के पास है, इसलिए, उन्हें प्र‌िवेंट‌िव डिटेंशन का आदेश देने का अधिकार है।

    कोर्ट ने यह कहते हुए कि डिटेंशन आदेश की समीक्षा करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सीमित गुंजाइश है, अपने फैसले में कहा-

    ''... किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने या न लेने के लिए ‌डिटेनिंग अथॉरिटी की व्यक्तिपरक संतुष्टि, न्यायालय के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन का विषय नहीं है। कोर्ट किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने के प्रशासनिक निर्णय के गुणों की जांच का उचित मंच नहीं है। संबंधित प्राधिकरण की संतुष्टि से कोर्ट अपनी संतुष्ट‌ि को स्‍थानापन्न नहीं कर सकता है, और यह यह तय कर सकता है कि प्राधिकरण की संतुष्टि तार्किक या उचित है, या मामले के हालात के मद्देनजर संबंधित व्यक्ति को हिरासत में लिया जाना चाहिए या नहीं?"

    डिटेंशन को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि जिला मजिस्ट्रेट ने विवेक का उचित प्रयोग किए बिना ही आदेश पारित किया था। दलील दी गई ‌थी कि ड‌िटेंशन का आधार "अस्पष्ट, अनिश्चित, आधारहीन, था, आवश्यक विवरणों की भी कमी थी।" दलील में कहा गया कि, हिरासत में रखे गए व्यक्ति को कोर्ट के आदेश के खिलाफ अभ्यावेदन करने के अधिकार से भी वंचित किया गया।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जेडए शाह ने कहा कि में डिटेंशन के आदेश में 2008 और 2010 की गतिविधियों का उल्लेख किया गया था, जिसके लिए उन्हें 2010 में ही हिरासत में लिया गया था। उन्ही गतिविधियों को दोबार ‌डिटेंशन आदेश आधार नहीं बनाया जा सकता है।

    प्रशासन ने दावा किया कि डिटेन किया गया व्यक्ति "अलगाववादी विचारधारा का कट्टर समर्थक" था, जिसका "सार्वजनिक व्यवस्था के खिलाफ पूर्वाग्रही गतिविधियों में लिप्त होने के लिए आम जनता को उकसाने" का इतिहास रहा था।

    याचिका पर फैसला करते हुए, जस्टिस राबस्तान ने ग्रीक विचारक सोफोक्लीज़ के हवाले से कहा, "कानून को तब तक लागू नहीं सकता जब तक भय उसका समर्थन नहीं करता।"

    जज ने कहा-

    "सही सोच वाले प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह व्यवस्थित, सभ्य और शांतिपूर्ण समाज के लिए कानून के प्रति सम्मान का प्रदर्शन करे। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि कानून किसी भी प्रकार की अव्यवस्था का विरोधी है।"

    कोर्ट ने गौर किया कि सलाहकार बोर्ड ने क़यूम को हिरासत में लेने के आधार के बारे में जानकारी दी थी और उन्हें अपना अभ्यावेदन पेश करने के बारे में सूचित किया था। हालांकि, उनकी ओर से कोई प्रतिनिधित्व नहीं किया गया।

    कोर्ट ने कहा कि हिरासत का आधार "निश्चित, अनुमानित और किसी भी अस्पष्टता से मुक्त" है। हिरासत में ‌लिए गए व्यक्ति की एक गतिविधि भी उसे प्र‌िवेंटिव डिटेंशन में रखने का उचित आधार है।

    निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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