इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

LiveLaw News Network

12 Dec 2019 6:16 AM GMT

  • इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

    इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

    यह अधिनियम संशोधन जिसे सोमवार को लोकसभा और बुधवार को राज्यसाभा ने मंजूरी दे दी, पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के मानदंडों को उदार बनाने के लिए नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करता है।

    आईयूएमएल के संसद सदस्य पी के कुन्हालीकुट्टी, ई टी मुहम्मद बशीर, अब्दुल वहाब और के नवस कानी भी भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका में याचिकाकर्ता के रूप में शामिल हुए हैं।

    याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे प्रवासियों को नागरिकता देने का विरोध नहीं करते, लेकिन धर्म के आधार पर भेदभाव और अवैध वर्गीकरण से दुखी हैं। अधिनियम से मुसलमानों का बहिष्कार किया गया है जिससे धर्म आधारित भेदभाव हुआ।

    याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता हरीस बीरन और पल्लवी प्रताप ने कहा कि अवैध प्रवासी खुद ही एक वर्ग है और इसलिए जो भी कानून उन पर लागू होता है, वह बिना किसी धर्म, जाति या राष्ट्रीयता के आधार पर होना चाहिए।

    याचिका के अनुसार, अधिनियम द्वारा किया गया धार्मिक भेदभाव बिना किसी उचित कारण के है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है। भारतीय संविधान केवल जन्म, वंश या अधिग्रहण के आधार पर नागरिकता को मान्यता देता है। यह अधिनियम धर्म को नागरिकता का मापदंड बनाता है। धर्म को नागरिकता से जोड़ना धर्मनिरपेक्षता का विरोध है, जो संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है।

    केंद्र सरकार ने संशोधन को उचित ठहराते हुए कहा कि यह धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए आवश्यक है जो भारत की सीमा से लगे देशों में धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। इस पर सवाल उठाते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि श्रीलंका और भूटान, जिनके पास आधिकारिक धर्म हैं, उनको कानून से बाहर रखा गया है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अधिनियम के संशोधन में अहमदिया, शिया और हजारा जैसे अल्पसंख्यकों को शामिल नहीं किया गया है, जिनका अफगानिस्तान और पाकिस्तान में उत्पीड़न का लंबा इतिहास है।

    याचिकाकर्ताओं ने कहा,

    " नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 स्पष्ट रूप से मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है। यह अधिनियम हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को लाभ देता है, लेकिन इस्लाम धर्म से संबंधित व्यक्तियों को समान लाभ नहीं देता। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 व्यक्ति के मूल या आंतरिक गुण के आधार पर भेदभाव करता है। यह अंतर के आधार पर एक उचित वर्गीकरण नहीं है।"


    याचिका की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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