नंबी नारायणन के खिलाफ इसरो जासूसी केस : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को डीके जैन आयोग की रिपोर्ट आगे की कार्यवाही के लिए सीबीआई को देने के निर्देश दिए

LiveLaw News Network

15 April 2021 8:11 AM GMT

  • नंबी नारायणन के खिलाफ इसरो जासूसी केस : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को डीके जैन आयोग की रिपोर्ट आगे की कार्यवाही के लिए सीबीआई को देने के निर्देश दिए

    सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को तीन सदस्यीय समिति, जिसकी अध्यक्षता शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) डी के जैन ने की, की सिफारिश पर केंद्र को यह निर्देश दिया कि वह आगे की कार्रवाई के लिए सीबीआई को ये रिपोर्ट सौंपे।

    न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ केंद्र सरकार द्वारा जस्टिस जैन आयोग की रिपोर्ट पर आगे कार्यवाही के लिए दाखिल आवेदन पर विचार कर कर रही थी जिसमें 1994 में इसरो जासूसी मामले में केरल के पुलिस अफसरों की भूमिका की आगे जांच की सिफारिश की गई थी। इस मामले में इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायणन को बरी कर दिया गया था और अंततः शीर्ष अदालत ने 50 लाख रुपये का मुआवजा दिया था।

    बेंच ने आज निर्देश जारी किया है:

    1. सरकार सीबीआई को जांच समिति की रिपोर्ट भेजेगी

    2. जांच रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई करने के लिए सीबीआई स्वतंत्र होगी

    3. जांच अधिकारियों के रिपोर्ट की प्रतिलिपि देने के अनुरोध को ठुकरा दिया।

    4. रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित नहीं किया जाएगा

    5 अप्रैल को, केंद्र ने शीर्ष अदालत का रुख किया और इसे "राष्ट्रीय मुद्दा" करार देते हुए पैनल की रिपोर्ट पर तत्काल सुनवाई करने और विचार करने का अनुरोध किया।

    शीर्ष अदालत ने 14 सितंबर, 2018 को 'अपार अपमान' से गुजरने के लिए मजबूर करने के लिए नारायणन को 50 लाख रुपये के मुआवजे के लिए केरल सरकार को निर्देश दिया था और ये पैनल नियुक्त किया था।

    इसने नारायणन को 'जबरदस्त उत्पीड़न' और 'दुखद पीड़ा' देने ट के लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कदम उठाने के लिए समिति का गठन करने का आदेश दिया था और केंद्र और राज्य सरकार को पैनल में प्रत्येक एक अधिकारी को नामित करने का निर्देश दिया था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ( इसरो) के पूर्व-वैज्ञानिक के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई को 'असामान्य- मनोविज्ञान ' उपचार' करार देते हुए, शीर्ष अदालत ने सितंबर 2018 में कहा था कि उनके 'स्वतंत्रता और सम्मान', जो उनके मानवाधिकारों के लिए बुनियादी हैं, उन्हें हिरासत में लेते ही खतरे में पड़ गए और आखिरकार, अतीत के सभी गौरव के बावजूद, उन्हें 'निंदनीय घृणा' का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

    1994 में सुर्खियों में आने वाला जासूसी का मामला, मालदीव की दो महिलाओं सहित दो वैज्ञानिकों और चार अन्य लोगों द्वारा भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर कुछ गोपनीय दस्तावेजों के हस्तांतरण के आरोपों से संबंधित था, वैज्ञानिक को तब गिरफ्तार किया गया था जब केरल में कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कर रही थी।

    तीन सदस्यीय जांच पैनल ने हाल ही में शीर्ष अदालत को एक सीलबंद कवर में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

    सीबीआई ने अपनी जांच में माना था कि नारायणन की अवैध गिरफ्तारी के लिए केरल में तत्कालीन शीर्ष पुलिस अधिकारी जिम्मेदार थे।

    इस मामले में राजनीतिक रूप से भी हलचल हुई थी, जब इस मुद्दे पर कांग्रेस के एक वर्ग ने तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय के करुणाकरण पर निशाना साधा था जिसके चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

    लगभग दो-ढाई साल की अवधि में, न्यायमूर्ति जैन की अध्यक्षता वाले पैनल ने गिरफ्तारी के लिए परिस्थितियों की जांच की।

    79 वर्षीय पूर्व वैज्ञानिक, जिन्हें सीबीआई ने क्लीन चिट दे दी थी, ने पहले कहा था कि केरल पुलिस ने इस मामले को 'गढ़ा' था और जिस तकनीक का उन पर चोरी करने और बेचने का आरोप लगाया गया था वह 1994 में उस समय मौजूद नहीं थी।

    नारायणन ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था जिसमें कहा गया था कि पूर्व डीजीपी सिबी मैथ्यूज, जो तब एसआईटी जांच टीम की कमान संभाल रहे थे, और दो सेवानिवृत्त अफसर पुलिस अधीक्षक केके जोशुआ और एस विजयन, के खिलाफ कार्रवाई की जरूरत नहीं है जो बाद में वैज्ञानिक की अवैध गिरफ्तारी के लिए सीबीआई द्वारा जिम्मेदार ठहराए गए थे।

    'इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि राष्ट्रीय प्रतिष्ठा रखने वाले एक सफल वैज्ञानिक, अपीलकर्ता को भारी अपमान के दौर से गुजरना पड़ा है। शीर्ष अदालत ने अपने सितंबर 2018 के आदेश में कहा था कि किसी को भी गिरफ्तार करने और उसे पुलिस की हिरासत में रखने के पक्षधर रवैये ने अपीलकर्ता को बदनामी का शिकार होने के लिए मजबूर कर दिया है।

    ' असामान्य- मनोविज्ञान ' उपचार दिए जाने पर किसी व्यक्ति की गरिमा को आघात पहुंचता है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि एक इंसान न्याय के लिए रोता है जब उसे लगता है कि असंवेदनशील कृत्य ने उसके आत्मसम्मान को छल लिया है।

    इसने नारायणन की इस दलील को स्वीकार कर लिया था कि उनके दिमाग पर इस तरह के 'कठोर प्रभाव' पैदा करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को 'कानूनी परिणामों' का सामना करना चाहिए।

    सीबीआई ने वैज्ञानिक को क्लीन चिट देते हुए कहा था कि सिबी मैथ्यूज ने 'आईबी के पास अपने कर्तव्यों का आत्मसमर्पण करते हुए पूरी जांच छोड़ दी थी' और वैज्ञानिक और अन्य लोगों की अंधाधुंध गिरफ्तारी का आदेश दिया था, जिसमें पर्याप्त सबूत नहीं थे।

    मामले ने अक्टूबर 1994 में ध्यान आकर्षित किया था, जब मालदीव की नागरिक राशीदा को तिरुवनंतपुरम में इसरो रॉकेट इंजनों की गुप्त चित्र प्राप्त करने और पाकिस्तान को बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

    इसरो में क्रायोजेनिक परियोजना के तत्कालीन निदेशक नारायणन को इसरो के तत्कालीन उप निदेशक डी शशिकुमारन और राशीदा की मालदीव नागरिक मित्र फौजिया हसन के साथ गिरफ्तार किया गया था।

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